Skip to main content

उम्र के प्रत्येक सात वर्ष के बाद खुलता है अमृत का द्वार - ओशो

उम्र के प्रत्येक सात वर्ष के बाद खुलता है अमृत का द्वार     -      ओशो



मनुष्य के जीवन में प्रत्येक सात वर्ष के बाद क्रांति का क्षण होता है। जैसे चौबीस घंटे में दिन का एक वर्तुल पूरा होता हैऐसे सात वर्ष में चित्त की सारी वृत्तियों का वर्तुल पूरा होता है। हर सात वर्ष में वह घड़ी होती है कि अगर चाहो तो निकल भागो। हर सात वर्ष में एक बार द्वार खुलता है। सात साल का जब बच्चा होता है तब द्वार खुलता है। और अगर चूक गये तो फिर सात साल के लिए गहरी नींद हो जाती है। हर सात साल में तुम परमात्मा के बहुत करीब होते हो। जरा-सा हाथ बढ़ाओ कि पा लो। इसी सात साल को हिसाब में रखकर हिंदुओं ने तय किया था कि पचास साल की उम्र में व्यक्ति को वानप्रस्थ हो जाना चाहिए। उनचास साल में सातवां चक्र पूरा होता है। तो पचासवें साल का मतलब हैउनचास साल के बादजल्दी कर लेनी चाहिए। आदमी अब सत्तर साल जीता है। वह सौ साल के हिसाब से बांटा गया था। अब आदमी सत्तर साल जीता है।
तो तुम्हारे जीवन में थोड़े मौके नहीं आतेबहुत मौके आते हैंलेकिन हर मौका अपने साथ बड़े आकर्षण भी लेकर आता हैदरवाजा भी खुलता है और संसार भी अपनी पूरी मनमोहकता में प्रगट होता है। सात साल का बच्चा अगर जरा जाग जायेया सदगुरु का साथ मिल जायेतो क्रांति घट सकती हैक्योंकि यह घड़ी है जब अहंकार पैदा होता है। और यही घड़ी है कि अगर इसी घड़ी में कोई अपने को सम्हाल ले तो सदा के लिए निरहंकारी हो जाता है। अहंकार के पैदा होने का मौका ही नहीं आता।
तुमने देखासात साल के बाद बच्चे हर बात में नहीं कहने लगते हैं। तुम कहोऐसा नहीं करो;वे कहेंगेकरेंगे! कहें नतो भी करके दिखायेंगे,करेंगे। तुम कहो सिगरेट मत पीनावे पीयेंगे। तुम कहो सिनेमा मत जानावे जायेंगे। तुम कहो ऐसा नहींवे वैसा ही करेंगे।
सात साल के बाद बच्चे के भीतर अहंकार पैदा होता है कि मैं कुछ हूंमुझे अपनी घोषणा करनी है जगत के सामने। बच्चा आक्रमक होने लगता है। यही घड़ी है जब अहंकार जन्म लेता है। और जब अहंकार जन्म लेता है ,उसी का दूसरा पहलू है: अगर संयोग मिल जायेसौभाग्य होप्रतिभा होतो आदमी निरअहंकार में सरक जा सकता है।
यह ख्याल रखना। दोनों चीजें एक साथ होती हैं--यो तो अहंकार में सरकना होगा और या निर-अहंकार में। या तो दरवाजे से बाहर निकल जाओ या दरवाजा बंद कर दोदरवाजे के विपरीत चल पड़ो। ऐसा ही फिर चौदह साल में होता है कामवासना का जन्म होता है। या तो कामवासना में उतर जाओ और या ब्रह्मचर्य में। वह संभावना भी करीब हैउतने ही करीब है।
ऐसा ही फिर इक्कीस साल में होता है। या तो प्रतिस्पर्धा में उतर जाओ जगत की-र्-ईष्या संघर्षप्रतियोगिताद्वेष--और या अप्रतियोगी हो जाओ।
ऐसा ही फिर अट्ठाइस साल कि उम्र में होता है। तो संग्रह में पड़ जाओपरिग्रह पड़ जाओ--इकट्ठा कर लूंइकट्ठा कर लूंइकट्ठा कर लूं--या अपरिग्रही हो जाओदेख लो कि इकट्ठा करने से क्या इकट्ठा होगामैं भीतर तो दरिद्र हूं और दरिद्र रहूंगा। ऐसा ही फिर पैंतीस साल की उम्र में होता है। पैंतीस साल की उम्र में तुम अपनी मध्यावस्था में आ जाते हो। दुपहरी आती है जीवन की। या तो तुम समझो कि अब ढलान के दिन आ गयेअब रूपांतरण करूं। अब वक्त आ गयाउतार की घड़ी आ गयीअब जिंदगी रोज-रोज उतरेगीअब सूरज ढलेगा और सांझ करीब आने लगी।
