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मुक्ति का सूत्र - ओशो


एस धम्‍मो सनंतनो--(प्रवचन--10)

देखा तो हर मुकाम तेरी रहगुजर में है—(प्रवचन—दसवां)




पहला प्रश्न:

भगवानएक ही आरजू है कि इसखोपड़ी से कैसे मुक्ति हो जाएआपकी शरण आया हूं।


एक युवक भिक्षु नागार्जुन के पास आया और उसने कहा कि मुझे मुक्त होना है। और उसने कहा कि जीवन लगा देने की मेरी तैयारी है। मैं मरने को तैयार हूंलेकिन मुक्ति मुझे चाहिए। कोई भी कीमत होचुकाने को राजी हूं।
अपनी तरफ से तो वह बड़ी समझदारी की बातें कह रहा था।
चिन्मय ने भी यही पूछा है आगे प्रश्न में:
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है
उसने भी यही कहा होगा नागार्जुन को कि मरने की तैयारी हैअब तुम्हारे हाथ में सब बात है। मुझसे न कह सकोगे कि मैंने कुछ कमी की प्रयास में। मैं सब करने को तैयार हूं। अपनी तरफ से वह ईमानदार था। उसकी ईमानदारी पर शक भी क्या करें! मरने को तैयार था--और क्या आदमी से मांग सकते होलेकिन ईमानदारी कितनी ही होभ्रांत थी।
नागार्जुन ने कहाठहर। एक छोटा सा प्रयोग कर। फिरअभी इतनी जल्दी नहीं है मरने-मारने की। यह भाषा ही नासमझी की है। यहां मरना-मारना कैसातू एक तीन दिन छोटा सा प्रयोग करफिर देखेंगे। और उससे कहा कि तू चला जा सामने की गुफा मेंअंदर बैठ जा,और एक ही बात पर चित्त को एकाग्र कर कि तू एक भैंस हो गया है। भैंस सामने खड़ी थी,इसलिए नागार्जुन को खयाल आ गया कि 'तू एक भैंस हो गया है।यह सामने भैंस खड़ी है। उस युवक ने कहा जरा चिंतित होकर कि इससे मुक्ति का क्या संबंधनागार्जुन ने कहावह हम तीन दिन बाद सोचेंगे। बस तू तीन दिन बिनाखाए-पीएबिना सोएएक ही बात सोचता रह कि तू भैंस हो गया है। तीन दिन बाद मैं हाजिर हो जाऊंगा तेरे पास। अगर तू इसमें सफल हो गयातो मुक्ति बिलकुल आसान है। फिर मरने की कोई जरूरत नहीं।
उस युवक ने सब दांव पर लगा दिया। वह तीन दिन न भोजन कियान सोया। तीन दिन अहर्निश उसने एक ही बात सोची कि मैं भैंस हूं। अब तीन दिन अगर कोई सोचता रहे भैंस है--वह भैंस हो गया! हो गयानहीं कि हो गयाउसे प्रतीत होने लगा कि हो गया। एक प्रतीति पैदा हुई। एक भ्रमजाल खड़ा हुआ।
जब तीसरे दिन सुबह उसने आंख खोलकर देखा तो वह घबड़ाया--वह भैंस हो गया था! और भी घबड़ायाक्योंकि अब बाहर कैसे निकलेगा! गुफा का द्वार छोटा था। आए तब तो आदमी थेअब भैंस थेउसके बड़े सींग थे। उसने कोशिश भी की तो सींग अटक गए। चिल्लाना चाहा तो आवाज तो न निकलीभैंस का स्वर निकला। जब स्वर निकला तो नागार्जुनभागा हुआ पहुंचा। देखायुवक है। कहीं कोई सींग नहीं हैं। मगर सींग अटक रहे हैं। कहीं कोई सींग नहीं हैं। वह आदमी जैसा आदमी है। जैसा आया था वैसा ही है। लेकिन तीन दिन काआत्मसम्मोहनतीन दिन का सतत सुझाव! तीन बार भी सुझाव दो तो परिणाम हो जाते हैंतीन दिन में तो करोड़ों बार उसने सुझाव दिए होंगे। फिर बिना खाएबिना सोए!
जब तुम तीन दिन तक नहीं सोते तो तुम्हारी सपना देखने की शक्ति इकट्ठी हो जाती है। तीन दिन तक सपना ही नहीं देखा! जैसे भूख इकट्ठी होती है तीन दिन तक खाना न खाने सेऐसा तीन दिन तक सपना न देखने से सपना देखने की शक्ति इकट्ठी हो जाती है। वह तीन दिन की सपना देखने की शक्तितीन दिन की भूख...!
भूख में भी जितना शरीर कमजोर हो जाता हैउतना मन मजबूत हो जाता है। भूख से शरीर तो कमजोर होता हैमन मजबूत होता है। इसलिए तो बहुत से धर्म उपवास करने लगे और बहुत से धर्मों ने रात्रि-जागरण किया। अगररातभर जागते रहो तो परमात्मा जल्दी दिखायीपड़ता है। सपना इकट्ठा हो जाता है।
