Skip to main content

कुंडलिनी (भाग-1) Kundalini (part-1)

कुंडलिनी (भाग-1)   Kundalini (part-1)


दूसरा प्रश्नः ओशो, मैं कुंडलिनी जगाना चाहता हूं। अभी तक जागी नहीं। क्या मुझसे कोई भूल हो रही है? मार्गदर्शन दें।
झरत दसहुं दिस मोती-(प्रवचन-14)
चौहदवां-- प्रवचन
जगदीश! भइया, कुंडलिनी ने तुम्हारा कुछ बिगाड़ा! सोई है, बिचारी को सोने दो! काहे पीछे पड़े हो? तुम्हें और कोई काम नहीं है? कुंडलिनी क्यों जगाना चाहते हो? फिर जग जाए तो फिर आ कर कहोगे कि अब इसे सुलाओ! कि अब यह कुंडलिनी जग गई, अब यह चैन नहीं लेने देती।
शब्द सुन लिए हैं।
और शब्द सुन लिए हैं तो शब्दों के साथ वासना जुड़ जाती है। कोई जैन आ कर नहीं पूछता कि मेरी कुंडलिनी क्यों नहीं जग रही है, क्योंकि उसके शास्त्रों में ये शब्द नहीं है। कोई बौद्ध नहीं पूछता, कोई मुसलमान नहीं पूछता, कोई ईसाई नहीं पूछता, कोई पारसी नहीं पूछता, कोई यहूदी नहीं पूछता..यहां सब मौजूद हैं..हिंदुओं भर को यह शब्द पकड़ गया है: कुंडलिनी! और कुंडलिनी जगा कर रहेंगे! और नहीं जग रही है तो तुम्हें शक हो रहा है कि कहीं कोई भूल तो नहीं हो रही है!
जगदीश, तुमसे और भूल! जरा नाम तो देखो अपना..‘जगदीश!’ तुमसे भूल नहीं हो सकती, भइया! तुमसे ही भूल होने लगी तो जगत का क्या होगा?
मुल्ला नसरुद्दीन का दावा था कि उससे कभी गलती नहीं हुई। लोग उससे ऊब गए थे सुन-सुन कर यह बात। जब देखो तब; जहां देखो वहां; जब मौका मिल जाए, छोड़े ही नहीं अवसर यह बताने का कि मुझसे कभी कोई भूल नहीं हुई; जीवन में मैंने गलती की ही नहीं। किंतु एक दिन जब उसने कहा कि एक बार उससे सचमुच गलती हो गई थी, तो सुनने वाले एकदम चैंक पड़े। मित्रों को भरोसा न आया अपने कानों पर, कि नसरुद्दीन कहे कि मुझसे और गलती हो गई!
एक मित्र ने कहा कि नसरुद्दीन क्या कह रहे हो? तुमसे और गलती! कभी नहीं, कभी नहीं! ऐसा हो ही कैसे सकता है? क्या कह रहे हो, कुछ सोच रहे हो कि बिना सोचे बोल गए हो?
नसरुद्दीन ने कहा: हां भई, एक बार हो गई थी। एक बार मैंने सोचा था कि मैं गलती पर हूं, किंतु बाद में पता चला कि मैं ठीक था।
गलती वगैरह कुछ भी नहीं हो रही है। कुंडलिनी जगाने की भी कोई जरूरत नहीं है। कुंडलिनी जगाने का भी एक शास्त्र है, लेकिन उससे गुजरना आवश्यक नहीं है। जीसस बिना उससे गुजरे पहुंच गए, बुद्ध उससे बिना गुजरे पहुंच गए, महावीर पहुंच गए। उस रास्ते से जाना आवश्यक नहीं है। और उस रास्ते से जाना खतरनाक भी है; क्योंकि शरीर की प्रसुप्त शक्तियों को छेड़ना खतरे से खाली नहीं है। अच्छ तो यह है कि उन्हें बिना छेड़े गुजर जाओ। उन्हें छेड़ने का सबसे बड़ा खतरा तो यह है कि हो सकता है कि तुम फिर उन पर काबू न पा सको। तुम्हारे भीतर इतना बड़ा विस्फोट हो कि तुम्हारी समझ के बाहर पड़ जाए। और समझ के बाहर पड़ ही जाएगा। और तुम अगर नियंत्रण न पा सको तो विक्षिप्त हो जाओगे।
इस सदी का एक बहुत बड़ा सदगुरु था..जार्ज गुरजिएफ। वह कुंडलिनी के बहुत खिलाफ था। खिलाफत के कारण कुंडलिनी को उसने नया नाम ही दे दिया था..‘कुंडाबफर‘।’ बफर लगे रहते हैं न, तुमने देखे हों टेन के दो डिब्बों के बीच में जो लगे रहते हैं, उनको कहते हैं बफर। उससे कभी टक्कर वगैरह हो जाए तो डब्बे एक-दूसरे पर नहीं चढ़ जाते। वे जो बीच में बफर लगे रहते हैं, वे धक्के को पी जाते हैं। ऐसे ही कार में स्प्रिंग लगे रहते हैं, वे भी बफर हैं; ...उनके कारण भारतीय रास्ते पर भी कार चल सकती है! नहीं तो पूना से बंबई ही नहीं पहुंच सकते, और दूर की बात छोड़ो। स्प्रिंग तुम्हारी चोटों को पी जाते हैं, नहीं तो वे चोटें तुमको पीनी पड़ेंगी। मल्टी179ोक्चर हो जाएगा बंबई पहुंचते-पहुंचते। उतरोगे नीचे तो घर के लोग ही नहीं पहचान पाएंगे कि तुम्हीं हो।
