होश की साधना - ओशो
एक सुंदर अध्यापिका की आवारगी की चर्चा जब स्कूल में बहुत होने लगी तो स्कूल की मैनेजिंग कमेटी ने दो सदस्यों को जांच-पड़ताल का काम सौंपा। ये दोनों सदस्य उस अध्यापिका के घर पहुंचे। सर्दी अधिक थी, इसलिए एक सदस्य बाहर लान में ही धूप सेंकने के लिए खड़ा हो गया और दूसरे सदस्य से उसने कहा कि वह खुद ही अंदर जाकर पूछताछ कर ले। एक घंटे के बाद वह सज्जन बाहर आए और उन्होंने पहले सदस्य को बताया कि अध्यापिका पर लगाए गए सारे आरोप बिल्कुल निराधार हैं। वह तो बहुत ही शरीफ और सच्चरित्र महिला है।
इस पर पहला सदस्य बोला, "ठीक है, तो फिर हमें चलना चाहिए। मगर यह क्या? तुमने केवल अंडरवीयर ही क्यों पहन रखी है? जाओ, अंदर जाकर फुलपेंट तो पहन लो।"
यहां होश किसको?
मुल्ला नसरुद्दीन एक रात लौटा। जब उसने अपना चूड़ीदार पाजामा निकाला तो पत्नी बड़ी हैरान हुई; अंडरवीयर नदारद!! तो उसने पूछा, "नसरुद्दीन अंडरवीयर कहां गया?"
नसरुद्दीन ने कहा कि अरे! जरूर किसी ने चुरा लिया!!
अब एक तो चूड़ीदार पाजामा! उसमें से अंडरवीयर चोरी चला जाए और पता भी नहीं चला!! चूड़ीदार पाजामा नेतागण पहनते ही इसीलिए हैं कि कोई कितना ही खींचे, निकल न सके! पहनो तो दो आदमी पहनाने को चाहिए, निकालो तो चार आदमी निकालने को चाहिए! और इनका अंडरवीयर चोरी चला गया!!
मगर होश किसको है?
क्या लोग कह रहे हैं? कैसे लोग जी रहे हैं? लोगों के जीवन को अगर गौर से देखो तो एक बात निचोड़ की मिलेगीः मूर्छित, बेहोश चले जा रहे हैं! नहीं पक्का पता है कौन हैं, नहीं पक्का पता है कहां जा रहे हैं? नहीं पक्का पता है किसलिए जा रहे हैं? पहुंच कर क्या करेंगे, इसका भी कुछ पक्का पता नहीं है। दौड़ रहे हैं, बड़ी आपाधापी है। किसी को रोककर पूछो कि जीवन का अर्थ क्या है, तो वह कहता हैः समय नहीं है! बेकार की बातें न करो! काम की बातें करो!
मैं छोटा था तो मैं हर किसी से पूछता था कि जीवन का अर्थ क्या है? तो वे कहते, बड़े हो जाओगे, सब समझ में आ जाएगा। तो जिन-जिन ने मुझसे कहा था, जब मैं बड़ा हो गया, मैं उनसे फिर पूछता कि अब मैं बड़ा भी हो गया, जीवन का अर्थ क्या है? तो वे कहते, तुम भी हद के हो! आमतौर से लोग बड़े हो जाते हैं फिर वे यह बात नहीं पूछते। क्योंकि तब तक ये समझ जाते हैं कि कहां का अर्थ, कहां का क्या! जीवन की धमाचौकड़ी में सब भूल ही जाते हैं। हमें पता नहीं है, फिर उन्होंने कहा। मैंने कहा, तुमने यह पहले ही क्यों नहीं कह दिया? तुमने जब कहा था बड़े हो जाओगे तब पता चलेगा, तभी मुझे साफ था कि तुम्हें पता नहीं है, सिर्फ टाल रहे हो।
यह स्वीकार करने की कठिनाई है कि मुझे मालूम नहीं।
लेकिन सत्य के खोजी को तथ्यों को स्वीकार करना आना चाहिए। अपने अज्ञान की स्वीकृति ज्ञान की तरफ पहला चरण है।
बोरत है माया मुझे, गहे बांह बरियार।।
जबर्दस्ती मेरी बांह पकड़ कर मूर्छा मुझे डुबाए लेती है। जगाओ मुझे! होश दो मुझे! भक्ति दो! भाव दो! मेरी आंखें आकाश की तरफ उठें, पृथ्वी में ही गड़ी न रह जाएं!
