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Showing posts from March 29, 2019

प्रेम और ध्यान - ओशो

विज्ञान भैरव तंत्र की सबसे मूल्यवान विधि विज्ञान भैरव तंत्र में इस विधि को बड़ा मूल्य दिया गया है। जब श्वास न बाहर जाती है, न भीतर, जब सब ठहर गया होता है, उसमें ही डूब जाओ; वहीं से तुम द्वार पा लोगे परमात्मा का। प्रेम भी ऐसी ही घड़ी है। कामना बाहर जाती है, प्रार्थना भीतर जाती है; प्रेम ऐसी घड़ी है, जब तुम न बाहर जाते, न भीतर जाते। और मजा यही है कि जब तुम न बाहर जाते और न भीतर जाते, तो तुम हो ही नहीं सकते। क्योंकि तुम केवल जाने में ‘हो सकते हो, ठहरने में नहीं हो सकते। जब तुम्हारी श्वास ठहर जाती है, तब तुम नहीं होते; तुम मिट गए होते हो। अहंकार रह ही नहीं सकता वहां। अहंकार के लिए गति चाहिए। अहंकार के लिए सक्रियता चाहिए। अहंकार के लिए कर्म चाहिए। कुछ हो तो अहंकार बच सकता है; कुछ भी न हो रहा हो तो अहंकार कैसे बचेगा? अहंकार उपद्रव है। इसलिए अहंकारी शांत नहीं बैठ सकता। मेरे पास अहंकारी आ जाते हैं; वे कहते हैं, ध्यान करना है, शांत बैठना है, लेकिन बैठ नहीं सकते शांत। अहंकारी शांत नहीं बैठ सकता, क्योंकि उसे लगता है कि यह तो समय व्यर्थ गया; इतनी देर में तो कुछ अहंकार की पूंजी कमा लेते, क