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Showing posts from March 3, 2019

राष्ट्रीय पर्व और नेता - ओशो

झरत दसहुं दिस मोती-(प्रवचन-06) छठवां--प्रवचन मेरा संन्यास जीवन के साथ अनंत प्रेम है तीसरा प्रश्नः ओशो, कल से पड़ोस में ही लाउडस्पीकर लगा कर कोई प्रवचन में बाधा डालने की कोशिश कर रहा है। उसका उपद्रव आज भी जारी है। क्या इसे रोका नहीं जा सकता है? प्रेम चैतन्य! बहुत कठिन! यह छब्बीस जनवरी का मौसम! नेतागण किसी तरह साल भर अपने को रोके रहते हैं, आखिर उनकी भी होली-दीवाली आनी चाहिए! यह समझो होली है।  बुरा न मानो! उनको बकवास कर लेने दो। और यह तो कुछ भी नहीं है। पिछले साल तो और भी गजब हुआ था। पड़ोस के लोगों ने एक वयोवृद्ध नेताजी से छब्बीस जनवरी को झंडा फहराने का निवेदन किया। नेताजी ने प्रसन्न होकर कहा: ठीक है। मेरे पास एक पुराना झंडा पड़ा है, मैं अभी नौकर को भेज कर स्कूल के मैदान में गड़वा देता हूं। नया खरीदने की क्या जरूरत है! मैं सुबह आ जाऊंगा फहराने, आप लोग कुछ फिकर न करिए। नेताजी ने नौकर से झंडा गड़ा आने को कहा। नौकर था शराबी..आखिर नेताजी का नौकर ठहरा। भूल गया। रात तीन बजे उसे याद आई। बेचारा घबड़ा कर झंडा गड़ा आया। गलती केवल इतनी हुई कि तिरंगे झंडे की जगह रात के अंधेरे में