सभा के बाद एक दिन नेताजी अपने सेक्रेटरी पर बरस पड़े। बोले, "उल्लू के पट्ठे! तुमने मुझे इतना लंबा भाषण क्यों लिखकर दिया? भाषण में कई बार तो बहुत हूटिंग हुई। लोगों ने केले के छिलके फेंके, सड़े अंडे फेंके, जूते घिसे, आवाजें लगाईं, कोई कुत्ते की बोली में बोले, कोई बिल्ली की बोली में बोले; यह तुमने किस तरह का भाषण लिखा? और इतना लंबा भाषण कि मैं खत्म भी करना चाहूं तो वह खत्म न हो।"
सेक्रेटरी ने क्षमायाचना करते हुए कहा, "नेताजी, भाषण तो वह लंबा नहीं था। हां, इतनी गलती जरूर मुझसे हो गयी कि मैंने भाषण की चारों कापियां आपको दे दीं। और आप मूल प्रति के साथ-साथ कार्बन कापियां भी पढ़ते चले गए। वह तो आप पिटे नहीं, यही बहुत है!"
होश किसको है? लोग जीए जा रहे हैं, कहे जा रहे हैं, चले जा रहे हैं, बोले जा रहे हैं, हजार तरह के काम-धाम किए जा रहे हैं, मगर होश किसे है? ध्यान किसे है कि क्या कर रहे हैं, क्यों कर रहे हैं?
भक्ति का अर्थ होता हैः जागृति, होश! – ओशो
एक सुंदर अध्यापिका की आवारगी की चर्चा जब स्कूल में बहुत होने लगी तो स्कूल की मैनेजिंग कमेटी ने दो सदस्यों को जांच-पड़ताल का काम सौंपा। ये दोनों सदस्य उस अध्यापिका के घर पहुंचे। सर्दी अधिक थी, इसलिए एक सदस्य बाहर लान में ही धूप सेंकने के लिए खड़ा हो गया और दूसरे सदस्य से उसने कहा कि वह खुद ही अंदर जाकर पूछताछ कर ले। एक घंटे के बाद वह सज्जन बाहर आए और उन्होंने पहले सदस्य को बताया कि अध्यापिका पर लगाए गए सारे आरोप बिल्कुल निराधार हैं। वह तो बहुत ही शरीफ और सच्चरित्र महिला है।
इस पर पहला सदस्य बोला, "ठीक है, तो फिर हमें चलना चाहिए। मगर यह क्या? तुमने केवल अंडरवीयर ही क्यों पहन रखी है? जाओ, अंदर जाकर फुलपेंट तो पहन लो।"
यहां होश किसको?
मुल्ला नसरुद्दीन एक रात लौटा। जब उसने अपना चूड़ीदार पाजामा निकाला तो पत्नी बड़ी हैरान हुई; अंडरवीयर नदारद!! तो उसने पूछा, "नसरुद्दीन अंडरवीयर कहां गया?"
नसरुद्दीन ने कहा कि अरे! जरूर किसी ने चुरा लिया!!
अब एक तो चूड़ीदार पाजामा! उसमें से अंडरवीयर चोरी चला जाए और पता भी नहीं चला!! चूड़ीदार पाजामा नेतागण पहनते ही इसीलिए हैं कि कोई कितना ही खींचे, निकल न सके! पहनो तो दो आदमी पहनाने को चाहिए, निकालो तो चार आदमी निकालने को चाहिए! और इनका अंडरवीयर चोरी चला गया!!
मगर होश किसको है?
