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Showing posts from February 24, 2019

भारत के धर्माकाश में वे कौन चार लोग हैं जो ओशो की दृष्टि में सबसे चमकते हुए सितारे हैं?

🔥🔥 🔥🔥 महाकवि सुमित्रानंदन पंत ने मुझसे एक बार पूछा कि भारत के धर्माकाश में वे कौन बारह लोग हैं—मेरी दृष्टि में—जो सबसे चमकते हुए सितारे हैं? मैंने उन्हें यह सूची दी : कृष्ण, पतंजलि, बुद्ध, महावीर, नागार्जुन, शंकर, गोरख, कबीर, नानक, मीरा, रामकृष्ण, कृष्णमूर्ति। सुमित्रानंदन पंत ने आंखें बंद कर लीं, सोच में पड़ गये...। सूची बनानी आसान भी नहीं है, क्योंकि भारत का आकाश बड़े नक्षत्रों से भरा है! किसे छोड़ो, किसे गिनो?.. वे प्यारे व्यक्ति थे—अति कोमल, अति माधुर्यपूर्ण, स्त्रैण...। वृद्धावस्था तक भी उनके चेहरे पर वैसी ही ताजगी बनी रही जैसी बनी रहनी चाहिए। वे सुंदर से सुंदरतर होते गये थे...। मैं उनके चेहरे पर आते—जाते भाव पढ़ने लगा। उन्हें अड़चन भी हुई थी। कुछ नाम, जो स्वभावत: होने चाहिए थे, नहीं थे। राम का नाम नहीं था! उन्होंने आंख खोली और मुझसे कहा : राम का नाम छोड़ दिया है आपने! मैंने कहा : मुझे बारह की ही सुविधा हो चुनने की, तो बहुत नाम छोड़ने पड़े। फिर मैंने बारह नाम ऐसे चुने हैं जिनकी कुछ मौलिक देन है। राम की कोई मौलिक देन नहीं है, कृष्ण की मौलिक देन है। इसलिये हिंदुओं ने भी उन्हें प

गौतम बुद्ध की देशना - ओशो || Osho Talks on Buddha

गौतम बुद्ध से किसी ने पूछा एक सुबह, एक भिक्षु ने, एक खोजी ने, एक सत्यार्थी ने मैं क्या करूं? और बुद्ध ने जो उत्तर दिया, बहुत आकस्मिक था, अनपेक्षित था। बुद्ध ने कहा "चरैवेति, चरैवेति"! चलते रहो, चलते रहो! रुको मत, पीछे लौट कर देखो मत। आगे की चिंता न लो। प्रतिपल बढ़े चलो। क्योंकि गति जीवन है। गत्यात्मकता जीवन है। और जैसे दौड़ती हुई पर्वतों से नदी की धार एक न एक दिन चलते-चलते सागर पहुंच जाती है, ऐसे ही तुम भी चलते रहे तो परमात्मा तक निश्चित पहुंच जाओगे। न तो नदी के पास नक्शा होता, न मार्गदर्शक होते, न पंडित-पुरोहित होते, न पूजा-पाठ, न यज्ञ-हवन, फिर भी पहुंच जाती है सागर। कितना ही भटके, कितने ही चक्कर खाए पर्वतों में, लेकिन पहुंच जाती है सागर। कौन पहुंचा देता है उसे सागर? उसकी अदम्य गति! चरैवेति, चरैवेति। फिक्र नहीं लेती, सोच-विचार नहीं करती कितना भटकाव हो गया, कितना समय बीत गया, कितना और समय लगेगा, ऐसा अधैर्य नहीं पालती। मदमाती, मस्त, प्रतिपल आनंदमग्न। इससे बोझिल भी नहीं होती कि सागर अभी तक क्यों नहीं मिला? इसका संताप भी उसकी छाती पर भारी नहीं हो पाता। मिलेगा ही, ऐसी को

