आपुई गई हिराय-(प्रश्नत्तोर)-प्रवचन-04 आपुई गई हिराय-(प्रश्नत्तोर)-ओशो दिनांक 0 4 -फरवरी , सन् 1981 , ओशो आश्रम , पूना। प्रवचन-तीसरा -( फिकर गया सईयो मेरियो नी ) बुल्लेशाह का यह वक्तव्य सुनो। बुल्ला की जाना मैं कौण! न मैं मोमिन विच मसीतां , न मैं विच कुफर दीयां रीतां। न मैं पाकां विच पलीतां , न मैं मूसा न फरऔन।। बुल्ला की जाना मैं कौण! न मैं अंदर बेद कताबां , न विच भंग न शराबां। न विच रहिंदा मस्त खवाबां , न विच जागन न विच सौन।। बुल्ला की जाना मैं कौण! न विच शादी न गमनाकी , न मैं विच पलीती पाकी। न मैं आबी न मैं खाकी , न मैं आतश न मैं पौन।। बुल्ला की जाना मैं कौण! न मैं अरबी न लाहोरी , न हिंदी न शहर नगौरी। न मैं हिंदू तुर्क पशौरी , न मैं रहिंदा विच नदौन।। बुल्ला की जाना मैं कौण! अव्वल आखर आप नू जाना , न कोई दूजा होर पछाना। मैथों होर न कोई सयाना , बुल्ला शाह किहड़ा है कौन।। बुल्ला की जाना मैं कौण! अर्थात , बुल्लेशाह कहते हैं कि मैं क्या जानूं कि मैं क...
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ReplyDeleteArt of Awakening SELF. 10 Chapters on Consciousness. Every February, I listen before ShivRatri.
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