क्या लोग कह रहे हैं? कैसे लोग जी रहे हैं? लोगों के जीवन को अगर गौर से देखो तो एक बात निचोड़ की मिलेगीः मूर्छित, बेहोश चले जा रहे हैं! नहीं पक्का पता है कौन हैं, नहीं पक्का पता है कहां जा रहे हैं? नहीं पक्का पता है किसलिए जा रहे हैं? पहुंच कर क्या करेंगे, इसका भी कुछ पक्का पता नहीं है। दौड़ रहे हैं, बड़ी आपाधापी है। किसी को रोककर पूछो कि जीवन का अर्थ क्या है, तो वह कहता हैः समय नहीं है! बेकार की बातें न करो! काम की बातें करो!
मैं छोटा था तो मैं हर किसी से पूछता था कि जीवन का अर्थ क्या है? तो वे कहते, बड़े हो जाओगे, सब समझ में आ जाएगा। तो जिन-जिन ने मुझसे कहा था, जब मैं बड़ा हो गया, मैं उनसे फिर पूछता कि अब मैं बड़ा भी हो गया, जीवन का अर्थ क्या है? तो वे कहते, तुम भी हद के हो! आमतौर से लोग बड़े हो जाते हैं फिर वे यह बात नहीं पूछते। क्योंकि तब तक ये समझ जाते हैं कि कहां का अर्थ, कहां का क्या! जीवन की धमाचौकड़ी में सब भूल ही जाते हैं। हमें पता नहीं है, फिर उन्होंने कहा। मैंने कहा, तुमने यह पहले ही क्यों नहीं कह दिया? तुमने जब कहा था बड़े हो जाओगे तब पता चलेगा, तभी मुझे साफ था कि तुम्हें पता नहीं है, सिर्फ टाल रहे हो।
यह स्वीकार करने की कठिनाई है कि मुझे मालूम नहीं।
लेकिन सत्य के खोजी को तथ्यों को स्वीकार करना आना चाहिए। अपने अज्ञान की स्वीकृति ज्ञान की तरफ पहला चरण है।
बोरत है माया मुझे, गहे बांह बरियार।।
जबर्दस्ती मेरी बांह पकड़ कर मूर्छा मुझे डुबाए लेती है। जगाओ मुझे! होश दो मुझे! भक्ति दो! भाव दो! मेरी आंखें आकाश की तरफ उठें, पृथ्वी में ही गड़ी न रह जाएं!
सभा के बाद एक दिन नेताजी अपने सेक्रेटरी पर बरस पड़े। बोले, "उल्लू के पट्ठे! तुमने मुझे इतना लंबा भाषण क्यों लिखकर दिया? भाषण में कई बार तो बहुत हूटिंग हुई। लोगों ने केले के छिलके फेंके, सड़े अंडे फेंके, जूते घिसे, आवाजें लगाईं, कोई कुत्ते की बोली में बोले, कोई बिल्ली की बोली में बोले; यह तुमने किस तरह का भाषण लिखा? और इतना लंबा भाषण कि मैं खत्म भी करना चाहूं तो वह खत्म न हो।"
सेक्रेटरी ने क्षमायाचना करते हुए कहा, "नेताजी, भाषण तो वह लंबा नहीं था। हां, इतनी गलती जरूर मुझसे हो गयी कि मैंने भाषण की चारों कापियां आपको दे दीं। और आप मूल प्रति के साथ-साथ कार्बन कापियां भी पढ़ते चले गए। वह तो आप पिटे नहीं, यही बहुत है!"
होश किसको है? लोग जीए जा रहे हैं, कहे जा रहे हैं, चले जा रहे हैं, बोले जा रहे हैं, हजार तरह के काम-धाम किए जा रहे हैं, मगर होश किसे है? ध्यान किसे है कि क्या कर रहे हैं, क्यों कर रहे हैं?
भक्ति का अर्थ होता हैः जागृति, होश! – ओशो
Naman
ReplyDeleteNaman
ReplyDeleteVery Nice
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