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Showing posts from March 4, 2019

चंदूलाल मारवाड़ी - ओशो

जो बोले सो हरि कथा-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-02 जो बोले सो हरि कथा-(प्रश्नोत्तर)-ओशो प्रवचन-दूसरा-(जीवंत धर्म) श्री रजनीश आश्रम ,  पूरा ,  प्रातः ,  दिनांक २२ जुलाई ,  १९८० दूसरा प्रश्न: भगवान ,  थों तो म्हारा सगला मारवाड़ी समाज री नाक काट कर धर दी! कोई अच्छो भी करो ;  म्हारी लाज रखो! चंपालाल समाज सेवक! बात तो तूने भी बड़ी गजब की कही! मारवाड़ी समाज की कोई नाक है ?  जिसको मैं काट कर रख दूं। अरे ,  वह तो कब की कट गई भैया! किस नाक की बात कर रहे हो ? यही तो खूबी है मारवाड़ी समाज की: कोई लाख नाक काटे ,  नहीं काट सकता। नाक हो तो काटे! मारवाड़ी की नाक तुम काट ही नहीं सकते। किसी और की काट सकते हो ,  काट लेना। मारवाड़ी की नाक कोई नहीं काट सकता। यह तो तुम बिलकुल गलत बात कह रहे हो। तुम कह रहे हो: थों तो म्हारा सगला मारवाड़ी समाज री नाक काट कर धर दी! कोई अच्छो भी करो। म्हारी लाज रखो! लाज--और मारवाड़ी की ?  बड़ा कठिन काम दे रहे हो। चंपालाल समाज सेवक! सवाल तो बड़े कठिन-कठिन लोग पूछते हैं ,  मगर तुमने सबसे कठिन सवाल पूछा! चलो ,  कुछ कोशिश करें! एक बार एक अमरीकी ,  एक रूसी

ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है - ओशो

हंसा तो मोती चूने--(लाल नाथ)-प्रवचन-10 अवल गरीबी अंग बसै—दसवां प्रवचन  दसवा प्रवचन ; दिनाक 20 मई ,  1979 ; श्री रजनीश आश्रम ,  पूना यह महलों ,  यह तख्तों ,  यह ताजों की दुनिया यह इन्सां के दुश्मन समाजों की दुनिया  यह दौलत के भूखे रिवाजों की दुनिया  यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! हर एक जिस्म घायल ,  हर इक रूह प्यासी निगाहों में उलझन ,  दिलों में उदासी यह दुनिया है या आलमे-बदहवासी यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! यहां इक खिलौना है इन्सां की हस्ती यह बस्ती है मुर्दा -परस्तों की बस्ती यहां पर तो जीवन से है मौत सस्ती यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! जवानी भटकती है बदकार बनकर जवा जिस्म सजते हैं बाजार बनकर यहां प्यार होता है व्योपार बनकर यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! यह दुनिया जहां आदमी कुछ नहीं है वफा कुछ नहीं ,  दोस्ती कुछ नहीं है जहां प्यार की कद्र ही कुछ नहीं है यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! जला दो उसे फूंक डालो यह दुनिया मेरे सामने से हटा लो यह दुनिया तुम्हारी है तुम ही सम्हालो यह दुनिया