पैंतीस साल की उम्र में सुबह भी उतनी दूर है,सांझ भी उतनी दूर है। तुम ठीक मध्य में खड़े हो। लेकिन अधिक लोग बजाय समझने के कि मौत करीब आ रही हैअब हम मौत की तैयारी करेंमौत करीब आ रही हैयह सोच कर हम कैसे मौत से बचेंइसी चेष्टा में लग जाते हैं। इसलिए दुनिया की सर्वाधिक बीमारियां पैंतीस साल और बयालीस साल के बीच में पैदा होती हैं। तुम लड़ने लगते हो मौत से। मौत से लड़ोगे,जीतोगे कहांजितने हार्ट-अटैक होते हैंजितने मानसिक तनाव होते हैंवे पैंतीस और बयालीस के बीच में होते हैं। यह बड़े संघर्ष का समय है।
अगर पैंतीस साल की उम्र में एक व्यक्ति समझ ले कि मौत तो आनी ही हैलड़ना कहां है,स्वीकार कर लेन केवल स्वीकार कर ले बल्कि मौत की तैयारी करने लगेमौत का आयोजन करने लगे...। और ध्यान रखनाजैसे जीवन का शिक्षण हैऐसे ही मौत का भी शिक्षण है। अच्छी दुनिया होगी कभी--और कभी वैसी दुनिया थी भी--तो जैसे जीवन को सिखानेवाले विद्यापीठ हैंवैसे ही मृत्यु के सिखाने वाले विद्यापीठ भी थे। अभी दुनिया की शिक्षा अधूरी है। यह तुम्हेंजीना कैसेयह तो सिखा देती है;लेकिन यह नहीं सिखाती कि मरना कैसे।
और मरना है अंत में।
तो तुम्हारा ज्ञान अधूरा है। तुम्हारी नाव ऐसी है कि तुम्हारे हाथ में एक पतवार दे दी है और दूसरी पतवार नहीं है। तुमने कभी देखाएक पतवार से नाव चलाकर देखीअगर तुम एक पतवार से नाव चलाओग तो नाव गोल-गोल घूमेगीकहीं जायेगी नहीं। उस पार तो जा ही नहीं सकतीबस गोल-गोल चक्कर मारेगी। दो पतवार चाहिये। दोनों के सहारे उस पार जाया जा सकता है। लोगों को जीवन की शिक्षा तुम दे देते हो। बस नाव उनकी गोल-गोल घूमने लगती है। वह जीवन के चक्कर में पड़ जाते हैं।
संसार का अर्थ होता है: चक्कर में पड़ जाना।
पैंतीस साल की उम्र में मौका हैफिर द्वार खुलता है एक घड़ी को। मौत की झलकें आनी शुरू हो जाती हैं। जिंदगी पर हाथ खिसकने शुरू हो जाते हैं। भय के कारण लोग जोर से पकड़ने लगते हैं जिंदगी को। और जोर से पकड़ोगे तो बुरी तरह हारोगेटूटोगे। अपनी मौज से छोड़ तो कोई तुम्हें तोड़नेवाला नहीं है। समझकर छोड़ दो।
और बयालीस साल की उम्र में कामवासना क्षीण होने लगती है। जैसे चौदह साल की उम्र में कामवासना पैदा होती है वैसे बयालीस साल की उम्र में कामवासना क्षीण होती है। यह प्राकृतिक क्रम है। लेकिन आदमी परेशान हो जाता है,बयालीस साल में जब वह पाता है कामवासना क्षीण होने लगी--और वही तो उसकी जिंदगी रही अब तक--तो चला चिकित्सकों के पास। चला डाक्टरों के पासहकीमों के पास।