एक दर्जी मुल्ला नसरुद्दीन को अचकन और चूड़ीदार पाजामा बेच रहा था। खींचतान कर किसी तरह उसको चूड़ीदार पाजामा पहना दिया..दो घंटे लगे। नसरुद्दीन ने कहा कि भई, यह तो बहुत कठिन काम है। और तुमने किसी तरह चढ़ा तो दिया, अब मुझे डर लग रहा है कि इसको मैं उतार सकूंगा कि नहीं। और आईने के सामने खड़ा हुआ तो बिल्कुल बंदरछाप काला दंतमंजन! उसने कहा कि भइया, यह तुमने मेरी क्या गति कर दी! यह दिल्ली में नेतागणों की होती रहे, होती रहे, मगर मुझे कोई काला दंतमंजन बेचना है? एक ढोल और दे दो मुझे! यह कहां का कपड़ा मुझे पहना दिया? निकालो!
मगर दर्जी भी दर्जी था। दर्जी ने कहा कि तुम समझ ही नहीं रहे। तुम्हें आधुनिक सयता का कोई बोध ही नहीं है। अरे, यह राष्ट की वेशभूषा है..राष्टीय वेश है! और तुम इतने सुंदर लग रहे हो! तुम जरा बाहर तो हो कर आओ! और तुम इतने जवान लग रहे हो कि तुम्हारे मित्र भी तुम्हें पहचान नहीं सकेंगे।
नहीं माना दर्जी तो मुल्ला जरा बाहर सड़क पर चक्कर लगाने लगा। चलना ही मुश्किल हो रहा था, अब गिरे तब गिरे की हालत थी..जो कि नेतागणों की रहती ही है, अब गिरे तब गिरे! जब तक न गिरे तब तक समझो चमत्कार है! गिरे तो उठना फिर बिल्कुल मुश्किल हो जाता है। उठ आए तो समझो महा चमत्कार है! कोई पांच-सात मिनट बाद ही वापिस लौट आया। जैसे ही भीतर आया, वह दर्जी उठ कर खड़ा हुआ ..कहिए, महाशय आइए, आपकी क्या सेवा करूं? आप कहां से आए हैं? आप अजनबी मालूम होते हैं इस बस्ती में। और कपड़े आपके क्या सुंदर! मैं तो बिल्कुल पहचान ही नहीं पा रहा हूं, दर्जी बोला।
यही हालत हो जाएगी..घर के लोग भी पहचान न सकें। पत्नी न पहचाने पति को, जिसने कि कसम खाई थी जन्मों-जन्मों तक पहचानने की।
वह तो...गुरजिएफ उसको कहता था कुंडाबफर।
शरीर की एक ऊर्जा है, जो शरीर और आत्मा के बीच बफर का काम करती है। नहीं तो शरीर के भीतर आत्मा का रहना मुश्किल हो जाए, असंभव हो जाए। उस ऊर्जा की एक पर्त तुम्हारी आत्मा को घेरे हुए है। तुम्हारी आत्मा और शरीर के बीच में उस ऊर्जा की एक पर्त है। इसलिए शरीर को लगी चोटें आत्मा तक नहीं पहुंचतीं। इसलिए शरीर जवान हो, बूढ़ा हो, जीए, मरे, कोई घटना आत्मा तक नहीं पहुंचती।
गुरजिएफ ने शब्द ठीक चुना था..कुंडाबफर। इसको जगाने की कोई जरूरत नहीं है। इसका काम भलीभांति हो रहा है। इसे जगा कर भी स्वयं तक पहुंचा जा सकता है, लेकिन वह नाहक की झंझटें मोल लेनी हैं। वह ऐसे ही है जैसे कोई कान अपना उल्टे घूम कर सिर के पीछे से पकड़ने की कोशिश करे! कोई प्रयोजन नहीं है। मगर योग की बहुत-सी प्रक्रियाएं उल्टी हो गयीं। उल्टी हो गई हैं, इसलिए कठिन। कठिन अहंकार को बहुत जंचता है। सिर के बल खड़े हैं तो बहुत जंचता है। जैसे कोई महान् कार्य कर रहे हैं! सिर्प बुद्धू मालूम पड़ते हैं, मगर सिर के बल खड़े हैं तो महान् कार्य कर रहे हैं। शीर्षासन कर रहे हैं। शरीर को इरछा-तिरछा कर रहे हैं। शरीर को ऐसा आड़ा-तिरछा कर रहे हैं कि कोई दूसरा न कर सके। और दूसरे न कर सकें..क्योंकि इसके लिए अयास चाहिए..तो आप महात्मा हो गए, महान् योगी हो गए। क्योंकि कोई दूसरा इसको एकदम नहीं कर सकता, जो आप कर रहे हैं।