अभी इस पर तो वैज्ञानिक शोध भी हुई है। और वैज्ञानिक भी इस बात पर राजी हो गए हैं कि अगर तुम बहुत दिन तक सपना न देखोतो हैलूसिनेशन्स पैदा होने लगते हैं। फिर तुम जागते में सपना देखने लगोगे। आंख खुलीरहेगी और सपना देखोगे। सपना एक जरूरत है। सपना तुम्हारे मन का निकास हैरेचन है।
तीन दिन तक जागता रहा। सपने की शक्ति इकट्ठी हो गयी। तीन दिन भूखा रहाशरीर कमजोर हो गया।
यह तुमने कभी खयाल किया! बुखार में जब शरीर कमजोर हो जाए तो तुम ऐसीकल्पनाएं देखने लगते हो जो तुम स्वस्थ हालत में कभी न देखोगे। खाट उड़ी जा रही है! तुम जानते हो कि कहीं उड़ी नहीं जा रही। अपनी खाट पर लेटे होमगर शक होने लगता है। क्या,हो क्या गया है तुम्हेंशरीर कमजोर है।
जब शरीर स्वस्थ होता है तो मन पर नियंत्रण रखता है। जब शरीर कमजोर हो जाता है तो मन बिलकुल मुक्त हो जाता है। और मन तो सपना देखने की शक्ति का ही नाम है। तो बीमारी में लोगों को भूत-प्रेत दिखायी पड़नेलगते हैं। स्त्रियों को ज्यादा दिखायी पड़ते हैं पुरुषों की बजाय। बच्चों को ज्यादा दिखायीपड़ते हैं प्रौढ़ों की बजाय। जहां-जहां मन कोमल है और शरीर से ज्यादा मजबूत हैवहीं-वहीं सपना आसान हो जाता है।
तीन दिन का उपवासतीन दिन की अनिद्राऔर फिर तीन दिन सतत एक ही मंत्र--यही तो मंत्रयोग है। तुम बैठे अगर राम-राम,राम-राम कहते रहो कई दिनों तकपागल हो हीजाओगे। एक सीमा है झेलने की। वह तीन दिन तक कहता रहा: मैं भैंस हूंमैं भैंस हूंमैं भैंस हूं। हो गया। मंत्रशक्ति काम कर गयी। लोग मुझसे पूछते हैं मंत्रशक्तिउनको मैं यह कहानी कह देता हूं। यह मंत्रशक्ति है।
नागार्जुन द्वार पर खड़ा हंसने लगा। वह युवक बहुत शघमदा भी हुआ और उसने कहा,लेकिन आप हंसेंयह बात जंचती नहीं। तुम्हारे ही बताए उपाय को मानकर मैं फंस गया हूं। अब मुझे निकालो। सींग बड़े हैंद्वार से निकलते नहीं बनता। और मैं भूखा भी हूं। नींद भी सतारही है।
नागार्जुन उसके पास गयाउसे जोर सेहिलाया। हिलाया तो थोड़ा वह तंद्रा से जागा। जागा तो उसने देखासींग भी नदारद हैंभैंस भी कहीं नहीं है। वह भी हंसने लगा। नागार्जुनने कहा: बस यही मुक्ति का सूत्र है। संसार तेरा बनाया हुआ हैकल्पित है।
संसार को छोड़ना नहीं हैजागकरदेखना है। इसलिए जिन्होंने तुमसे कहा कि संसार छोड़ोउन्होंने तुम्हें मोक्ष में उलझा दिया। मैं तुम्हें संसार छोड़ने को इसीलिए नहीं कह रहा हूं। छोड़ने की बात ही भ्रांत है। जो है ही नहीं उसे छोड़ोगे कैसेछोड़ोगे तो भूल में पड़ोगे। जो नहीं है उसे देख लेनाजान लेना कि वह नहीं हैमुक्त हो जाना है।
इसलिए बुद्ध ने कहा: असत्य को असत्य की तरह देख लेना मोक्ष है। असार को असार की तरह देख लेना मोक्ष है। सारा राज देख लेने में है।
यह तो पूछो ही मत कि खोपड़ी से कैसे मुक्ति हो जाए। यह कौन है जो पूछ रहा हैयहखोपड़ी ही है जो पूछ रही है। अगर इस खोपड़ीकी बात मानकर चलेतो इससे तुम कभी मुक्त न हो पाओगे। जागकर देखोकौन पूछता है?गौर से सुनोकौन प्रश्न उठाता हैयह कौन है जो मुक्त होना चाहता हैक्यों मुक्त होना चाहता हैबंधन कहां है?
और जिसने भी जागकर देखावह हंसनेलगाक्योंकि बंधन उसने कभी पाए नहीं।जागने में कोई बंधन नहीं है। इसलिए बुद्ध चिल्ला-चिल्लाकर कहते हैंप्रमाद में मत जीयो। अप्रमाद! जागो! होश में आ जाओ! और तुम कहीं भी गए नहीं हो। तुम वहीं हो जहां तुम्हें होना चाहिए। भैंस तुम कभी हुए नहीं हो। तुम वही हो जो तुम हो। तुम परमात्मा हो। इससे तुम रत्तीभर यहां-वहां न हो सकते होन होने का कोई उपाय है।