होश की साधना - ओशो || मुल्ला नसीरुद्दीन पर ओशो || Osho Jokes in Hindi

होश की साधना - ओशो   एक सुंदर अध्यापिका की आवारगी की चर्चा जब स्कूल में बहुत होने लगी तो स्कूल की मैनेजिंग कमेटी ने दो सदस्यों को जांच-पड़ताल का काम सौंपा। ये दोनों सदस्य उस अध्यापिका के घर पहुंचे। सर्दी अधिक थी, इसलिए एक सदस्य बाहर लान में ही धूप सेंकने के लिए खड़ा हो गया और दूसरे सदस्य से उसने कहा कि वह खुद ही अंदर जाकर पूछताछ कर ले। एक घंटे के बाद वह सज्जन बाहर आए और उन्होंने पहले सदस्य को बताया कि अध्यापिका पर लगाए गए सारे आरोप बिल्कुल निराधार हैं। वह तो बहुत ही शरीफ और सच्चरित्र महिला है। इस पर पहला सदस्य बोला, "ठीक है, तो फिर हमें चलना चाहिए। मगर यह क्या? तुमने केवल अंडरवीयर ही क्यों पहन रखी है? जाओ, अंदर जाकर फुलपेंट तो पहन लो।" यहां होश किसको? मुल्ला नसरुद्दीन एक रात लौटा। जब उसने अपना चूड़ीदार पाजामा निकाला तो पत्नी बड़ी हैरान हुई; अंडरवीयर नदारद!! तो उसने पूछा, "नसरुद्दीन अंडरवीयर कहां गया?" नसरुद्दीन ने कहा कि अरे! जरूर किसी ने चुरा लिया!! अब एक तो चूड़ीदार पाजामा! उसमें से अंडरवीयर चोरी चला जाए और पता भी नहीं चला!! चूड़ीदार पाजामा नेतागण पहनते

ओशो – चक्र और नींद

ओशो – चक्र और नींद **************************************** जो व्यक्ति मूलाधार चक्र पर केंद्रित है उसकी नींद गहरी न होगी। उसकी नींद उथली होगी क्योंकि यह दैहिक तल पर जीता है। भौतिक स्तर पर जीता है। मैं इन चक्रों कि व्याख्या इस प्रकार भी कर सकता हूं। प्रथम, भौतिक—मूलाधार। दूसरा, प्राणाधार—स्वाधिष्ठान। तीसरा, काम या विद्युत केंद्र—मणिपूर। चौथा, नैतिक अथवा सौंदयपरक—अनाहत। पांचवां, धार्मिक—विशुद्ध। छठा, आध्यात्मिक—आज्ञा। सातवां, दिव्य—सहस्त्रार। जैसे-जैसे ऊपर जाओगे तुम्हारी नींद गहरी हो जाएगी। और इसका गुणवता बदल जायेगी। जो व्यक्ति भोजन ग्रसित है और केवल खाने के लिए जीता है। उसकी नींद बेचैन रहेगी। उसकी नींद शांत न होगी। उसमें संगीत न होगा। उसकी नींद एक दु:ख स्वप्न होगी। जिस व्यक्ति का रस भोजन में कम होगा और जो वस्तुओं की बजाएं व्यक्तियों में अधिक उत्सुक होगा, लोगों के साथ जुड़ना चाहता है। उसकी नींद गहरी होगी। लेकिन बहुत गहरी नहीं। निम्नतर क्षेत्र में कामुक व्यक्ति की नींद सर्वाधिक गहरी होगी। यही कारण है कि सेक्स का लगभग ट्रैक्युलाइजर, नशे की तरह उपयोग किया जाता है। यद

रज्जु-सर्प भ्रम - ओशो || बचपन की शरारतें भाग - 2 || Osho Funny Talks

सांच-सांच सो सांच-(प्रशनोंत्तर)-प्रवचन-10 सांच-सांच सो सांच-(प्रशनोंत्तर)-ओशो समाधि की सुवास —प्रवचन-दसवां   दिनांक  30  जनवरी ,  सन् 1981 ओशो आश्रम पूना। रज्जु-सर्प भ्रम! साहबदास जी निरंतर इसका उल्लेख करते थे कि अरे ,  यह संसार क्या है ,  बस रस्सी में सांप। उनकी सुनते-सुनते एक दिन मुझे खयाल आया कि जांच तो कर ली जाए। वे रोज रात नौ ,  साढ़े नौ बजे प्रवचन देकर मेरे मकान की बगल की गली से गुजरते थे। वहीं आगे चल कर उनका आश्रम था। गली में अंधेरा रहता था। उन दिनों वहां कोई बिजली भी न थी। सो मैंने एक रस्सी बनाई। बाजार से एक सांप खरीद कर लाया कागज का। कागज के सांप के मुंह को रस्सी में जोड़ा। रस्सी में पतला धागा बांधा और एक खाट खड़ी करके उसके पीछे छिप कर मैं बैठा रहा। जब साहबदास जी वहां से निकले तो मैंने धीरे से धागा खींचा। धागा तो दिख ही नहीं सकता था। अंधेरी रात ,  अंधेरा में धागा ,  काला धागा। रस्सी सरकी ,  सांप का मुंह हिला। साहबदास जी क्या भागे! गिर पड़े ,  पैर फिसल गया। मैं भी घबड़ाहट के मारे भागा , क्योंकि अब मैं फंसूंगा। सो वह खाट गिर पड़ी , मैं पकड़ा गया। साहबदास जी न