ठीक उसी तरह कुंडलिनी का भी उपद्रव मोल लिया अहंकार ने ही। इसको जगाने से कुछ सिद्धियां उपलब्ध हो सकती हैं। और अहंकार सिद्धियों से बहुत-बहुत प्रसन्न होता है। जैसे अगर कुंडलिनी को तुम जगाओ...उसको जगाने की प्रक्रियाएं हैं। प्रक्रियाएं सब जटिल हैं और कठिन हैं, उलझनभरी हैं; सुगम नहीं, सरल नहीं। इसलिए भारत में एक परंपरा चली है, जो इसके बिल्कुल विपरीत रही है..सहज परंपरा, सहज-यान। जिसका कहना है: किसी तरह के उपद्रव में मत पड़ो! क्योंकि छोटी-मोटी चीजें पैदा हो जाएंगी। जैसे अगर तुम्हारी कुंडलिनी जाग जाए तो तुम दूसरे के विचार पढ़ सकते हो। मगर अपने ही विचार काफी नहीं हैं पढ़ने को? अब दूसरे की खोपड़ी का कचरा तुम पढ़ोगे, उससे क्या मिलने वाला है? अपनी खोपड़ी में ही काफी भरा है। इससे ही तो निपट नहीं पा रहे हो, कि अब दूसरों के विचार पढ़ोगे! हां, थोड़ा-बहुत चमत्कार लोगों को दिखाने लगोगे तुम। जैसे कोई आया और उसने पूछा ही नहीं कि समय कितना है और तुमने बता दिया कि साढ़े नौ बजे हैं। तो वह चैंकेगा एकदम, क्योंकि पूछने आया था कि कितना बजा है। मगर उसका सार क्या है? पूछ ही लेने देते, क्या बिगड़ रहा था? इसके लिए कुंडलिनी जगाई! और कुंडलिनी जगाने में वर्षो लगेंगे और यह काम तो क्षण भर में हो जाता, उसको पूछना था तो पूछ लेता।
रामकृष्ण के पास एक आदमी आया, जिसकी कुंडलिनी जग गई थी। वह बोला कि मैं पानी पर चल लेता हूं। ...कुंडलिनी जग जाए तो पानी पर चलने की संभावना है, क्योंकि कुंडलिनी तुम्हें पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से तोड़ दे सकती है। मगर खतरे भी हैं उसके, क्योंकि पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से टूट गए तो तुम्हारे शरीर की बहुत-सी प्रक्रियाएं अस्त-व्यस्त हो जाएंगी, जो कि गुरुत्वाकर्षण से बंधे होने के कारण ही व्यवस्थित हैं।
वह आदमी पानी पर चल लेता था। उसने रामकृष्ण को आते ही से चुनौती दी कि तुम बड़े परमहंस...लोग कहते हैं महात्मा! अगर हो महात्मा तो आओ, चलो गंगा पर! मैं पानी पर चल सकता हूं!
रामकृष्ण ने कहा कि बहुत बढ़िया! कितना समय लगा पानी पर चलना सीखने में? उसने कहा: अठारह साल लगे। रामकृष्ण ने कहा: हद हो गई! मुझे तो जब उस पार जाना होता है, दो पैसे में पार चला जाता हूं। दो पैसे का काम अठारह साल में तुमने किया! और ऐसे मुझे ज्यादा जाना भी नहीं पड़ता, कभी चार-छः महीने में एक दफा। सो साल में समझो कि एक चार पैसे का खर्चा है। अठारह साल में समझो कि एक रुपए का खर्चा। एक रुपए के पीछे अठारह साल गंवा दिए। भइया, तू होश में है? और पानी पर चल कर करेगा क्या? ऐसा घूम-फिर कर फिर यहीं आ जाएगा।
रामकृष्ण ठीक कह रहे हैं। मगर वह आदमी अकड़ से भरा हुआ था, वह अहंकार से भरा हुआ था।
सूफी फकीर स्त्री हुई राबिया, उसके जीवन में भी ऐसा उल्लेख है। फकीर हसन उसके पास आया। हसन की लगता है कुंडलिनी जग गई थी। ...और उसने कहा: राबिया, ..राबिया सुबह-सुबह बैठ कर कुरान पढ़ रही थी..अरे, यहां क्या कुरान पढ़ रही है! चलो पानी पर टहलते हुए कुरान पढ़ेंगे। वह दिखाना चाहता था राबिया को। राबिया की ख्याति थी। राबिया हुई भी अद्भभुत स्त्री। उसी कोटि की जैसे रामकृष्ण, जैसे रमण।
राबिया ने कहा: हसन, पानी पर! कुरान पढ़ने के लिए! अरे, अगर दिल में कुछ जोश ही आ गया है, देखते हो वह बदली सफेद आकाश में तैर रही है, उस पर बैठ कर क्यों न पढ़ें! चलो, बदली पर बैठेंगे, वहीं पढ़ेंगे।
...यह तो राबिया ने मजाक किया। ...
हसन ने कहा: बदली पर! बदली पर बैठना मुझे नहीं आता। ....इतनी कुंडलिनी अभी मेरी नहीं जगी। ...तो राबिया ने कहा: और जगाओ! क्योंकि मुझे तो जब जोश मारती है कुंडलिनी...तो बस सीधे बदली पर बैठें! जब बदली पर बैठना आ जाए तब आना। पानी में चलने में क्या रखा है! यह तो कोई भी कर ले। यह तो छोटे-मोटे लोग कर लेते हैं।
हसन को होश आया कि राबिया ठीक कह रही है, सार क्या है? मगर अकड़!
