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प्यास और संकल्प | ध्यान सूत्र - ओशो

संकल्प कैसे लें - ओशो



1. सबसे पहली बातसबसे पहला सूत्र,जो स्मरण रखना हैवह यह कि आपके भीतर एक वास्तविक प्यास हैअगर हैतो आश्वासन मानें कि रास्ता मिल जाएगा। और अगर नहीं है,तो कोई रास्ता नहीं है। आपकी प्यास आपके लिए रास्ता बनेगी।

2. दूसरी बातजो मैं प्रारंभिक रूप से यहां कहना चाहूंवह यह है कि बहुत बार हम प्यासे भी होते हैं किन्हीं बातों के लिएलेकिन हम आशा से भरे हुए नहीं होते हैं। हम प्यासे होते हैं,लेकिन आशा नहीं होती। हम प्यासे होते हैं,लेकिन निराश होते हैं। और जिसका पहला कदम निराशा में उठेगाउसका अंतिम कदम निराशा में समाप्त होगा। इसे भी स्मरण रखें,जिसका पहला कदम निराशा में उठेगाउसका अंतिम कदम भी निराशा में समाप्त होगा। अंतिम कदम अगर सफलता और सार्थकता में जाना हैतो पहला कदम बहुत आशा में उठना चाहिए।

3. तीसरी बातसाधना के इन तीन दिनों में आपको ठीक वैसे ही नहीं जीना हैजैसे आप आज सांझ तक जीते रहे हैं। मनुष्य बहुत कुछ आदतों का यंत्र है। और अगर मनुष्य अपनी पुरानी आदतों के घेरे में ही चलेतो साधना की नई दृष्टि खोलने में उसे बड़ी कठिनाई हो जाती है।

4. स्मरणपूर्वक भीतर आदेश दे दें कि बातचीत मुझे नहीं करनी है। आप तीन दिन में पाएंगे कि अंतर पड़ा है और क्रमशः भीतर की बातचीत बंद हुई है।

5. पांचवीं बातकुछ शिकायतें हो सकती हैं,कोई तकलीफ हो सकती है। तीन दिन उसका कोई खयाल नहीं करेगा। कोई छोटी-मोटी तकलीफ होअड़चन होउसका कोई खयाल नहीं करेगा। हम किन्हीं सुविधाओं के लिए यहां इकट्ठे नहीं हुए हैं।