तुमने दीवालों पर जो पोस्टर लगे देखे हैं--"शक्ति बढ़ाने के उपाय'; "गुप्त रोगों को दूर करने के उपाय'--अगर तुम उन डाक्टरों के पास जाकर देखो तो तुम हैरान होओगे। उनके पास बैठकखाने में जो तुम्हें बैठे मिलेंगे। क्योंकि कामवासना क्षीण हो रही हैशरीर से ऊर्जा जा रही हैअब वे चाहते हैं कि कोई चमत्कार हो जायेकोई जड़ी-बूटी मिल जायेकोई औषधि मिल जाये। नहीं कोई औषधि है कहींलेकिन इनका शोषण करने के लिए लोग बैठे हुए हैं--वैद्यचिकित्सकहकीम...हकीम वीरूमल! इस तरह के लोग बैठे हुए हैं। और यह धंधा ऐसा है कि इसमें पकड़ाया नहीं जा सकताक्योंकि जो आदमी आता है वह पहले तो छिपे-छिपे आता है। वह किसी के बताना भी नहीं चाहता कि मैं जा किसलिए रहा हूं। वह जब उसको कोई सफलता नहीं मिलतीतो दूसरे वीरूमल का द्वार खटखटायेगा। मगर की भी नहीं सकता किसी के कि यह दवा काम नहीं आयी। दवायें कभी काम आयी हैंपागलपन है।
और किसी भी तरह की मूढ़ता की बातें चलती हैं--मंत्र चलतेतंत्र चलतेताबीज चलते,तांत्रिकों की सेवा चलती कि शायद कोई चमत्कार कर देगा।
और जो जीवन-ऊर्जा जा रही है मेरे हाथ सेवह मैं वापिस पा लूंगाफिर मैं जवान हो जाऊंगा।
बयालीस साल की उम्र घड़ी है कि आ गया क्षणजब तुम कामवासना को जाने दो। अब राम की वासना के जगने का क्षण आ गया। काम जाये तो राम का आगमन हो। फिर द्वार खुलता हैमगर तुम चूक जाते हो।
ऐसे ही हर सात वर्ष पर द्वार खुलता चला जाता है। जो पहले ही सात वर्ष पर जाग गया है वह अपूर्व प्रतिभा का धनी रहा होगा। हो सकता है,दादू इस छोटे से बच्चे की तलाश में ही धौसा आये हों। क्योंकि सदगुरु ऐसे ही नहीं आते।
कहानी है बुद्ध के जीवन में कि वे एक गांव गये। उनके शिष्यों ने कहा भी कि उस गांव में कोई अर्थ नहीं है जाने से। छोटे-मोटे लोग हैंकिसान हैं। कोई समझेगा भी नहीं आपकी बात। वैशाली करीब हैआप राजधानी चाहिये। इस छोटे गांव में ठहरने की जगह भी नहीं है। मगर बुद्ध ने तो जिद्द ही बांध रखी है कि उसी गांव जाना है। उस गांव के बिना जाये वैशाली नहीं जायेंगे। नाहक का चक्कर है। उस गांव में जाने का मतलब दस-बीस मील और पैदल चलना पड़ेगा। नहीं मानेतो गये। जब गांव के करीब पहुंच रहे थे तब एक छोटी-सी लड़की नेउसकी उम्र कोई पंद्रह साल से ज्यादा नहीं रही होगीवह खेत की तरफ जा रही थी अपने पिता के लिए भोजन लेकरवह रास्ते में मिलीउसने बुद्ध के चरणों में सिर झुकाया और कहा कि प्रवचन शुरू मत कर देना जब तक मैं न आ जाऊं। और किसी ने तो ध्यान ही नहीं दिया इस बात पर। गांव में पहुंच गये लोग इकट्ठे हो गये। छोटा गांव हैलेकिन बुद्ध आयेयह सौभाग्य है। सोचा भी नहीं था कि इस गांव में बुद्ध का आगमन होगा। सारा गांव इकट्ठा हो गया। सब बैठे हैं कि अब बुद्ध कुछ बोलें। और बुद्ध बैठे हैं कि वे देख रहे हैं।
आखिर किसी ने खड़े होकर कहा कि महाराज,आप कुछ बोलें। उन्होंने कहा कि मैं किसी की प्रतीक्षा कर रहा हूं। उस आदमी ने चारों तरफ देखाउसने कहागांव के हर आदमी को मैं पहचानता हूं। थोड़े ही आदमी हैंसौ-पचास। सब यहां मौजूद हैंआप किसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं?
बुद्ध ने कहातुम ठहरो। वह लड़की भागी हुई आयी। और जैसे ही वह लड़की आकर बैठी,बुद्ध बोले। बुद्ध ने कहामैं इस लड़की की प्रतीक्षा करता था। सच तो यह हैमैं इसी के लिए आया हूं।
दादू धौसा गयेबहुत संभावना यही है कि सुंदरदास के लिए गये। यही एक हीरा था वहां,जिसकी चमक दादू तक पहुंच रही होगीजो पत्थर के बीच रोशन दीये की तरह मालूम पड़ रहा होगा। उसकी तलाश में गये थे।