अहंकार को बहुत मजा आता है इस बात में कि मैं कुछ ऐसा करके दिखा दूं जो कोई दूसरा नहीं कर सकता। अब जगदीश, तुम्हें क्या फिकर पड़ी है? कहते हो? कुंडलिनी जगाना चाहता हूं। और इस तरह की बातों में पड़े, तो किसी झंझटी के हाथ में पड़ जाओगे। वह गोबरपुरी के बाबा चुक्तानंद, ऐसे किसी के चक्कर में पड़ जाओगे। उन्होंने कई का गुड़ गोबर कर दिया; तुम्हारा गुड़ भी गोबर कर देंगे। कुछ लोगों का धंधा ही यह है। और फिर मुझसे मत कहना कि अब गोबर को गुड़ करो! वह बहुत कठिन काम है। बिगाड़ना बहुत आसान, सुधारना बहुत मुश्किल है।
कुंडलिनी तुम्हें सिद्धि देगी, यह तो सिर्प एक संभावना है; ज्यादा संभावना तो यह है कि विक्षिप्तता देगी। इसलिए तुम अनेक साधु-संन्यासियों को पागल होते देखोगे। और पागल हो जाने का कारण क्या होता है? उन्होंने जीवन का जो सहज क्रम है, उसको तोड़ दिया। जो ऊर्जा किसी और काम के लिए बनी थी, उसको उन्होंने मस्तिष्क पर चढ़ा लिया।
कुंडलिनी जगने का अर्थ होता है कि जो ऊर्जा तुम्हारे काम-केंद्र पर सोई हुई है, इसे उठा कर मस्तिष्क में चढ़ा लो। यह खतरनाक धंधा है। क्योंकि खोपड़ी में वैसे ही काफी उपद्रव मचा हुआ है। वहीं तो तुम्हारा पागलखाना है। और कामऊर्जा को भी वहां ले जाओ! तो तुम विक्षिप्त हो सकते हो। कुंडलिनी जगाने वाले अधिक लोग विक्षिप्तता में पहुंच जाते हैं। मस्तिष्क फटा पड़ता है; क्योंकि ऊर्जा सम्हाले नहीं सम्हलती। और ऊर्जा इस हालत में ले आती है कि फिर संगत-असंगत कुछ भी नहीं सूझता; ऊलजुलूल बकेंगे।
लेकिन हमारा देश तो अद्भभुत है! कोई ऊलजुलूल बके तो हम कहते हैं: महात्मा सधुक्कड़ी भाषा बोल रहे हैं। सधुक्कड़ी! अगर महात्मा गाली दें और लोगों के पीछे डंडा लेकर भागें, तो हम समझते हैं प्रसाद दे रहे हैं। गाली बकें तो समझो कि आशीष। हमारे महात्मा भी अदभुत हैं और हम उनसे भी ज्यादा हैं! हम हर चीज में से कुछ-न-कुछ निकाल लेते हैं। पागल ही हो गए लोग...मैं ऐसे बहुत से लोगों को जानता हूं, जो विक्षिप्त हुए हैं; जो होश में नहीं हैं; लेकिन उनके भक्तगण समझते हैं कि वे महासमाधि में लीन हैं। और अगर उनकी समझ में नहीं आता वे क्या बोल रहे हैं, तो उसका कारण यह है कि वे बड़ी गहरी बातें बोल रहे हैं। वे कुछ नहीं बोल रहे! जैसे कोई बहुत शराब पी ले और अल्ल-बल्ल बके; या कोई सन्निपात में आ जाए और ऊलजुलूल बके! अब तुम्हारी मर्जी हो तो एकदम उसके पैर पकड़ लेना। कहना कि यह महाज्ञान की बातें बोल रहा है।
मुझे ऐसे कई लोगों को मिलाया गया है, जो सिर्प विक्षिप्त हैं, जिनको मानसिक चिकित्सा की जरूरत है। और उनकी बुनियादी भूल वही है, जगदीश, जो तुम करना चाहते हो। और एक दफा मस्तिष्क में ऊर्जा तुम्हारी सामथ्र्य के बाहर पहुंच जाए तो तुम क्या करोगे? तुम्हारे वश के बाहर बात हो जाएगी।
कुंडलिनी जगाने की कोई आवश्यकता नहीं है। यहां भी हम कुंडलिनी ध्यान करते हैं, लेकिन प्रयोजन कुंडलिनी जगाना नहीं है प्रयोजन कुछ और है। प्रयोजन है: भीतर वह जो कुंडलिनी की ऊर्जा है, उसको नृत्य देना। प्रयोजन बड़ा अलग है। तुम्हारे भीतर जो ऊर्जा है, अभी, सोई है; या तो जगाई जाए, तो जगाने के लिए धक्के देने होंगे, झकझोरना होगा। मेरा अपना अनुभव यह है कि जगाने की कोई जरूरत नहीं, इसे सिर्प नृत्य दिया जाए। इसे संगीतपूर्ण किया जाए। इसे आनंदोत्सव में बदला जाए।
तो धक्के देने की कोई जरूरत नहीं है।
पश्चिम का एक बहुत बड़ा नर्तक निजिंस्की हुआ ..अभी इसी सदी में हुआ। वह जब नाचता था तो कभी-कभी ऐसी घटना घट जाती थी कि वह इतनी ऊंची छलांग लगाता था जो कि गुरुत्वाकर्षण के नियम के विपरीत है। वैज्ञानिक हैरान थे; यह हो नहीं सकता। इतनी ऊंची छलांग लग ही नहीं सकती; लगनी चाहिए नहीं; क्योंकि गुरुत्वाकर्षण का नियम इतने दूर तक तुम्हें उठने नहीं देगा। और भी चमत्कार की बात थी, वह यह, कि जब वह इतनी ऊंची छलांग लगाता था और वापिस लौटता था, तो इतने आहिस्ते लौटता था जैसे कि कोई पक्षी का पंख आहिस्ता-आहिस्ता, डोलता-डोलता, हवा में तैरता-तैरता नीचे आ रहा हो। वह भी बिल्कुल उलटी बात है। गुरुत्वाकर्षण एकदम से खींचता है चीजों को, जैसे कोई पत्थर गिरे, न कि कोई पंख।