"संकल्प साधना की विधि" :- 


अंतिम रूप से एक बात और। इन तीन दिनों में हम निरंतर प्रयास करेंगे अंतस प्रवेश काध्यान कासमाधि का। उस प्रवेश के लिए एक बहुत प्रगाढ़ संकल्प की जरूरत है। प्रगाढ़ संकल्प का यह अर्थ हैहमारा जो मन है,उसका एक बहुत छोटा-सा हिस्साजिसको हम चेतन मन कहते हैंउसी में सब विचार चलते रहते हैं। उससे बहुत ज्यादा गहराइयों में हमारा नौ हिस्सा मन और है। अगर हम मन के दस खंड करेंतो एक खंड हमारा कांशस हैचेतन है। नौ खंड हमारे अचेतन और अनकांशस हैं। इस एक खंड में ही हम सब सोचते-विचारते हैं। नौ खंडों में उसकी कोई खबर नहीं होतीनौ खंडों में उसकी कोई सूचना नहीं पहुंचती।
हम यहां सोच लेते हैं कि ध्यान करना है,समाधि में उतरना हैलेकिन हमारे मन का बहुत-सा हिस्सा अपरिचित रह जाता है। वह अपरिचित हिस्सा हमारा साथ नहीं देगा। और अगर उसका साथ हमें नहीं मिलातो सफलता बहुत मुश्किल है। उसका साथ मिल सकेइसके लिए संकल्प करने की जरूरत है। और संकल्प मैं आपको समझा दूंकैसा हम करेंगे। अभी यहां संकल्प करके उठेंगे। और फिर जब रात्रि में आप अपने बिस्तरों पर जाएंतो पांच मिनट के लिए उस संकल्प को पुनः दोहराएं और उस संकल्प को दोहराते-दोहराते ही नींद में सो जाएं।
संकल्प को पैदा करने का जो प्रयोग है,वह मैं आपको समझा दूंउसे हम यहां भी करेंगे और रोज नियमित करेंगे। संकल्प से मैंने आपको समझाया कि आपका पूरा मन चेतन और अचेतनइकट्ठे रूप से यह भाव कर ले कि मुझे शांत होना हैमुझे ध्यान को उपलब्ध होना है।
जिस रात्रि गौतम बुद्ध को समाधि उपलब्ध हुईउस रात वे अपने बोधिवृक्ष के नीचे बैठे और उन्होंने कहा, 'अब जब तक मैं परम सत्य को उपलब्ध न हो जाऊंतब तक यहां से उठूंगा नहीं।हमें लगेगाइससे क्या मतलब है?आपके नहीं उठने से परम सत्य कैसे उपलब्ध हो जाएगालेकिन यह खयाल कि जब तक मुझे परम सत्य उपलब्ध न हो जाएमैं यहां से उठूंगा नहींयह सारे प्राण में गूंज गया। वे नहीं उठेजब तक परम सत्य उपलब्ध नहीं हुआ। और आश्चर्य है कि परम सत्य उसी रात्रि उन्हें उपलब्ध हुआ। वे छः वर्ष से चेष्टा कर रहे थे,लेकिन इतना प्रगाढ़ संकल्प किसी दिन नहीं हुआ था।
संकल्प की प्रगाढ़ता कैसे पैदा होवह मैं छोटा-सा प्रयोग आपको कहता हूं। वह हम अभी यहां करेंगे और फिर उसे हम रात्रि में नियमित करके सोएंगे।
अगर आप अपनी सारी श्वास को बाहर फेंक दें और फिर श्वास को अंदर ले जाने से रुक जाएंक्या होगाअगर मैं अपनी सारी श्वास बाहर फेंक दूं और फिर नाक को बंद कर लूं और श्वास को भीतर न जाने दूंतो क्या होगा?क्या थोड़ी देर में मेरे सारे प्राण उस श्वास को लेने को तड़फने नहीं लगेंगेक्या मेरा रोआं-रोआं और मेरे शरीर के जो लाखों कोष्ठ हैंवे मांग नहीं करने लगेंगे कि हवा चाहिएहवा चाहिए! जितनी देर मैं रोकूंगाउतना ही मेरे गहरे अचेतन का हिस्सा पुकारने लगेगाहवा चाहिए! जितनी देर मैं रोके रहूंगाउतने ही मेरे प्राण के नीचे के हिस्से भी चिल्लाने लगेंगेहवा चाहिए! अगर मैं आखिरी क्षण तक रोके रहूंतो मेरा पूरा प्राण मांग करने लगेगाहवा चाहिए! यह सवाल आसान नहीं है कि ऊपर का हिस्सा ही कहे। अब यह जीवन और मृत्यु का सवाल है,तो नीचे के हिस्से भी पुकारेंगे कि हवा चाहिए!