बुल्ला की जाना मैं कौण - ओशो

आपुई गई हिराय-(प्रश्नत्तोर)-प्रवचन-04 आपुई गई हिराय-(प्रश्नत्तोर)-ओशो दिनांक 0 4 -फरवरी ,  सन् 1981 , ओशो आश्रम ,  पूना। प्रवचन-तीसरा -( फिकर गया सईयो मेरियो नी ) बुल्लेशाह का यह वक्तव्य सुनो। बुल्ला की जाना मैं कौण! न मैं मोमिन विच मसीतां ,  न मैं विच कुफर दीयां रीतां। न मैं पाकां विच पलीतां ,  न मैं मूसा न फरऔन।। बुल्ला की जाना मैं कौण! न मैं अंदर बेद कताबां ,  न विच भंग न शराबां। न विच रहिंदा मस्त खवाबां ,  न विच जागन न विच सौन।। बुल्ला की जाना मैं कौण! न विच शादी न गमनाकी ,  न मैं विच पलीती पाकी। न मैं आबी न मैं खाकी ,  न मैं आतश न मैं पौन।। बुल्ला की जाना मैं कौण! न मैं अरबी न लाहोरी ,  न हिंदी न शहर नगौरी। न मैं हिंदू तुर्क पशौरी ,  न मैं रहिंदा विच नदौन।। बुल्ला की जाना मैं कौण! अव्वल आखर आप नू जाना ,  न कोई दूजा होर पछाना। मैथों होर न कोई सयाना ,  बुल्ला शाह किहड़ा है कौन।। बुल्ला की जाना मैं कौण! अर्थात ,  बुल्लेशाह कहते हैं कि मैं क्या जानूं कि मैं कौन हूं! बुल्ला की जाना मैं कौण! ऐसा सन्नाटा है ,  ऐसी समाधि

Quotes on Death - Osho

Death Is the Most Misunderstood Phenomenon “Death is the most misunderstood phenomenon. People have thought of death as the end of life. That is the first, basic misunderstanding. “Death is not the end, but the beginning of a new life. Yes, it is an end of something that is already dead. It is also a crescendo of what we call life, although very few know what life is. They live, but they live in such ignorance that they never encounter their own life. And it is impossible for these people to know their own death, because death is the ultimate experience of this life, and the beginning experience of another. Death is the door between two lives; one is left behind, one is waiting ahead. “There is nothing ugly about death; but man, out of his fear, has made even the word, death ugly and unutterable. People don’t like to talk about it. They won’t even listen to the word death. “The fear has reasons. The fear arises because it is always somebody else who dies. You alw

जीवन का गणित - ओशो

एक स्कूल में पूछ रहा है शिक्षक बच्चों से कि समझ लो तुम्हारे बाड़े में दस भेड़ें बंद हैं,उनमें से एक बाड़े की छलांग लगा कर निकल गई तो भीतर कितनी बचेंगी? एक लड़का जोर—जोर से हाथ हिलाने लगा, जो कभी हाथ नहीं हिलाता था! शिक्षक चकित हुआ, उसने कहा कि बोलो—बोलो, तुम तो कभी हाथ नहीं हिलाते! उसने कहा कि आप प्रश्न ही ऐसे पूछते थे, जिनका मुझे कोई अनुभव नहीं। इसका मुझे अनुभव है। एक भी भेड़ नहीं बचेगी। शिक्षक ने कहा. तेरे को जरा भी अकल है कि नहीं? दस भेड़ें बंद हैं मैंने कहा, एक छलांग लगा कर निकल गई, तो भीतर एक भी नहीं बचेगी? उस बच्चे ने कहा : आपको गणित का अनुभव होगा, मुझे भेड़ों का अनुभव है। मेरे घर में भेड़ें हैं। इसीलिए तो मैं इतने जोर से हाथ हिला रहा हूं कि इसका जवाब कोई दूसरा नहीं दे सके गा। और गणित के हिसाब से जो सही है वह कोई जिंदगी के हिसाब से सही हो, यह जरूरी थोड़े ही है। जब एक भेड़ निकल जाएगी तो बाकी नौ भेड़ भी उसके पीछे निकल जाएंगी। भेड़ें तो पीछे चलती हैं एक—दूसरे के। भेड़ों में कोई व्यक्तित्व नहीं होता। तो जिस व्यक्ति ने नहीं कहना नहीं सीखा वह भीड़ का हिस्सा रह जाएगा, वह भेड़ रह जाएगा।