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Showing posts from February 22, 2019

कुंडलिनी (भाग-1) Kundalini (part-1)

कुंडलिनी (भाग-1)   Kundalini (part-1) दूसरा प्रश्नः ओशो, मैं कुंडलिनी जगाना चाहता हूं। अभी तक जागी नहीं। क्या मुझसे कोई भूल हो रही है? मार्गदर्शन दें। झरत दसहुं दिस मोती-(प्रवचन-14) चौहदवां-- प्रवचन जगदीश! भइया, कुंडलिनी ने तुम्हारा कुछ बिगाड़ा! सोई है, बिचारी को सोने दो! काहे पीछे पड़े हो? तुम्हें और कोई काम नहीं है? कुंडलिनी क्यों जगाना चाहते हो? फिर जग जाए तो फिर आ कर कहोगे कि अब इसे सुलाओ! कि अब यह कुंडलिनी जग गई, अब यह चैन नहीं लेने देती। शब्द सुन लिए हैं। और शब्द सुन लिए हैं तो शब्दों के साथ वासना जुड़ जाती है। कोई जैन आ कर नहीं पूछता कि मेरी कुंडलिनी क्यों नहीं जग रही है, क्योंकि उसके शास्त्रों में ये शब्द नहीं है। कोई बौद्ध नहीं पूछता, कोई मुसलमान नहीं पूछता, कोई ईसाई नहीं पूछता, कोई पारसी नहीं पूछता, कोई यहूदी नहीं पूछता..यहां सब मौजूद हैं..हिंदुओं भर को यह शब्द पकड़ गया है: कुंडलिनी! और कुंडलिनी जगा कर रहेंगे! और नहीं जग रही है तो तुम्हें शक हो रहा है कि कहीं कोई भूल तो नहीं हो रही है! जगदीश, तुमसे और भूल! जरा नाम तो देखो अपना..‘जगदीश!’ तुमसे भूल नहीं हो सकती, भइया!

मेरा भारत महान - ओशो || भारत की महानता के संबंध में ओशो

Osho Talks Playlist (हिंदी) तीसरा प्रश्न: आप भारत देश की महानता के संबंध में कभी भी कुछ नहीं कहते हैं। न ही इस देश के नेताओं की प्रशंसा में कुछ कहते हैं। क्यों ? प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)   प्रवचन—छट्ठवां   दिनांक 01 अप्रेल सन्  1979, ओशो आश्रम ,  कोरेगांव पार्क पूना। चंदूलाल!  आप यहां कैसे आ गए ?  और ढब्बू जी को भी साथ ले आए हैं या नहीं ? गलत दुनिया में आ गए। यहां देशों इत्यादि की चर्चा नहीं होती। आदमी के द्वारा नक्शे पर खींची हुई लकीरों का मूल्य ही क्या है ?  यहां तो पृथ्वी एक है। यहां कैसा भारत और कैसा पाकिस्तान और कैसा चीन ?  इस तरह की बातें सुननी हों तो दिल्ली जाओ। यहां कहां आ गए ? और यहां ज्यादा देर मत टिकना। यहां की हवा खराब है! कहीं यहां ज्यादा देर टिक गए ,  नाचने-गाने-गुनगुनाने लगे ,  तो भूल जाओगे भारत इत्यादि। जरूरत क्या है भारत की प्रशंसा की ?  और भारत की प्रशंसा क्यों चाहते हो ?  अहंकार को तृप्ति मिलती है। पाकिस्तान की प्रशंसा क्यों नहीं ?  प्रश्न ऐसा क्यों नहीं पूछा कि आप पाकिस्तान की महानता के संबंध में कुछ कभी क्यों नहीं कहते ?

स्वाध्याय ही ध्यान है - ओशो

 स्वाध्याय ही ध्यान है। महाराष्ट्र में एक गांव है सिरपुर, जहां आज सत्तर साल से अदालत में एक मुकदमा चल रहा है, दिगंबर और श्वेतांबर जैनों में। सत्तर साल से तो अदालत में चल रहा है, उसके पहले तीस साल तक अदालत के बाहर चला। मतलब पूरे सौ साल हो गए। असल में इसका उत्सव मनाना चाहिए सारे देश में। शताब्दी पूरी हो गई! और गजब का काम, सत्तर साल में सब वकील मर चुके, जिन-जिन ने भी मुकदमा हाथ में लिया दोनों तरफ से। सब मजिस्ट्रेट मर चुके। मजिस्ट्रेट-वकीलों की छोड़ो, सरकार भी बदल चुकी। जिन्होंने मुकदमा शुरू किया था वे मर चुके, उनके बेटे मर चुके। मगर उनके बेटे मुकदमा लड़ रहे हैं। मुकदमा जारी है। और बात यहां तक बढ़ गई कि एक बार मंदिर की महावीर की प्रतिमा तक को अदालत में गवाही देने आना पड़ा। सुनते हो, क्या-क्या गजब होते हैं! मंदिर पर ताला पड़ा हुआ है। झगड़ा क्या है? झगड़ा तुम सुनोगे तो बहुत हंसी आएगी। झगड़ा लंगोटी का है, क्योंकि श्वेतांबर महावीर को लंगोटी पहना कर पूजते हैं और दिगंबर लंगोटी निकाल कर पूजते हैं। सवाल यह है कि लंगोटी पहनाई जाए कि न पहनाई जाए। फिर जब श्वेतांबर पहना देते हैं तो दिगंबर निक

आशीर्वाद क्या है ? – ओशो

 “गुरु का आशीर्वाद” – ओशो प्रश्नकर्ता:- भगवान श्री, आशीर्वाद क्या है? और गुरु जब शिष्य के सिर पर हाथ धरता है, तब क्या प्रेषित करता है? और क्या आशीर्वाद लेने की भी क्षमता होती है? आशीर्वाद गुरु तो अकारण देता है, बेशर्त देता है; लेकिन तुम ले पाओगे या न ले पाओगे, यह तुम पर निर्भर है। इतना ही काफी नहीं है कि कोई दे और तुम ले लो; तुम्हें उसमें कुछ दिखाई भी पड़ना चाहिए, तभी तुम लोगे। वर्षा हो और तुम छाते की ओट में छिपकर खड़े हो जाओ, तो तुम न भीगोगे। आशीर्वाद बरसे, और तुम अहंकार की ओट में, अहंकार के छाते में छिप जाओ, तो तुम न भीगोगे। वर्षा हो जाएगी, मेघ आएंगे, और चले जाएंगे तुम सूखे रह जाओगे। तो, तुम्हारी तैयारी चाहिए। तुम्हारा स्वीकार का भाव चाहिए। ग्रहण करने की क्षमता चाहिए। चातक की भांति मुंह खोलकर आकाश की तरफ, प्रार्थना से भरा हुआ हृदय चाहिए। स्वाति की बूंद तुम्हारे बंद मुंह में न गिरेगी- मुंह खुला होना चाहिए, आकाश की तरफ उठा होना चाहिए, प्रतीक्षातुर होना चाहिए, तो ही। तो, जब तुम गुरु के पास झुको, तब वस्तुतः झुकना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि सिर ही झुके और हृदय बिना झुका रह जाए, त