इस क्षण की स्थिति मेंजब कि पूरे प्राण हवा को मांगते होंतब आप अपने मन में यह संकल्प सतत दोहराएं कि मैं ध्यान में प्रवेश करके रहूंगा। उन क्षणों मेंजब आपके पूरे प्राण श्वास मांगते होंतब आप अपने मन में यह भाव दोहराते रहें कि मैं ध्यान में प्रवेश करके रहूंगा। यह मेरा संकल्प है कि मैं ध्यान में प्रवेश करके रहूंगा। उस वक्त आपका मन यह दोहराता रहे। उस वक्त आपके प्राण श्वास मांग रहे होंगे और आपका मन यह दोहराएगा। जितनी गहराई तक प्राण कंपित होंगेउतनी गहराई तक आपका यह संकल्प प्रविष्ट हो जाएगा। और अगर आपने पूरे प्राण-कंपित हालत में इस वाक्य को दोहरायातो यह संकल्प प्रगाढ़ हो जाएगा। प्रगाढ़ का मतलब यह है कि वह आपके अचेतनअनकांशस माइंड तक प्रविष्ट हो जाएगा।
इसे हम रोज ध्यान के पहले भी करेंगे। रात्रि में सोते समय भी आप इसे करके सोएंगे। इसे करेंगेफिर सो जाएंगे। जब आप सोने लगेंगेतब भी आपके मन में यह सतत ध्वनि बनी रहे कि मैं ध्यान में प्रविष्ट होकर रहूंगा। यह मेरा संकल्प है कि मुझे ध्यान में प्रवेश करना है। यह वचन आपके मन में गूंजता रहे और गूंजता रहेऔर आप कब सो जाएंआपको पता न पड़े।
सोते समय चेतन मन तो बेहोश हो जाता है और अचेतन मन के द्वार खुलते हैं। अगर उस वक्त आपके मन में यह बात गूंजती रहीगूंजती रहीतो यह अचेतन पर्तों में प्रविष्ट हो जाएगी। और आप इसका परिणाम देखेंगे। इन तीन दिनों में ही परिणाम देखेंगे।
संकल्प को प्रगाढ़ करने का उपाय आप समझें। उपाय हैसबसे पहले धीमे-धीमे पूरी श्वास भर लेनापूरे प्राणों मेंपूरे फेफड़ों में श्वास भर जाएजितनी भर सकें। जब श्वास पूरी भर जाएतब भी मन में यह भाव गूंजता रहे कि मैं संकल्प करता हूं कि ध्यान में प्रविष्ट होकर रहूंगा। यह वाक्य गूंजता ही रहे।
फिर श्वास बाहर फेंकी जाएतब भी यह वाक्य गूंजता रहे कि मैं संकल्प करता हूं कि मैं ध्यान में प्रवेश करके रहूंगा। यह वाक्य दोहरता रहे। फिर श्वास फेंकते जाएं बाहर। एक घड़ी आएगीआपको लगेगाअब श्वास भीतर बिलकुल नहीं हैतब भी थोड़ी हैउसे भी फेंकें और वाक्य को दोहराते रहें। आपको लगेगा,अब बिलकुल नहीं हैतब भी हैआप उसे भी फेंकें।
आप घबराएं न। आप पूरी श्वास कभी नहीं फेंक सकते हैं। यानि इसमें घबराने का कोई कारण नहीं है। आप पूरी श्वास कभी फेंक ही नहीं सकते हैं। इसलिए जितना आपको लगे कि अब बिलकुल नहीं हैउस वक्त भी थोड़ी है,उसको भी फेंकें। जब तक आपसे बनेउसे फेंकते जाएं और मन में यह गूंजता रहे कि मैं संकल्प करता हूं कि मैं ध्यान में प्रवेश करके रहूंगा।
यह अदभुत प्रक्रिया है। इसके माध्यम से आपके अचेतन पर्तों में विचार प्रविष्ट होगा,संकल्प प्रविष्ट होगा और उसके परिणाम आप कल सुबह से ही देखेंगे।