हांतुम भ्रांति में रह सकते हो। तुम अपने को जो चाहे समझ लो। मन शक्तिशाली है। तुम जो चाहोगे वही बन जाओगे। और जिस दिन भी तुम देखना चाहोगेउस दिन तुम दृष्टि बनजाओगे
दृष्टि मुक्ति है।
समझे थे तुझसे दूर निकल जाएंगे कहीं
समझे थे तुझसे दूर निकल जाएंगे कहीं
देखा तो हर मुकाम तेरी रहगुजर में है
कहां जाओगे दूर निकलकर परमात्मा सेकहीं भी जाओगेपाओगे उसके ही रास्ते में तुम्हारा मुकाम है।
समझे थे तुझसे दूर निकल जाएंगे कहीं
देखा तो हर मुकाम तेरी रहगुजर में है
हर मुकाम उसी का है। हर पल उसी का है। अस्तित्व से दूर जाने का उपाय कहां हैकैसेजाओगे दूरहांसोच सकते होविचार कर सकते हो कि दूर निकल गए। और जब दूर निकलने का खयाल आ जाएगा तो तुमचिल्लाओगेपूछोगेपास कैसे आ जाएंअब जो तुम्हें पास आने का रास्ता बता देगावह तुम्हें भटका देगा। क्योंकि दूर अगर निकले होतेतो पास भी आ सकते थे। दूर कभी निकले ही नहीं,इसको ही जानना है।
तो अगर सार मैं तुमसे कहूं: बंधन की तरफ आंख करो। जहां-जहां बंधन दिखता हो,वहीं-वहीं ध्यान को लगाओ। बंधन ध्यान का विषय बन जाए। और तुम पाओगेतुम्हारे ध्यान की ज्योति जैसे-जैसे सघन होती हैवैसे-वैसे बंधन तरल होकर बिखर जाता है। जिस दिन ध्यान की ज्योति परिपूर्ण सघन हो जाती है,अचानक तुम पाते हो कि बंधन गया। सपना था,टूट गया। नींद का खयाल थामिट गया।
बिखरा ध्यान होतो खोपड़ी है। इकट्ठा ध्यान होखोपड़ी गयी। विचार ध्यान के टुकड़े हैं। छितर गया ध्यानजैसे दर्पण को किसी ने पटक दियाखंड-खंड हो गया। इकट्ठा जमा लो;बस उतना ही राज है। इसलिए ध्यान को चिंतन,मननविमर्श बनाओ। खोपड़ी से मुक्त हो जाने की बात मत पूछो। खोपड़ी में कुछ भी बुरा नहीं हैवहां भी परमात्मा ही विराजमान है। वह भी उसी का मंदिर है। वह भी उसकी ही रहगुजर है। वहां से वही गुजरता है।
अगर तुम गलत न समझो तो मैं तुमसेकहूंगाविचार भी उसी के हैंनिर्विचार भी उसी का है। तनाव भी उसी का हैऔर शांति भी उसी की है। संसार भी उसी का है और मोक्ष भी उसी का है।
इसलिए झेन फकीरों ने एक बड़ी अनूठीबात कही हैजिसको सदियों तक लोग सोचते रहे हैं और समझ नहीं पाते हैं। झेन फकीरों ने कहा है: संसार और मोक्ष एक ही चीज के दो नाम हैं। ठीक से न देखा तो संसारठीक से देख लिया तो मोक्ष। लेकिन सत्य एक ही है।
गैर-ठीक से देखने का ढंग क्या हैआंख बचा-बचाकर चलते हो। भीतर कामवासना है,तुम उसे देखते नहीं। तुम्हारे न देखने में ही वह बड़ी होती चली जाती है--भैंस के सींग बड़े होते चले जाते हैं। भीतर क्रोध हैतुम उसकी तरफ पीठ कर लेते हो डर के मारे कि कहीं आ ही न जाएऊपर न आ जाएकिसी को पता न चल जाए! भीतर-भीतर क्रोध की जड़ें फैलती जाती हैं। तुम्हारा पूरा व्यक्तित्व विषाददुखउदासी,भय और क्रोध के जहर से भर जाता है। और जितना ही यह बढ़ने लगता हैउतने ही तुमडरने लगते हो। जितने तुम डरने लगते हो,उतना ही तुम देखते नहींतुम आंख बचाने लगते हो। तुम अपने से आंख बचा-बचाकर कब तक भागोगेकहां भागकर जाओगे?
तुम अपने से आंख बचा रहे होयही उलझन है। बचाओ मत। जो हैजैसा हैउसे देख लो। और मैं तुमसे कहता हूंउसके देखने में ही मोक्ष है। जिसने देख लिया ठीक से अपने कोउसने सिवाय परमात्मा के और कुछ भी न पाया।
समझे थे तुझसे दूर निकल जाएंगे कहीं
देखा तो हर मुकाम तेरी रहगुजर में है