निजिंस्की से जब भी पूछा गया कि यह तुम कैसे करते हो, तो वह कहता कि यह मैं खुद भी सोचता हूं! लेकिन मैं करता हूं, यह बात ठीक नहीं है, यह हो जाता है। मैंने जब भी करने की कोशिश की है, तभी यह नहीं हुआ। करने की मैं कई दफा कोशिश कर चुका..क्योंकि इसका एकदम चमत्कार की तरह प्रभाव पड़ता है; एकदम सन्नाटा छा जाता है, दर्शक एकदम विमुग्ध हो जाते हैं, एकदम सांसें रुक जाती हैं लोगों की; समझ में ही नहीं आता क्या हुआ! और मुझे भी बड़ा आनंद आता है, अपूर्व आनंद आता है! एकदम भीतर शांति हो जाती है। जैसे नहा गया भीतर। जैसे आत्मा नहा गई। मगर जब भी मैं करने की कोशिश करता हूं, यह नहीं होता। यह कभी-कभी होता है जब मैं करने की कोशिश में होता ही नहीं, जब मैं नाच में लीन होता हूं, ऐसा लीन होता हूं कि मेरा अहंकार बिल्कुल मिट ही जाता है, तब यह घटना घटती है। तो अब तो मैंने करना छोड़ दिया, निजिंस्की कहता था। अब तो जब यह घटता है, घटता है, नहीं घटता है, नहीं घटता। एक सूत्र मेरी समझ में आ गया है कि यह किया नहीं जा सकता, सिर्प घट सकता है। और घटने का अर्थ है कि मेरा अहंकार लीन हो जाए तो बस, कुछ रहस्यपूर्ण ढंग से यह घटना घटती है।
निजिंस्की अनजाने ही उस अवस्था में पहुंच रहा था, जिसमें मैं कुंडलिनी ध्यान के द्वारा तुम्हें ले जाना चाह रहा हूं। कुंडलिनी ध्यान का वही प्रयोजन नहीं है जो सदियों तक रहा है। मेरे हिसाब से हर चीज का मैं प्रयोजन बदल रहा हूं। कुंडलिनी ध्यान का यहां अर्थ है: तुम नाचो, मग्न होओ, डूबो! ऐसे डूब जाओ कि तुम्हारा अहंकार अलग न रह जाए, बस, फिर तुम्हारे भीतर कुछ घटेगा, तुम एकदम गुरुत्वाकर्षण के बाहर हो जाओगे; और तुम अचानक भीतर पाओगे, ऐसा सन्नाटा छाया है, ऐसा क्वांरा सन्नाटा, जो तुमने कभी नहीं जाना था! तुम गद्गद हो जाओगे। तुम लौटोगे जब वापिस, तुम दूसरे ही व्यक्ति हो जाओगे।
यह कुंडलिनी जगाने की पुरानी प्रक्रिया नहीं है। यह कुंडलिनी को नृत्य देने की प्रक्रिया है। यह बात ही और है। तो अगर तुम्हें कुंडलिनी जगाना है, तो भइया कहीं और! अगर कुंडलिनी को नृत्य देना है, तो यहां यह घटना घट सकती है।
और फासले बहुत हैं।
कुंडलिनी को नृत्य मिल जाए, भीतर की ऊर्जा नाचने लगे, तो कोई खतरा नहीं है, तुम विक्षिप्ता कभी नहीं होओगे। तुम और भी ज्यादा स्वस्थ हो जाओगे। तुम्हारी विक्षिप्ता कुछ होगी तो समाप्त हो जाएगी। और तुम्हारे अहंकार को कभी बल नहीं मिलेगा, कि पानी पर चल कर दिखा दूं, कि बादल में आकाश में बैठ कर दिखा दूं, कि हवा में उड़ कर दिखा दूं। क्योंकि अहंकार मिटेगा तभी यह नृत्य होगा। और जब भी अहंकार वापस लौटेगा, तुम यह कर ही नहीं पाओगे। यह तुम्हारे अहंकार के वश में नहीं होने वाली बात।
कुंडलिनी जगाने की जो प्रक्रियाएं हैं, वे तुम्हारे अहंकार को भर सकती हैं। यह प्रक्रिया तुम्हारे अहंकार को मिटाती है पोंछती है।
पतंजलि ने जब सूत्र लिखे थे, उस समय को पांच हजार साल बीत गए। पांच हजार साल में आदमी को बहुत कुछ अनुभव हुए हैं। पतंजलि खुद भी अगर आज वापस लौटें तो मुझसे राजी होंगे, क्योंकि पांच हजार साल में जो मनुष्य को अनुभव हुए हैं पतंजलि को उनका हिसाब रखना पड़ेगा। उनके आधार पर फिर से योग-सूत्र लिखना होगा।
बुद्ध को ढाई हजार वर्ष हो गए, महावीर को हुए ढाई हजार वर्ष हो गए..काफी समय है यह! दुनिया बैलगाड़ी से जेट विमान तक पहुंच गई। मनुष्य वैसा ही नहीं रहा जैसा था। और इस बीच हमने जो अनुभव किए हैं, उन अनुभवों ने हमें बहुत कुछ सिखाया है।

