Skip to main content

Posts

Showing posts from March 6, 2019

प्यास और संकल्प | ध्यान सूत्र - ओशो

संकल्प कैसे लें - ओशो 1. सबसे पहली बात ,  सबसे पहला सूत्र , जो स्मरण रखना है ,  वह यह कि आपके भीतर एक वास्तविक प्यास है ?  अगर है ,  तो आश्वासन मानें कि रास्ता मिल जाएगा। और अगर नहीं है , तो कोई रास्ता नहीं है। आपकी प्यास आपके लिए रास्ता बनेगी। 2. दूसरी बात ,  जो मैं प्रारंभिक रूप से यहां कहना चाहूं ,  वह यह है कि बहुत बार हम प्यासे भी होते हैं किन्हीं बातों के लिए ,  लेकिन हम आशा से भरे हुए नहीं होते हैं। हम प्यासे होते हैं , लेकिन आशा नहीं होती। हम प्यासे होते हैं , लेकिन निराश होते हैं। और जिसका पहला कदम निराशा में उठेगा ,  उसका अंतिम कदम निराशा में समाप्त होगा। इसे भी स्मरण रखें , जिसका पहला कदम निराशा में उठेगा ,  उसका अंतिम कदम भी निराशा में समाप्त होगा। अंतिम कदम अगर सफलता और सार्थकता में जाना है ,  तो पहला कदम बहुत आशा में उठना चाहिए। 3. तीसरी बात ,  साधना के इन तीन दिनों में आपको ठीक वैसे ही नहीं जीना है ,  जैसे आप आज सांझ तक जीते रहे हैं। मनुष्य बहुत कुछ आदतों का यंत्र है। और अगर मनुष्य अपनी पुरानी आदतों के घेरे में ही चले ,  तो साधना की नई दृष्टि खोलने म

पति और पत्नी का संबंध और प्रेम - ओशो

मराैै है जोगी मरौ-(प्रवचन-08) आओ चाँदनी को बिछाएं ,  ओढ़े— प्रवचन—आठवां 8 अक्‍टूबर ,  1978 ; श्री रजनीश आश्रम ,  पूना। आखिरी प्रश्न : मैं अपनी पत्नी के अतिरिक्त अन्य स्त्रियों में भी उत्सुक हो जाता हूं लेकिन जब मेरी पत्नी किसी पुरुष में उत्सुकता दिखाती है तो मुझे बड़ी ईर्ष्या होती है भयंकर अग्नि में मैं जलता हूं। पु रुषों ने सदा से अपने लिए सुविधाएं बना रखी थीं ,  स्त्रियों को अवरुद्ध कर रखा था। पुरुषों ने स्त्रियों को बंद कर दिया था मकानों की चार दीवारों में ,  और पुरुष ने अपने को मुक्त रख छोड़ा था। अब वे दिन गए। अब तुम जितने स्वतंत्र हो ,  उतनी ही स्त्री भी स्वतंत्र है। और अगर तुम चाहते हो कि ईर्ष्या में न जलों तो दो ही उपाय हैं। एक तो उपाय है कि तुम स्वयं भी वासना से मुक्त हो जाओ। जहा वासना नहीं वहां ईर्ष्या नहीं रह जाती। और दूसरा उपाय है कि अगर वासना से मुक्त न होना चाहो तो कम—से—कम जितना हक तुम्हें है ,  उतना हक दूसरे को भी दे दो। उतनी हिम्मत जुटाओ। मैं तो चाहूंगा कि तुम वासना से मुक्त हो जाओ। एक स्त्री जान ली तो सब स्त्रियां जान लीं। एक प

धन्यभागी हो , कृतज्ञ हो - ओशो ।

मराैै है जोगी मरौ-(प्रवचन-16) नयन   मधुर   आज   मेरे — प्रवचन — सोलहवां    दिनांक: 16 नवंबर ,  1978 ; श्री रजनीश आश्रम ,  पूना। धन्यभागी हो। इस धन्यवाद को प्रगट करना ,  अनेक— अनेक रूपों में ;  पर भूलकर भी ,  अनजान में भी ,  अचेतन में भी ,  अस्मिता को मत उठने देना। नयन मधुकर आज मेरे एक अनजानी किरण ने गुदगुदी उर में मचा दी , फूट प्राणों से पड़ा गुंजन सबेरे ही सबेरे! नयन मधुकर आज मेरे! दूर की मधुगंध पागल प्यास प्राणों में जगा दी विश्व—मधुवन में लगाता फिर रहा मैं लाख फेरे! नयन मधुकर आज मेरे!             ये पलक—पांखें नशे में झप रही हैं ,  खुल रही हैं पुतलियां मदहोश—सी हैं , कंटकों को कौन हेरे! नयन मधुकर आज मेरे! दूर कुंजों की कली! मुझसे नयन मेरे न छीनो! तुम न घेरे हो इन्हें ,  पर है तुम्हारा रूप घेरे! नयन मधुकर आज मेरे! आंखें तुम्हारी भरने लगीं हैं दूर के प्रकाश से ,  पहली किरण आयी है। और कान तुम्हारे भरने लगे हैं दूर की मधुर— ध्वनि से ,  पहले स्वर का संबंध हुआ है। सुवास उठने लगी है। अभी बहुत होने को है। यह कुछ भी नही

हंगामा है क्यों बरपा - ओशो

सपना यह संसार--(प्रवचन--02) संसार एक उपाय है—(प्रवचन—दूसरा) दिनांक ,  गुरुवार ,  12 जुलाई 1979 ; श्री रजनीश आश्रम ,  पूना हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी—सी जो पी ली है डाका तो नहीं डाला ,  चोरी तो नहीं की है। नात्तजरबा —कारी से वाइज की ये बातें हैं इस रंग को क्या जाने ,  पूछो तो कभी पी है ? उस मय से नहीं मतलब ,  दिल जिससे है बेगाना मकसूद है उस मय से दिल ही मैं जो खिंचती है। वां दिल में कि सदमे दो ,  यां  जी में कि सब सह लो उनका भी अजब दिल है ,  मेरा भी अजब जी है। हर जर्रा चमकता है ,  अनवारे —इलाही से हर से कहती है ,  हम हैं तो खुदा भी है। सूरज में लगे धब्बा ,  फितरत के हैं बुत हमको कहें काफिर अल्लाह की मर्जी है। घबड़ाओ  मत! हंगामा तो  मचेगा —थोड़े—से पीने से मच जाता है। और अभी तो बहुत पीना है! हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी—सी जो पी ली है डाका तो नहीं डाला ,  चोरी तो नहीं की है। अपने दरवाजे पर तख्ती लगाकर टांग देना— हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी—सी जो पी ली है डाका तो नहीं डाला ,  चोरी तो नहीं की है। और जो कर रहे हैं न