दूसरा प्रश्न:

कभी-कभी भगवान बुद्ध औरलाओत्से का बोध एक सा लगता हैमगर हैं दोनों एक-दूसरे के उलटे छोर पर। मेरी अपनी समस्या यह है कि मेरा स्वभाव प्रेम से ज्यादा ध्यान पर लगता हैऔर मैं सबसे ज्यादा लाओत्से से प्रभावित हूं। इसे कैसेसुलझाऊं?

सुलझाना क्या हैअगर सुलझी-सुलझीबात को उलझाना होतो बात अलग। इसमें कहां समस्या है?
कभी-कभी मैं हैरान होता हूं कि तुम कितने कुशल हो गए हो समस्या बनाने में! जहां नहीं होती वहां बना लेते हो! अगर ध्यान में मन लगता है तो समस्या क्या हैकौन तुमसे कह रहा है प्रेम में मन लगाओध्यान में मन लग गया हैबस हो गयी बात। जिनका ध्यान में न लगता होवे प्रेम में लगाएं।
लेकिन मेरे पास लोग आ जाते हैंवे कहते हैं: प्रेम में मन लगता हैध्यान में नहीं लगता। बड़ी समस्या है! क्या करें?
अगर तुमने जिद्द ही बना ली है कि समस्या तुम बनाए ही चले जाओगेतुम्हारी मौज है।
फिर से इस प्रश्न को गौर से सुनोयह सभी का प्रश्न है:
'कभी-कभी भगवान बुद्ध और लाओत्सेका बोध एक सा लगता हैमगर हैं दोनों एक-दूसरे के उलटे छोर पर। मेरी अपनी समस्या यह है कि मेरा स्वभाव प्रेम से ज्यादा ध्यान पर लगता है।'
इसमें समस्या कैसी हैयह तो समाधान है। छोड़ो प्रेम की बकवास। तुम्हारे लिए बकवास हैउसकी तुम चिंता में मत पड़ो। हां,अगर समस्या ही बनानी होबिना समस्या के रहना ही मुश्किल पड़ता होतो बात अलग! फिर तुम्हारी मर्जी!
'और मैं सबसे ज्यादा लाओत्से से प्रभावित हूं।'
इसमें भी क्या बुराई हैयह तो बहुत ही बढ़िया है। बुद्ध को भूल ही जाओ। लेना-देना क्या हैलाओत्से काफी है।
तुम्हारी हालत ऐसी है कि तुम बाएं रास्ते पर चलते हो तो दायां रास्ता समस्या बन जाता हैकि दाएं पर चलते! अगर दाएं पर चलते हो तो बायां समस्या बन जाता है। दोनों रास्तों पर एक साथ चलोगे भी कैसेतुम अकेले होरास्ते बहुत हैं। अनेक रास्ते हैंअगर सब पर चलना चाहा तो पागल हो जाओगे। इतना तो होश रखोकि जो जम जाएउस पर चल जाना है।
मैं तुमसे बुद्धलाओत्सेमहावीरकृष्ण,क्राइस्ट की बात कर रहा हूंताकि कोई तुम्हें जम जाए। मगर मैं जानता हूंतुम खतरनाक हो। तुम बजाय किसी को जमाने केअगर तुम कहीं थोड़े-बहुत जमे भी होओगेतो उसको भीउखाड़ डालोगे
मैं तुम्हें सब रास्ते खोले दे रहा हूंताकि जिससे तुम्हारा तालमेल बैठ जाएवहीं से तुम्हारी मंजिल आ जाए। कोई बुद्ध ने ठेका नहीं लिया है कि बुद्ध के साथ ही जाओगे तो हीपहुंचोगे। लाओत्से एकदम बढ़िया है। रास्ता ठीक है। तुम चल पड़ो। डगमगाते क्यों हो?जहां समस्या नहीं है वहां तुम समस्या कैसे देख लेते होऐसा लगता है कि बिना समस्या देखे तुम जी नहीं सकतेक्योंकि फिर तुम करोगेक्या?
एक मेरे पुराने मित्र हैं। मेरे साथ पढ़े भी। फिर मेरे साथ विश्वविद्यालय में शिक्षक भी थे। कोई पंद्रह साल बाद मुझे मिलने आए। कहने लगेआपकी सब समस्याएं मिट गयींकोई प्रश्न न रहातो फिर आप करते क्या होओगेखाली आदमी जीएगा कैसेकुछ तो करने को चाहिए!
उनकी तकलीफ मैं समझता हूं। वे सोच भी नहीं सकते कि खाली होने में भी कोई रस हो सकता है। खाली होना उन्हें घबड़ाहट देगा। कुछ भी करने को नहीं है। कोई समस्या नहीं हैकोई प्रश्न नहीं है। न होतो आदमी बना लेता है।
मैं तुमसे कहता हूंसमस्याएं हैं नहीं,तुमने बनायी हैं। इस प्रश्न की ही बात नहीं कर रहा हूंतुम्हारे सब प्रश्नों की बात कर रहा हूं। यह प्रश्न तो बहुत सीधा-साफ हैइसलिए तुम पकड़ में आ गए। तुम बहुत चालबाजी भी करते हो। तुम ऐसे भी प्रश्न बनाते हो कि कोई पकड़ नहीं सकता।
