मराैै है जोगी मरौ-(प्रवचन-16)
नयन मधुर आज मेरे—प्रवचन—सोलहवां
दिनांक: 16 नवंबर, 1978;
श्री रजनीश आश्रम, पूना।
धन्यभागी हो। इस धन्यवाद को प्रगट करना, अनेक— अनेक रूपों में; पर भूलकर भी, अनजान में भी, अचेतन में भी, अस्मिता को मत उठने देना।
नयन मधुकर आज मेरे
एक अनजानी किरण ने
गुदगुदी उर में मचा दी,
फूट प्राणों से पड़ा गुंजन सबेरे ही सबेरे!
नयन मधुकर आज मेरे!
दूर की मधुगंध पागल
प्यास प्राणों में जगा दी
विश्व—मधुवन में लगाता फिर रहा मैं लाख फेरे!
नयन मधुकर आज मेरे!
ये पलक—पांखें नशे में
झप रही हैं, खुल रही हैं
पुतलियां मदहोश—सी हैं,कंटकों को कौन हेरे!
नयन मधुकर आज मेरे!
दूर कुंजों की कली!
मुझसे नयन मेरे न छीनो!
तुम न घेरे हो इन्हें, पर है तुम्हारा रूप घेरे!
नयन मधुकर आज मेरे!
आंखें तुम्हारी भरने लगीं हैं दूर के प्रकाश से, पहली किरण आयी है। और कान तुम्हारे भरने लगे हैं दूर की मधुर— ध्वनि से, पहले स्वर का संबंध हुआ है। सुवास उठने लगी है।
अभी बहुत होने को है। यह कुछ भी नहीं है, जो होने को है उसके मुकाबले। इसलिए जितना हो उतना ही जानना, अभी और होने को है। तत्परता न छोड़ देना, खोदना बंद मत कर देना, खुदाई जारी रहे ध्यान जारी रहे। ठीक चल रहा है, ठीक दिशा पकड़ ली है, बस अब इसी दिशा में, नाक की सीध में चलते जाना।
Such beautiful eyes of Osho
ReplyDeleteBeautiful pravachan...
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