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हंगामा है क्यों बरपा - ओशो


सपना यह संसार--(प्रवचन--02)

संसार एक उपाय है—(प्रवचन—दूसरा)




दिनांक, गुरुवार12 जुलाई 1979;
श्री रजनीश आश्रमपूना




हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी—सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डालाचोरी तो नहीं की है।

नात्तजरबा—कारी से वाइज की ये बातें हैं
इस रंग को क्या जानेपूछो तो कभी पी है?

उस मय से नहीं मतलबदिल जिससे है बेगाना
मकसूद है उस मय से दिल ही मैं जो खिंचती है।

वां दिल में कि सदमे दोयां जी में कि सब सह लो
उनका भी अजब दिल हैमेरा भी अजब जी है।

हर जर्रा चमकता हैअनवारे—इलाही से
हर से कहती हैहम हैं तो खुदा भी है।

सूरज में लगे धब्बाफितरत के हैं
बुत हमको कहें काफिर अल्लाह की मर्जी है।
घबड़ाओ मत! हंगामा तो मचेगा—थोड़े—से पीने से मच जाता है। और अभी तो बहुत पीना है!
हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी—सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डालाचोरी तो नहीं की है।
अपने दरवाजे पर तख्ती लगाकर टांग देना—
हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी—सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डालाचोरी तो नहीं की है।
और जो कर रहे हैं निंदाउनकी निंदा का मूल्य क्या?
नात्तजरबा—कारी से वाइज की ये बातें हैं
ये बड़े बुद्धिमान जो बने बैठे हैं—पंडित—पुरोहितत्यागीत्तपस्वी—इनको कोई तजुर्बा हैइनको कोई अनुभव हैनात्तजरबा—कारी से वाइज की ये बातें हैं! माफ करो इनकोक्षमा करो इनकोध्यान भी न दो इन पर। बेचारेनातजुर्बाकार हैंइन्हें कोई अनुभव नहीं।
नात्तजरबा—कारी से वाइज की ये बातें हैं
इस रंग को क्या जानेपूछो तो कभी पी है?
कभी नाचे हैं मस्त होकरकभी प्रार्थना में डूबे हैंकभी किसी सदगुरु के सत्संग में डूबे हैंडुबकी मारी हैइनकी बातों का क्या मूल्य?
और फिर यहां कौन अपना है,चिन्मयानंदऔर कौन पराया है! यहां न कोई अपना हैन कोई पराया है। सब मन को समझा लेने की बातें हैं। सब खेल है। सपना। बस सपना है सब। तुम तो अपनी मस्ती की आंख को अब आकाश की तरफ उठाओचांदत्तारोंकी तरफ उठाओफिक्र छोड़ो इनकी। भौंकतेहैंभौंकने दो। तुम अपनी चाल थोड़े ही खराब करोगे! हाथी कहीं पीछे दौड़ता है कुत्तों केकि चले एक—एक कुत्ते का पीछा करने लगे! ऐसे में नाहक हाथी की भद्द हो जाए। कुत्ते भी हंसेंकि हाथी बहुत देखेमगर ऐसा हाथी नहीं देखा।
हर जर्रा चमकता हैअनवारे—इलाही से
जरा मस्ती की आंख अब ऊपर उठाओ तो दिखाई पड़ेगा कि हर कणजीवन का कण—कण...हर जर्रा चमकता हैअनवारे—इलाही से!...ईश्वरीय ज्योति से जगमग हो रहा है।
हर जर्रा चमकता हैअनवारे—इलाही से
हर सांस ये कहती हैहम हैं तो खुदा भी है।
डुबकी मारो भीतर! डुबकी मारोचांदत्तारों में—बाहर—और डुबकी मारो भीतर—भीतर के आकाश में। और तुम्हारे भीतर ही यह ध्वनि उठनी शुरू होगी: हर सांस ये कहती हैहम हैं तो खुदा भी है। अब क्या फिक्र लोगों कीअब अगर फिक्र है किसी की तो खुदा की करनी है। लोगों को पता क्या हैबेचारों को पता क्या हैखुद भटके हैं और अगर कोई कभी ठीक रास्ते पर लग जाएतो सोचते हैं भटक गया।
लेकिन भीड़ उनकी है। इसलिए अगर वोट से तय करना हो तो वे ही जीते जाएंगे। कितने लोग गौतम बुद्ध को वोट देतेऔर कितने लोग जीसस को वोट देतेसौ—दो सौ भी देने देने वाले नहीं मिलते वोट जीसस को। लाखों मिल जाते खिलाफ वोट देने वाले। क्यों?भीड़ अंधों की है। आंख वाले यहां कितने हैं?और आंख वाले को आंख वाले ही पहचान सकते हैं।
सूरज में लगे धब्बाफितरत के करिश्मे हैं
हंसने दो। लोग तो सूरज पर भी धब्बे डालते हैं। लोगों की तो आदत ही धब्बे डालने की है।
सूरज में लगे धब्बाफितरत के करिश्मे हैं
समझना कि बड़ा चमत्कारबड़ा करिश्मा।
सूरज में लगे धब्बाफितरत के करिशमेहैं
बुत हमको कहें काफिर अल्लाह की मर्जी है।
खुद जो काफिर हैंखुद जो कुफ्र से भरे हैंजिन्हें धर्म का कुछ भी पता नहीं हैवेजो जानते हैंजो जानने लगे हैं या जानने के मार्ग पर चल पड़े हैंजिन्होंने थोड़ी—थोड़ी पीनी शुरू कर दी हैवे उनकी निंदा कर रहे हैं। चमत्कार है!
चिंता न लेना। हंसना और आगे बढ़ जाना। धन्यवाद देना और आगे बढ़ जाना। संन्यासी को इतनी तैयारी तो चाहिए। संन्यास एक अग्नि—परीक्षा है।

आज इतना ही।

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