तो एक तो संकल्प को प्रगाढ़ करना है। उसको अभी हम जब अलग होंगे यहां सेतो उस प्रयोग को करेंगे। उसको पांच बार करना है। यानि पांच बार श्वास को फेंकना और रोकना है,और पांच बार निरंतर उस भाव को अपने भीतर दोहराना है। जिनको कोई हृदय की बीमारी हो या कोई तकलीफ होवे उसे बहुत ज्यादा तेजी से नहीं करेंगेउसे बहुत आहिस्ता करेंगेजितना उनको सरल मालूम पड़े और तकलीफ न मालूम पड़े।
यह जो संकल्प की बात हैइसको मैंने कहा कि रोज रात्रि को इन तीन दिनों में सोते समय करके सोना है। सोते वक्त जब बिस्तर पर आप लेट जाएंइसी भाव को करते-करते क्रमशः नींद में विलीन हो जाना है।
यह संकल्प की स्थिति अगर हमने ठीक से पकड़ी और अपने प्राणों में उस आवाज को पहुंचायातो परिणाम होना बहुत सरल है और बहुत-बहुत आसान है।
ये थोड़ी-सी बातें आपको आज कहनी थीं। इनमें जो प्रासांगिक जरूरतें हैंवह मैं समझता हूंआप समझ गए होंगे। जैसा मैंने कहा कि बातचीत नहीं करनी है। स्वाभाविक है कि आपको अखबाररेडियोइनका उपयोग नहीं करना है। क्योंकि वह भी बातचीत है। मैंने आपसे कहामौन में और एकांत में होना है। इसका स्वाभाविक मतलब हुआ कि जहां तक बने साथियों से दूर रहना है। जितनी देर हम यहां मिलेंगेवह अलग। भोजन के लिए जाएंगेवह अलग। वहां भी आप बड़े मौन से और बड़ी शांति से भोजन करें। वहां भी सन्नाटा होजैसे पता न चले कि आप वहां हैं। यहां भी आएंतो सन्नाटे में और शांति में आएं।
देखेंतीन दिन शांत रहने का प्रयोग क्या परिणाम लाता है! रास्ते पर चलेंतो बिलकुल शांत। उठें-बैठेंतो बिलकुल शांत। और अधिकतर एकांत में चले जाएं। सुंदर कोई जगह चुनेंवहां चुपचाप बैठ जाएं। अगर कोई साथ है,तो वह भी चुपचाप बैठेबातचीत न करे। अन्यथा पहाड़ियां व्यर्थ हो जाती हैं। सौंदर्य व्यर्थ हो जाता है। जो सामने हैवह दिखाई नहीं पड़ता। आप बातचीत में सब समाप्त कर देते हैं। अकेले में जाएं।
और इसी भांति ये थोड़ी-सी बातें मैंने कहीं आपके लिए जो-जो जरूरी है और हर एक के लिए। अगर आपके भीतर प्यास नहीं मालूम होती बिलकुलतो उस प्यास को कैसे पैदा किया जाएउसके संबंध में कल मुझसे प्रश्न पूछ लें। अगर आपको ऐसा नहीं लगता हैकि मुझे कोई आशा नहीं मालूम होती हैतो आशा कैसे पैदा होउसके संबंध में कल सुबह मुझसे प्रश्न पूछ लें। अगर आपको लगता है कि मुझे कोई संकल्प करने में कठिनाई हैया नहीं बन पाता,या नहीं होतातो सारी कठिनाइयां मुझसे सुबह पूछ लें।
कल सुबह ही तीन दिन के लिए जो भी कठिनाइयां आ सकती हैंवह आप मुझसे पूछ लेंताकि तीन दिन में कोई भी समय व्यय न हो। अगर प्रत्येक व्यक्ति की कोई अपनी वैयक्तिक तकलीफ और दुख और पीड़ा हैजिससे वह मुक्त होना चाहता हैया जिसकी वजह से वह ध्यान में नहीं जा सकताया जिसकी वजह से उसे ध्यान में प्रवेश करना मुश्किल होता है,समझ लें। अगर आपको कोई एक विशेष चिंता हैजो आपको प्रविष्ट नहीं होने देती शांति मेंतो आप उसके लिए अलग से पूछ लें। अगर आपको कोई ऐसी पीड़ा हैजो आपको नहीं प्रविष्ट होने देतीउसको आप अलग से पूछ लें। वह सबके लिए नहीं होगी सामूहिक। वह आपकी वैयक्तिक होगीउसके लिए आप अलग प्रयोग करेंगे। और जो भी तकलीफ होवह स्पष्ट सुबह रख देंताकि हम तीन दिन के लिए व्यवस्थित हो जाएं।