लेकिन मैं तुमसे कहता हूंसब प्रश्न तुम्हारे बनाए हुए हैं। तुम चूंकि खाली होने से डरते होइसलिए कोई न कोई समस्या बनाए चले जाते हो। समस्या हैतो हल करने की सुविधा है। हल होगा तब होगा! विधि खोजेंगे,विधान खोजेंगेशास्त्र खोजेंगे--कुछ व्यस्ततारहेगी!
इस संसार में बड़ी अजीब अवस्था है! आदमी दुख को भी इसीलिए नहीं छोड़ता कि दुख में उलझा तो रहता हैलगा तो रहता है,कुछ काम तो करता रहता है। तुम कहते जरूर हो कि दुख मिट जाएलेकिन तुमने सच में कभी चाहा नहीं कि दुख मिट जाएक्योंकि फिर तुम करोगे क्या! तुम कहते हो अशांति मिट जाएलेकिन तुमने कभी पूछा कि अशांति मिट जाएगी तो तुम करोगे क्या! नहींभीतर एक भरोसा है कि मिटने वाली नहीं हैइसलिए पूछतेरहोकोई हर्जा नहीं है। मिटेगी थोड़े ही!
तुम्हारे सामने अगर एकदम से शून्य का द्वार खुल जाएतुम भाग खड़े होओगे। तुम फिरलौटकर न देखोगे
रवींद्रनाथ का गीत है कि जन्मों-जन्मों तक खोजा परमात्मा को। जब तक न मिला,तब तक बड़ी बेचैनी थीऔर दौड़ थीऔरतड़फ थी। लोग तड़फ का भी बड़ा मजा लेते हैं,बड़ा प्रदर्शन करते हैं। परमात्मा को खोजने जा रहे हैं! अहंकार की बड़ी तृप्ति होती है! कहीं दूर उसकी झलक मिलती है तो जन्मों-जन्मों तक यात्रा करके वहां पहुंचते हैंलेकिन तब तक वह कहीं और जा चुका होता है।
पर एक दिन मुश्किल हो गयीउसके द्वार पर ही पहुंच गए! तख्ती लगी थी। पुराना जोश जन्मों-जन्मों का पाने का--एकदम चढ़ गएसीढ़ी। सांकल हाथ में ले ली। तभी समझआयीकि अगर वह मिल ही गया तो फिर क्या करेंगे! कहीं यह घर सच में ही उसका हुआ! धोखा हुआतब तो कोई अड़चन नहीं हैफिर खोज पर निकल जाएंगे। खोज भरे रखती है। अगर सच में ही यह घर उसका हुआ--फिर?
रवींद्रनाथ की कविता बड़ी महत्वपूर्ण है। लिखा है कि आहिस्ता से सांकल छोड़ दी कि कहीं बज न जाए--भूल-चूक--कहीं वह द्वार खोल ही न दे! जूते उतारकर हाथ में ले लिए कि कहीं सीढ़ियों से उतरते वक्त आवाज न हो जाए! और फिर जो भागा हूं तो पीछे लौटकर नहीं देखा। अब फिर खोजता हूंहालांकि मुझे उसका घर पता है। उस जगह को छोड़कर सब जगह खोजता हूं। वहां भर नहीं जाताक्योंकि मुझे मालूम है।
यह कहीं हालत तुम्हारी भी तो नहीं है?जब मैं गौर से तुम्हारे भीतर देखता हूं तो पाता हूंयही हालत तुम्हारी है। तुम्हें भी उसका घर पता है। तुम भाग खड़े हुए हो। वह घर तुम्हारे भीतर है। वहां तुम जाते ही नहींसब जगह तुम खोजते हो। वहां भर जाकर तुम ठिठकते हो,डरते हो।
नहींकोई समस्या मत बनाओ। अगर ध्यान में रस आ गयातो प्रेम अपने आप आ जाएगा। यही तो मैं तुमसे कह रहा हूं कि दो ढंग हैं। उनको दो ढंग भी कहना ठीक नहींवे एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। ध्यान से चलोतो प्रेम अपने आप आ जाता है। प्रेम से चलोतो ध्यान अपने आप आ जाता है। और हर आदमी अलग-अलग ढंग से बना है।
मुहब्बत के लिए कुछ खास दिल मखसूसहोते हैं
ये वो नग्मा है जो हर साज पर गाया नहीं जाता
यह गीत है मुहब्बत काजो किन्हीं साजोंपर गाया जाता है। सभी साजों पर नहीं गाया जाता। लेकिन यही बात ध्यान के लिए भी सच है। उसके लिए भी कुछ खास दिल मखसूस होते हैं। वह भी:
ये वो नग्मा है जो हर साज पर गाया नहीं जाता
मीरा के साज पर प्रेम का गीत जमा। बुद्ध के साज पर ध्यान का गीत जमा। गाया--यह असली बात है। भरपूर गाया। समग्रता से गाया। ध्यान को गाया या प्रेम को गाया--ये पंडित सोचते रहें। गा लिया! गीत अनगाया न रहा! जो छिपा था वह प्रगट हो गया! जो बंद था कली में वह फूल बना! वह जो बीज में दबा था,चांदत्तारों से उसने बात की! खुले आकाश में गंध फेंकी! दूर-दूर तक संदेश दिए! लुट गया! परिपूर्ण हुआ!