  1. मैं जो भी ध्यान की प्रक्रियाएं दे रहा हूं, वे अधुनातन हैं। अगर पुरानी प्रक्रियाएं भी उपयोग कर रहा हूं, तो उनमें से उस सब को काट दिया है जिनसे तुम्हें खतरे हो सकते हैं और उस सब को जोड़ दिया है, जो कि इन ढाई-तीन हजार, पांच हजार सालों के अनुभव से जोड़ा जाना चाहिए। यह एक अभिनव प्रयोग हो रहा है। अगर शब्द मैं पुराने भी उपयोग कर रहा हूं..क्योंकि शब्द तो पुराने ही हैं, सभी शब्द पुराने ही हैं, कोई न कोई शब्द उपयोग करना होगा..तो भी मैं उनको अर्थ अपने दे रहा हूं। पुराने शब्दों के वृक्षों पर अपने अर्थ की कलमें लगा रहा हूं। इसलिए तुम मेरे शब्दों को ठीक पुराने अर्थो में मत लेना। नहीं तो तुम मुझे नहीं समझ पाओगे। तुम कुछ का कुछ समझ लोगे। तुम वंचित ही रह जाओगे उस अनूठे प्रयोग से जो यहां चल रहा है।

Comments

Post a Comment

ओशो देशना (अविरल,अविस्मरणीय और आनंददायी)

Shiv sutra शिव सूत्र (ओशो) PDF

शिव—सूत्र—(ओशो) (समाधि साधपा शिवर, श्री ओशो आश्रम, पूना। दिनांक 11 से 20 सितंबर, 1974 तक ओशो द्वारा दिए गए दस अमृत—प्रवचनो का संकलन। Download Shiv Sutra (शिव सूत्र) PDF अनुक्रम         #1: जीवन-सत्य की खोज की दिशा         #2: जीवन-जागृति के साधना-सूत्र         #3: योग के सूत्र : विस्मय, वितर्क, विवेक         #4: चित्त के अतिक्रमण के उपाय         #5: संसार के सम्मोहन, और सत्य का आलोक         #6: दृष्टि ही सृष्टि ‍है         #7: ध्यान अर्थात चिदात्म सरोवर में स्नान         #8: जिन जागा तिन मानिक पाइया         #9: साधो, सहज समाधि भली!         #10: साक्षित्व ही शिवत्व है   Description Reviews

जिन खोजा तिन पाइयां -ओशो Pdf

जिन खोजा तिन पाइयां।                          -ओशो (कुंडलिनी - योग पर ध्यान शिविर, नारगोल में ध्यान प्रयोगों के साथ प्रवचन एवम मुम्बई में प्रश्नोत्तर चर्चाओं सहित "19" ओशो प्रवचनों का अपूर्व संकलन) pdf file  428 pages Download Pdf file Here Language :- Hindi  Size :- 3.3mb Type :- Pdf file जिन खोजा तिन पाइयां ऊर्जा का विस्तार है जगत और ऊर्जा का सघन हो जाना ही जीवन है। जो हमें पदार्थ की भांति दिखाई पड़ता है, जो पत्थर की भांति भी दिखाई पड़ता है, वह भी ऊर्जा, शक्ति है। जो हमें जीवन की भांति दिखाई पड़ता है, जो विचार की भांति अनुभव होता है, जो चेतना की भांति प्रतीत होता है, वह भी उसी ऊर्जा, उसी शक्ति का रूपांतरण है। सारा जगत-- चाहे सागर की लहरें, और चाहे सरू के वृक्ष, और चाहे रेत के कण, और चाहे आकाश के तारे, और चाहे हमारे भीतर जो है वह, वह सब एक ही शक्ति का अनंत-अनंत रूपों में प्रगटन है। ओशो  कुंडलिनी-यात्रा पर ले चलने वाली इस अभूतपूर्व पुस्तक के कुछ विषय बिंदु: शरीर में छिपी अनंत ऊर्जाओं को जगाने का एक आह्वान सात चक्रों व सात शरीरो

ध्यान सूत्र। (Dhyan sutra -ओशो Pdf file

ध्यान सूत्र। (Dhyan sutra)                                 -ओशो DHYAAN SUTRA 〰〰 🎙HINDI 📆1965 💿9 DISCOURSES अनुक्रमणिका : प्रवचन 1 - प्यास और संकल्प    3 प्रवचन 2 - शरीर-शुद्धि के अंतरंग सूत्र    18 प्रवचन 3 - चित्त-शक्तियों का रूपांतरण    42 प्रवचन 4 - विचार-शुद्धि के सूत्र    62 प्रवचन 5 - भाव-शुद्धि की कीमिया    77 प्रवचन 6 - सम्यक रूपांतरण के सूत्र    96 प्रवचन 7 - शुद्धि और शून्यता से समाधि फलित    119 प्रवचन 8 - समाधि है द्वार    133 प्रवचन 9 - आमंत्रण--एक कदम चलने का  👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻 Download Dhyan Sutra (ध्यान सूत्र) PDF