ये थोड़ी-सी बातें मुझे आपसे कहनी थीं। आपकी एक भाव-दृष्टि बने। और फिर जो हमें करना हैवह हम कल से शुरू करेंगे और कल से समझेंगे।
अभी हम सब थोड़े-थोड़े फासले पर बैठ जाएंगे। हॉल तो बड़ा हैसब फासले पर बैठ जाएंगेताकि हम संकल्प का प्रयोग करें और फिर हम यहां से विदा हों।
...ऐसे झटके से नहींबहुत आहिस्ता-आहिस्तापूरा फेफड़ा भर लेना है। जब आप फेफड़े को भरेंगेतब आप स्वयं अपने मन में दोहराते रहेंगे कि मैं संकल्प करता हूं कि मैं ध्यान में प्रवेश करके रहूंगा। इस वाक्य को आप दोहराते रहेंगे। फिर जब श्वास पूरी भर जाए आखिरी सीमा तकतब उसे थोड़ी देर रोकें और अपने मन में यह दोहराते रहें। घबड़ाहट बढ़ेगी। मन होगाबाहर फेंक दें। तब भी थोड़ी देर रोकें। और इस वाक्य को दोहराते रहें। फिर श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालें। तब भी वाक्य दोहरता रहे। फिर सारी श्वास बाहर निकालते जाएं,आखिरी सीमा तक लगेतब भी निकाल देंतब भी वाक्य दोहरता रहे। फिर अंदर जब खाली हो जाएउस खालीपन को रोकें। श्वास को अंदर न लें। फिर दोहरता रहे वाक्यअंतिम समय तक। फिर धीरे-धीरे श्वास को अंदर लें। ऐसा पांच बार। यानि एक बार का मतलब हुआएक दफा अंदर लेना और बाहर छोड़ना। एक बार। इस तरह पांच बार। क्रमशः धीरे-धीरे सब करें।
जब पांच बार कर चुकेंतब बहुत आहिस्ता से रीढ़ को सीधा रखकर ही फिर धीमे-धीमे श्वास लेते रहें और पांच मिनट विश्राम से बैठे रहें। ऐसा कोई दस मिनट हम यहां प्रयोग करें। फिर चुपचाप सारे लोग चले जाएंगे। बातचीत न करने का स्मरण रखेंगे। अभी से उसको शुरू कर देना है। शिविर शुरू हो गया है इस अर्थों में। सोते समय फिर इस प्रयोग को पांच-सात दफा करेंजितनी देर आपको अच्छा लगे। फिर सो जाएं। सोते समय सोचते हुए सोएं उसी भाव को कि मैं शांत होकर रहूंगायह मेरा संकल्प है। और नींद आपको पकड़ ले और आप उसको सोचते रहें।
तो लाइट बुझा दें। जब आपका पांच बार हो जाएतो आप चुपचाप अपना-अपना बैठकर थोड़ी धीमी श्वास लेते हुए बैठे रहेंगे। रीढ़ सीधी कर लें। सारे शरीर को आराम से छोड़ दें। रीढ़ सीधी हो और शरीर आराम से छोड़ दें। आंख बंद कर लें। बहुत शांति से श्वास को अंदर लें। और जैसा मैंने कहावैसा प्रयोग पांच बार करें।
मैं ध्यान में प्रवेश करके रहूंगा। मैं ध्यान में प्रवेश करके रहूंगा। मेरा संकल्प है कि ध्यान में प्रवेश होगा। मेरा संकल्प है कि ध्यान में प्रवेश होगा। पूरे प्राणों को संकल्प करने दें कि ध्यान में प्रवेश होगा। पूरे प्राण में यह बात गूंज जाए। यह अंतस-चेतन तक उतर जाए।
पांच बार आपका हो जाएतो फिर बहुत आहिस्ता से बैठकर शांति से रीढ़ को सीधा रखे हुए ही धीमे-धीमे श्वास को लेंधीमे छोड़ें और श्वास को ही देखते रहें। पांच मिनट विश्राम करें। उस विश्राम के समय मेंजो संकल्प हमने किया हैवह और गहरे अपने आप डूब जाएगा। पांच बार संकल्प कर लेंफिर चुपचाप बैठकर श्वास को देखते रहें पांच मिनट तक। और बहुत धीमी श्वास लें फिर।
आज इतना ही।