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ओशो देशना (अविरल,अविस्मरणीय और आनंददायी)

जीवन की खोज – Jeevan Ki खोज pdf osho

जीवन की खोज – Jeevan Ki Khoj अनुक्रम       #1: प्यास       #2:  मार्ग       #3: द्वार       #4: प्रवेश Download Jeevan Ki Khoj (जीवन की खोज) "Osho" PDF जीवन क्या है? उस जीवन के प्रति प्यास तभी पैदा हो सकती है, जब हमें यह स्पष्ट बोध हो जाए, हमारी चेतना इस बात को ग्रहण कर ले कि जिसे हम जीवन जान रहे हैं, वह जीवन नहीं है। जीवन को जीवन मान कर कोई व्यक्ति वास्तविक जीवन की तरफ कैसे जाएगा? जीवन जब मृत्यु की भांति दिखाई पड़ता है, तो अचानक हमारे भीतर कोई प्यास, जो जन्म-जन्म से सोई हुई है, जाग कर खड़ी हो जाती है। हम दूसरे आदमी हो जाते हैं। आप वही हैं, जो आपकी प्यास है। अगर आपकी प्यास धन के लिए है, मकान के लिए है, अगर आपकी प्यास पद के लिए है, तो आप वही हैं, उसी कोटि के व्यक्ति हैं। अगर आपकी प्यास जीवन के लिए है, तो आप दूसरे व्यक्ति हो जाएंगे। आपका पुनर्जन्म हो जाएगा। ओशो

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ध्यान सूत्र। (Dhyan sutra)                                 -ओशो DHYAAN SUTRA 〰〰 🎙HINDI 📆1965 💿9 DISCOURSES अनुक्रमणिका : प्रवचन 1 - प्यास और संकल्प    3 प्रवचन 2 - शरीर-शुद्धि के अंतरंग सूत्र    18 प्रवचन 3 - चित्त-शक्तियों का रूपांतरण    42 प्रवचन 4 - विचार-शुद्धि के सूत्र    62 प्रवचन 5 - भाव-शुद्धि की कीमिया    77 प्रवचन 6 - सम्यक रूपांतरण के सूत्र    96 प्रवचन 7 - शुद्धि और शून्यता से समाधि फलित    119 प्रवचन 8 - समाधि है द्वार    133 प्रवचन 9 - आमंत्रण--एक कदम चलने का  👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻 Download Dhyan Sutra (ध्यान सूत्र) PDF

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शिव—सूत्र—(ओशो) (समाधि साधपा शिवर, श्री ओशो आश्रम, पूना। दिनांक 11 से 20 सितंबर, 1974 तक ओशो द्वारा दिए गए दस अमृत—प्रवचनो का संकलन। Download Shiv Sutra (शिव सूत्र) PDF अनुक्रम         #1: जीवन-सत्य की खोज की दिशा         #2: जीवन-जागृति के साधना-सूत्र         #3: योग के सूत्र : विस्मय, वितर्क, विवेक         #4: चित्त के अतिक्रमण के उपाय         #5: संसार के सम्मोहन, और सत्य का आलोक         #6: दृष्टि ही सृष्टि ‍है         #7: ध्यान अर्थात चिदात्म सरोवर में स्नान         #8: जिन जागा तिन मानिक पाइया         #9: साधो, सहज समाधि भली!         #10: साक्षित्व ही शिवत्व है   Description Reviews

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जिन खोजा तिन पाइयां।                          -ओशो (कुंडलिनी - योग पर ध्यान शिविर, नारगोल में ध्यान प्रयोगों के साथ प्रवचन एवम मुम्बई में प्रश्नोत्तर चर्चाओं सहित "19" ओशो प्रवचनों का अपूर्व संकलन) pdf file  428 pages Download Pdf file Here Language :- Hindi  Size :- 3.3mb Type :- Pdf file जिन खोजा तिन पाइयां ऊर्जा का विस्तार है जगत और ऊर्जा का सघन हो जाना ही जीवन है। जो हमें पदार्थ की भांति दिखाई पड़ता है, जो पत्थर की भांति भी दिखाई पड़ता है, वह भी ऊर्जा, शक्ति है। जो हमें जीवन की भांति दिखाई पड़ता है, जो विचार की भांति अनुभव होता है, जो चेतना की भांति प्रतीत होता है, वह भी उसी ऊर्जा, उसी शक्ति का रूपांतरण है। सारा जगत-- चाहे सागर की लहरें, और चाहे सरू के वृक्ष, और चाहे रेत के कण, और चाहे आकाश के तारे, और चाहे हमारे भीतर जो है वह, वह सब एक ही शक्ति का अनंत-अनंत रूपों में प्रगटन है। ओशो  कुंडलिनी-यात्रा पर ले चलने वाली इस अभूतपूर्व पुस्तक के कुछ विषय बिंदु: शरीर में छिपी अनंत ऊर्जाओं को जगाने का एक आह्वान सात चक्रों व सात शरीरो