जीवन की खोज – Jeevan Ki खोज pdf osho

जीवन की खोज – Jeevan Ki Khoj अनुक्रम       #1: प्यास       #2:  मार्ग       #3: द्वार       #4: प्रवेश Download Jeevan Ki Khoj (जीवन की खोज) "Osho" PDF जीवन क्या है? उस जीवन के प्रति प्यास तभी पैदा हो सकती है, जब हमें यह स्पष्ट बोध हो जाए, हमारी चेतना इस बात को ग्रहण कर ले कि जिसे हम जीवन जान रहे हैं, वह जीवन नहीं है। जीवन को जीवन मान कर कोई व्यक्ति वास्तविक जीवन की तरफ कैसे जाएगा? जीवन जब मृत्यु की भांति दिखाई पड़ता है, तो अचानक हमारे भीतर कोई प्यास, जो जन्म-जन्म से सोई हुई है, जाग कर खड़ी हो जाती है। हम दूसरे आदमी हो जाते हैं। आप वही हैं, जो आपकी प्यास है। अगर आपकी प्यास धन के लिए है, मकान के लिए है, अगर आपकी प्यास पद के लिए है, तो आप वही हैं, उसी कोटि के व्यक्ति हैं। अगर आपकी प्यास जीवन के लिए है, तो आप दूसरे व्यक्ति हो जाएंगे। आपका पुनर्जन्म हो जाएगा। ओशो

कृष्ण स्मृति-ओशो Pdf

     कृष्ण स्मृति             -ओशो। (ओशो द्वारा कृष्ण के बहु-आयामी व्यक्तित्व पर दी गई 21 र्वात्ताओं एवं नव-संन्यास पर दिए गए एक विशेष प्रवचन का अप्रतिम संकलन। यही वह प्रवचनमाला है जिसके दौरान ओशो के साक्षित्व में संन्यास ने नए शिखरों को छूने के लिए उत्प्रेरणाली और "नव संन्यास अंतर्राष्ट्रीय' की संन्यास-दीक्षा का सूत्रपात हुआ।) File name :- कृष्ण स्मृति  Language :- Hindi Size:- 6mb 504 pages  Download Pdf file here अनुक्रमणिका : प्रवचन 1 - हंसते व जीवंत धर्म के प्रतीक कृष्ण    2 प्रवचन 2 - इहलौकिक जीवन के समग्र स्वीकार के प्रतीक कृष्ण    22 प्रवचन 3 - सहज शून्यता के प्रतीक कृष्ण    53 प्रवचन 4 - स्वधर्म-निष्ठा के आत्यंतिक प्रतीक कृष्ण    72 प्रवचन 5 - "अकारण'’ के आत्यंतिक प्रतीक कृष्ण    96 प्रवचन 6 - जीवन के बृहत् जोड़ के प्रतीक कृष्ण    110 प्रवचन 7 - जीवन में महोत्सव के प्रतीक कृष्ण    141 प्रवचन 8 - क्षण-क्षण जीने के महाप्रतीक कृष्ण    167 प्रवचन 9 - विराट जागतिक रासलीला के प्रतीक कृष्ण    196

होश की साधना - ओशो || मुल्ला नसीरुद्दीन पर ओशो || Osho Jokes in Hindi

होश की साधना - ओशो   एक सुंदर अध्यापिका की आवारगी की चर्चा जब स्कूल में बहुत होने लगी तो स्कूल की मैनेजिंग कमेटी ने दो सदस्यों को जांच-पड़ताल का काम सौंपा। ये दोनों सदस्य उस अध्यापिका के घर पहुंचे। सर्दी अधिक थी, इसलिए एक सदस्य बाहर लान में ही धूप सेंकने के लिए खड़ा हो गया और दूसरे सदस्य से उसने कहा कि वह खुद ही अंदर जाकर पूछताछ कर ले। एक घंटे के बाद वह सज्जन बाहर आए और उन्होंने पहले सदस्य को बताया कि अध्यापिका पर लगाए गए सारे आरोप बिल्कुल निराधार हैं। वह तो बहुत ही शरीफ और सच्चरित्र महिला है। इस पर पहला सदस्य बोला, "ठीक है, तो फिर हमें चलना चाहिए। मगर यह क्या? तुमने केवल अंडरवीयर ही क्यों पहन रखी है? जाओ, अंदर जाकर फुलपेंट तो पहन लो।" यहां होश किसको? मुल्ला नसरुद्दीन एक रात लौटा। जब उसने अपना चूड़ीदार पाजामा निकाला तो पत्नी बड़ी हैरान हुई; अंडरवीयर नदारद!! तो उसने पूछा, "नसरुद्दीन अंडरवीयर कहां गया?" नसरुद्दीन ने कहा कि अरे! जरूर किसी ने चुरा लिया!! अब एक तो चूड़ीदार पाजामा! उसमें से अंडरवीयर चोरी चला जाए और पता भी नहीं चला!! चूड़ीदार पाजामा नेतागण पहनते

ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है - ओशो

हंसा तो मोती चूने--(लाल नाथ)-प्रवचन-10 अवल गरीबी अंग बसै—दसवां प्रवचन  दसवा प्रवचन ; दिनाक 20 मई ,  1979 ; श्री रजनीश आश्रम ,  पूना यह महलों ,  यह तख्तों ,  यह ताजों की दुनिया यह इन्सां के दुश्मन समाजों की दुनिया  यह दौलत के भूखे रिवाजों की दुनिया  यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! हर एक जिस्म घायल ,  हर इक रूह प्यासी निगाहों में उलझन ,  दिलों में उदासी यह दुनिया है या आलमे-बदहवासी यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! यहां इक खिलौना है इन्सां की हस्ती यह बस्ती है मुर्दा -परस्तों की बस्ती यहां पर तो जीवन से है मौत सस्ती यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! जवानी भटकती है बदकार बनकर जवा जिस्म सजते हैं बाजार बनकर यहां प्यार होता है व्योपार बनकर यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! यह दुनिया जहां आदमी कुछ नहीं है वफा कुछ नहीं ,  दोस्ती कुछ नहीं है जहां प्यार की कद्र ही कुछ नहीं है यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! जला दो उसे फूंक डालो यह दुनिया मेरे सामने से हटा लो यह दुनिया तुम्हारी है तुम ही सम्हालो यह दुनिया