Comments

  1. Very beautiful sharing ... It works so magically . Naman 🙏💖🌷

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    1. Meri help kr do ..kya aapse baat ho skti h aapks WhatsApp no. Ya phone no. Mil skta h ...aapne kaise Sankalp Liya ...or kb tk result Mila .. please muje detail m btaiyrb

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    2. तो पहली बात: संकल्प। संकल्प के बाद सातत्य। और तीसरी और भी महत्वपूर्ण बात--संकल्प भी है, सातत्य भी है, लेकिन तीसरी और भी गहरी बात--अगर प्रतीक्षा नहीं है, तो संकल्प भी व्यर्थ हो जाएगा, सातत्य भी व्यर्थ हो जाएगा। OSHO Samadhi Kamal 07

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मराैै है जोगी मरौ-(प्रवचन-08) आओ चाँदनी को बिछाएं ,  ओढ़े— प्रवचन—आठवां 8 अक्‍टूबर ,  1978 ; श्री रजनीश आश्रम ,  पूना। आखिरी प्रश्न : मैं अपनी पत्नी के अतिरिक्त अन्य स्त्रियों में भी उत्सुक हो जाता हूं लेकिन जब मेरी पत्नी किसी पुरुष में उत्सुकता दिखाती है तो मुझे बड़ी ईर्ष्या होती है भयंकर अग्नि में मैं जलता हूं। पु रुषों ने सदा से अपने लिए सुविधाएं बना रखी थीं ,  स्त्रियों को अवरुद्ध कर रखा था। पुरुषों ने स्त्रियों को बंद कर दिया था मकानों की चार दीवारों में ,  और पुरुष ने अपने को मुक्त रख छोड़ा था। अब वे दिन गए। अब तुम जितने स्वतंत्र हो ,  उतनी ही स्त्री भी स्वतंत्र है। और अगर तुम चाहते हो कि ईर्ष्या में न जलों तो दो ही उपाय हैं। एक तो उपाय है कि तुम स्वयं भी वासना से मुक्त हो जाओ। जहा वासना नहीं वहां ईर्ष्या नहीं रह जाती। और दूसरा उपाय है कि अगर वासना से मुक्त न होना चाहो तो कम—से—कम जितना हक तुम्हें है ,  उतना हक दूसरे को भी दे दो। उतनी हिम्मत जुटाओ। मैं तो चाहूंगा कि तुम वासना से मुक्त हो जाओ। एक स्त्री जान ली तो सब स्त्रियां जान लीं। एक प

संयमित आहार के सूत्र || भोजन करने का सही तरीका - ओशो

संयमित आहार के सूत्र - ओशो  मेरे पास बहुत लोग आते हैं ,   वे कहते हैं ,   भोजन हम ज्यादा कर जाते हैं ,   क्या करें ?   तो मैं उनसे कहता हूं ,   होशपूर्वक भोजन करो। और कोई   डाइटिंग   काम देनेवाली नहीं है। एक दिन ,   दो दिन   डाइटिंग   कर लोगे जबर्दस्ती ,   फिर क्या होगा ?   दोहरा टूट पड़ोगे फिर से भोजन पर। जब तक कि मन की मौलिक व्यवस्था नहीं बदलती ,   तब तक तुम दो-चार दिन उपवास भी कर लो तो क्या फर्क पड़ता है! फिर दो-चार दिन के बाद उसी पुरानी आदत में सम्मिलित हो जाओगे। मूल आधार बदलना चाहिए। मूल आधार का अर्थ है ,   जब तुम भोजन करो ,   तो होशपूर्वक करो ,   तो तुमने मूल बदला। जड़ बदली। होशपूर्वक करने के कई परिणाम होंगे। एक परिणाम होगा ,   ज्यादा भोजन न कर सकोगे। क्योंकि होश खबर दे देगा कि अब शरीर भर गया। शरीर तो खबर दे ही रहा है ,   तुम बेहोश हो ,   इसलिए खबर नहीं मिलती। शरीर की तरफ से तो इंगित आते ही रहे हैं। शरीर तो यंत्रवत खबर भेज देता है कि अब बस ,   रुको। मगर वहां   रुकनेवाला   बेहोश है। उसे खबर नहीं मिलती। शरीर तो टेलीग्राम दिये जाता है ,   लेकिन जिसे मिलना चाहिए वह सोया ह