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हंसा तो मोती चूने--(लाल नाथ)-प्रवचन-10 अवल गरीबी अंग बसै—दसवां प्रवचन  दसवा प्रवचन ; दिनाक 20 मई ,  1979 ; श्री रजनीश आश्रम ,  पूना यह महलों ,  यह तख्तों ,  यह ताजों की दुनिया यह इन्सां के दुश्मन समाजों की दुनिया  यह दौलत के भूखे रिवाजों की दुनिया  यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! हर एक जिस्म घायल ,  हर इक रूह प्यासी निगाहों में उलझन ,  दिलों में उदासी यह दुनिया है या आलमे-बदहवासी यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! यहां इक खिलौना है इन्सां की हस्ती यह बस्ती है मुर्दा -परस्तों की बस्ती यहां पर तो जीवन से है मौत सस्ती यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! जवानी भटकती है बदकार बनकर जवा जिस्म सजते हैं बाजार बनकर यहां प्यार होता है व्योपार बनकर यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! यह दुनिया जहां आदमी कुछ नहीं है वफा कुछ नहीं ,  दोस्ती कुछ नहीं है जहां प्यार की कद्र ही कुछ नहीं है यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! जला दो उसे फूंक डालो यह दुनिया मेरे सामने से हटा लो यह दुनिया तुम्हारी है तुम ही सम्हालो यह दुनिया

कृष्ण स्मृति-ओशो Pdf

     कृष्ण स्मृति             -ओशो। (ओशो द्वारा कृष्ण के बहु-आयामी व्यक्तित्व पर दी गई 21 र्वात्ताओं एवं नव-संन्यास पर दिए गए एक विशेष प्रवचन का अप्रतिम संकलन। यही वह प्रवचनमाला है जिसके दौरान ओशो के साक्षित्व में संन्यास ने नए शिखरों को छूने के लिए उत्प्रेरणाली और "नव संन्यास अंतर्राष्ट्रीय' की संन्यास-दीक्षा का सूत्रपात हुआ।) File name :- कृष्ण स्मृति  Language :- Hindi Size:- 6mb 504 pages  Download Pdf file here अनुक्रमणिका : प्रवचन 1 - हंसते व जीवंत धर्म के प्रतीक कृष्ण    2 प्रवचन 2 - इहलौकिक जीवन के समग्र स्वीकार के प्रतीक कृष्ण    22 प्रवचन 3 - सहज शून्यता के प्रतीक कृष्ण    53 प्रवचन 4 - स्वधर्म-निष्ठा के आत्यंतिक प्रतीक कृष्ण    72 प्रवचन 5 - "अकारण'’ के आत्यंतिक प्रतीक कृष्ण    96 प्रवचन 6 - जीवन के बृहत् जोड़ के प्रतीक कृष्ण    110 प्रवचन 7 - जीवन में महोत्सव के प्रतीक कृष्ण    141 प्रवचन 8 - क्षण-क्षण जीने के महाप्रतीक कृष्ण    167 प्रवचन 9 - विराट जागतिक रासलीला के प्रतीक कृष्ण    196

होश की साधना - ओशो || मुल्ला नसीरुद्दीन पर ओशो || Osho Jokes in Hindi

होश की साधना - ओशो   एक सुंदर अध्यापिका की आवारगी की चर्चा जब स्कूल में बहुत होने लगी तो स्कूल की मैनेजिंग कमेटी ने दो सदस्यों को जांच-पड़ताल का काम सौंपा। ये दोनों सदस्य उस अध्यापिका के घर पहुंचे। सर्दी अधिक थी, इसलिए एक सदस्य बाहर लान में ही धूप सेंकने के लिए खड़ा हो गया और दूसरे सदस्य से उसने कहा कि वह खुद ही अंदर जाकर पूछताछ कर ले। एक घंटे के बाद वह सज्जन बाहर आए और उन्होंने पहले सदस्य को बताया कि अध्यापिका पर लगाए गए सारे आरोप बिल्कुल निराधार हैं। वह तो बहुत ही शरीफ और सच्चरित्र महिला है। इस पर पहला सदस्य बोला, "ठीक है, तो फिर हमें चलना चाहिए। मगर यह क्या? तुमने केवल अंडरवीयर ही क्यों पहन रखी है? जाओ, अंदर जाकर फुलपेंट तो पहन लो।" यहां होश किसको? मुल्ला नसरुद्दीन एक रात लौटा। जब उसने अपना चूड़ीदार पाजामा निकाला तो पत्नी बड़ी हैरान हुई; अंडरवीयर नदारद!! तो उसने पूछा, "नसरुद्दीन अंडरवीयर कहां गया?" नसरुद्दीन ने कहा कि अरे! जरूर किसी ने चुरा लिया!! अब एक तो चूड़ीदार पाजामा! उसमें से अंडरवीयर चोरी चला जाए और पता भी नहीं चला!! चूड़ीदार पाजामा नेतागण पहनते