पति और पत्नी का संबंध और प्रेम - ओशो

मराैै है जोगी मरौ-(प्रवचन-08) आओ चाँदनी को बिछाएं ,  ओढ़े— प्रवचन—आठवां 8 अक्‍टूबर ,  1978 ; श्री रजनीश आश्रम ,  पूना। आखिरी प्रश्न : मैं अपनी पत्नी के अतिरिक्त अन्य स्त्रियों में भी उत्सुक हो जाता हूं लेकिन जब मेरी पत्नी किसी पुरुष में उत्सुकता दिखाती है तो मुझे बड़ी ईर्ष्या होती है भयंकर अग्नि में मैं जलता हूं। पु रुषों ने सदा से अपने लिए सुविधाएं बना रखी थीं ,  स्त्रियों को अवरुद्ध कर रखा था। पुरुषों ने स्त्रियों को बंद कर दिया था मकानों की चार दीवारों में ,  और पुरुष ने अपने को मुक्त रख छोड़ा था। अब वे दिन गए। अब तुम जितने स्वतंत्र हो ,  उतनी ही स्त्री भी स्वतंत्र है। और अगर तुम चाहते हो कि ईर्ष्या में न जलों तो दो ही उपाय हैं। एक तो उपाय है कि तुम स्वयं भी वासना से मुक्त हो जाओ। जहा वासना नहीं वहां ईर्ष्या नहीं रह जाती। और दूसरा उपाय है कि अगर वासना से मुक्त न होना चाहो तो कम—से—कम जितना हक तुम्हें है ,  उतना हक दूसरे को भी दे दो। उतनी हिम्मत जुटाओ। मैं तो चाहूंगा कि तुम वासना से मुक्त हो जाओ। एक स्त्री जान ली तो सब स्त्रियां जान लीं। एक प

शिवलिंग का रहस्य - ओशो

शिवलिंग का रहस्य - ओशो पुराण में कथा यह है कि विष्णु और ब्रह्मा में किसी बात पर विवाद हो गया। विवाद इतना बढ़ गया कि कोई हल का रास्ता न दिखायी पड़ा, तो उन्होंने कहा कि हम चलें और शिवजी से पूछ लें, उनको निर्णायक बना दें। वे जो कहेंगे हम मान लेंगे। तो दोनों गए। इतने गुस्से में थे, विवाद इतना तेज था कि द्वार पर दस्तक भी न दी, सीधे अंदर चले गए। शिव पार्वती को प्रेम कर रहे हैं। वे अपने प्रेम में इतने मस्त हैं कि कौन आया कौन गया, इसकी उन्हें फिक्र ही नहीं है। ब्रह्मा-विष्णु थोड़ी देर खड़े रहे, घड़ी-आधा-घड़ी, घड़ी पर घड़ी बीतने लगी और उनके प्रेम में लवलीनता जारी है। वे एक-दूसरे में डूबे हैं। भूल ही गए अपना विवाद ब्रह्मा और विष्णु और दोनों ने यह शिवजी के ऊपर दोषारोपण किया कि हम खड़े हैं, हमारा अपमान हो रहा है और शिव ने हमारी तरफ चेहरा भी करके नहीं देखा। तो हम यह अभिशाप देते हैं कि तुम सदा ही जननेंद्रियों के प्रतीक-रूप में ही जाने जाओगे। इसलिए शिवलिंग बना। तुम्हारी प्रतिमा कोई नहीं बनाएगा। तुम जननेंद्रिय के ही रूप में ही बनाए जाओगे। वही तुम्हारा प्रतीक होगा। यही हमारा अभिशाप है, ताकि यह बात सद

भक्ति सूत्र -ओशो। Narad Bhakti Sutra Pdf file

भक्ति सूत्र           -ओशो। Narad Bhakti Sutra Pdf file अनुक्रम :- १. परम प्रेमरूपा है भक्ति २. स्वयं को मिटाने की कला है भक्ति ३. बड़ी संवेदनशील है भक्ति ४. सहजस्फूर्त अनुशासन है भक्ति ५. कलाओं की कला है भक्ति ६. प्रसादस्वरूपा है भक्ति ७. योग और भोग का संगीत है भक्ति ८. अनंत के आंगन में नृत्य है भक्ति ९. हृदय का आंदोलन है भक्ति १॰. परम मुक्ति है भक्ति ११. शून्य की झील में प्रेम का कमल है भक्ति १२. अभी और यहीं है भक्ति १३. शून्य का संगीत है प्रेमा-भक्ति १४. असहाय हृदय की आह है प्रार्थना-भक्ति १५. हृदय-सरोवर का कमल है भक्ति १६. उदासी नहीं–उत्सव है भक्ति १७. कान्ता जैसी प्रतिबद्धता है भक्ति १८. एकांत के मंदिर में है भक्ति १९. प्रज्ञा की थिरता है मुक्ति २॰. अहोभाव, आनंद, उत्सव है भक्ति Book:- Narad Bhakti Sutra Osho Language :-Hindi Size :- 3mb 440 pages Download Bhakti Sutra Pdf (भक्ति सूत्र) भक्ति-सूत्र : एक झरोखा भक्ति यानी प्रेम–ऊर्ध्वमुखी प्रेम। भक्ति यानी दो व्यक्तियों के बीच का प्रेम नहीं, व्यक्ति और समाष्टि के बीच का प्रेम। भक्