भक्ति सूत्र -ओशो। Narad Bhakti Sutra Pdf file

भक्ति सूत्र           -ओशो। Narad Bhakti Sutra Pdf file अनुक्रम :- १. परम प्रेमरूपा है भक्ति २. स्वयं को मिटाने की कला है भक्ति ३. बड़ी संवेदनशील है भक्ति ४. सहजस्फूर्त अनुशासन है भक्ति ५. कलाओं की कला है भक्ति ६. प्रसादस्वरूपा है भक्ति ७. योग और भोग का संगीत है भक्ति ८. अनंत के आंगन में नृत्य है भक्ति ९. हृदय का आंदोलन है भक्ति १॰. परम मुक्ति है भक्ति ११. शून्य की झील में प्रेम का कमल है भक्ति १२. अभी और यहीं है भक्ति १३. शून्य का संगीत है प्रेमा-भक्ति १४. असहाय हृदय की आह है प्रार्थना-भक्ति १५. हृदय-सरोवर का कमल है भक्ति १६. उदासी नहीं–उत्सव है भक्ति १७. कान्ता जैसी प्रतिबद्धता है भक्ति १८. एकांत के मंदिर में है भक्ति १९. प्रज्ञा की थिरता है मुक्ति २॰. अहोभाव, आनंद, उत्सव है भक्ति Book:- Narad Bhakti Sutra Osho Language :-Hindi Size :- 3mb 440 pages Download Bhakti Sutra Pdf (भक्ति सूत्र) भक्ति-सूत्र : एक झरोखा भक्ति यानी प्रेम–ऊर्ध्वमुखी प्रेम। भक्ति यानी दो व्यक्तियों के बीच का प्रेम नहीं, व्यक्ति और समाष्टि के बीच का प्रेम। भक्

संयमित आहार के सूत्र || भोजन करने का सही तरीका - ओशो

संयमित आहार के सूत्र - ओशो  मेरे पास बहुत लोग आते हैं ,   वे कहते हैं ,   भोजन हम ज्यादा कर जाते हैं ,   क्या करें ?   तो मैं उनसे कहता हूं ,   होशपूर्वक भोजन करो। और कोई   डाइटिंग   काम देनेवाली नहीं है। एक दिन ,   दो दिन   डाइटिंग   कर लोगे जबर्दस्ती ,   फिर क्या होगा ?   दोहरा टूट पड़ोगे फिर से भोजन पर। जब तक कि मन की मौलिक व्यवस्था नहीं बदलती ,   तब तक तुम दो-चार दिन उपवास भी कर लो तो क्या फर्क पड़ता है! फिर दो-चार दिन के बाद उसी पुरानी आदत में सम्मिलित हो जाओगे। मूल आधार बदलना चाहिए। मूल आधार का अर्थ है ,   जब तुम भोजन करो ,   तो होशपूर्वक करो ,   तो तुमने मूल बदला। जड़ बदली। होशपूर्वक करने के कई परिणाम होंगे। एक परिणाम होगा ,   ज्यादा भोजन न कर सकोगे। क्योंकि होश खबर दे देगा कि अब शरीर भर गया। शरीर तो खबर दे ही रहा है ,   तुम बेहोश हो ,   इसलिए खबर नहीं मिलती। शरीर की तरफ से तो इंगित आते ही रहे हैं। शरीर तो यंत्रवत खबर भेज देता है कि अब बस ,   रुको। मगर वहां   रुकनेवाला   बेहोश है। उसे खबर नहीं मिलती। शरीर तो टेलीग्राम दिये जाता है ,   लेकिन जिसे मिलना चाहिए वह सोया ह

प्यास और संकल्प | ध्यान सूत्र - ओशो

संकल्प कैसे लें - ओशो 1. सबसे पहली बात ,  सबसे पहला सूत्र , जो स्मरण रखना है ,  वह यह कि आपके भीतर एक वास्तविक प्यास है ?  अगर है ,  तो आश्वासन मानें कि रास्ता मिल जाएगा। और अगर नहीं है , तो कोई रास्ता नहीं है। आपकी प्यास आपके लिए रास्ता बनेगी। 2. दूसरी बात ,  जो मैं प्रारंभिक रूप से यहां कहना चाहूं ,  वह यह है कि बहुत बार हम प्यासे भी होते हैं किन्हीं बातों के लिए ,  लेकिन हम आशा से भरे हुए नहीं होते हैं। हम प्यासे होते हैं , लेकिन आशा नहीं होती। हम प्यासे होते हैं , लेकिन निराश होते हैं। और जिसका पहला कदम निराशा में उठेगा ,  उसका अंतिम कदम निराशा में समाप्त होगा। इसे भी स्मरण रखें , जिसका पहला कदम निराशा में उठेगा ,  उसका अंतिम कदम भी निराशा में समाप्त होगा। अंतिम कदम अगर सफलता और सार्थकता में जाना है ,  तो पहला कदम बहुत आशा में उठना चाहिए। 3. तीसरी बात ,  साधना के इन तीन दिनों में आपको ठीक वैसे ही नहीं जीना है ,  जैसे आप आज सांझ तक जीते रहे हैं। मनुष्य बहुत कुछ आदतों का यंत्र है। और अगर मनुष्य अपनी पुरानी आदतों के घेरे में ही चले ,  तो साधना की नई दृष्टि खोलने म