हरि बोलौ हरि बोल (संत सुुंदर दास)--प्रवचन-01


नीर बिनु मीन दुखी-प्रहला प्रवचन

दिनांक १ जून१९७८श्री रजनीश आश्रम,पूना

Comments

  1. https://youtu.be/kfB7mCG1VI8

    उसमें बहुत तप करना पड़ेगा,,
    सब कुछ बनाने के बाद भी,,
    कुछ भी अपना नहीं रहेगा,,,
    माया,मोह में घिरा मानव ,,,
    केवल मेरी ही बात नहीं, ऊपर जायें ↑ समस्त देहधारियों के अन्तःकरण में अन्तर्यामी रूप से स्थित भगवान उनके जीवन के कारण हैं तथा बाहर काल रूप से स्थिर हुए वे ही उनका नाश करते हैं। *अतः जो आत्म ज्ञानीजन अन्तर्दृष्टि द्वारा उन अन्तर्यामी की उपासना करते हैं, वे मोक्ष रूप अमर पद पाते हैं और जो विषयपरायण अज्ञानी पुरुष बाह्य दृष्टि से विषय चिन्तन में ही लगे रहते हैं, वे जन्म-मरण रूप मृत्यु के भागी होते हैं।*
    Read more at: http://hi.krishnakosh.org/%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%B5%E0%A4%A4_%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3_%E0%A4%A6%E0%A4%B6%E0%A4%AE_%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A7_%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF_1_%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95_1-10
    साभार hi.krishnakosh.org - मुखपृष्ठ

    https://youtu.be/0ImhLxTf6Q4

    ReplyDelete

Post a Comment

ओशो देशना (अविरल,अविस्मरणीय और आनंददायी)

Shiv sutra शिव सूत्र (ओशो) PDF

शिव—सूत्र—(ओशो) (समाधि साधपा शिवर, श्री ओशो आश्रम, पूना। दिनांक 11 से 20 सितंबर, 1974 तक ओशो द्वारा दिए गए दस अमृत—प्रवचनो का संकलन। Download Shiv Sutra (शिव सूत्र) PDF अनुक्रम         #1: जीवन-सत्य की खोज की दिशा         #2: जीवन-जागृति के साधना-सूत्र         #3: योग के सूत्र : विस्मय, वितर्क, विवेक         #4: चित्त के अतिक्रमण के उपाय         #5: संसार के सम्मोहन, और सत्य का आलोक         #6: दृष्टि ही सृष्टि ‍है         #7: ध्यान अर्थात चिदात्म सरोवर में स्नान         #8: जिन जागा तिन मानिक पाइया         #9: साधो, सहज समाधि भली!         #10: साक्षित्व ही शिवत्व है   Description Reviews

जिन खोजा तिन पाइयां -ओशो Pdf

जिन खोजा तिन पाइयां।                          -ओशो (कुंडलिनी - योग पर ध्यान शिविर, नारगोल में ध्यान प्रयोगों के साथ प्रवचन एवम मुम्बई में प्रश्नोत्तर चर्चाओं सहित "19" ओशो प्रवचनों का अपूर्व संकलन) pdf file  428 pages Download Pdf file Here Language :- Hindi  Size :- 3.3mb Type :- Pdf file जिन खोजा तिन पाइयां ऊर्जा का विस्तार है जगत और ऊर्जा का सघन हो जाना ही जीवन है। जो हमें पदार्थ की भांति दिखाई पड़ता है, जो पत्थर की भांति भी दिखाई पड़ता है, वह भी ऊर्जा, शक्ति है। जो हमें जीवन की भांति दिखाई पड़ता है, जो विचार की भांति अनुभव होता है, जो चेतना की भांति प्रतीत होता है, वह भी उसी ऊर्जा, उसी शक्ति का रूपांतरण है। सारा जगत-- चाहे सागर की लहरें, और चाहे सरू के वृक्ष, और चाहे रेत के कण, और चाहे आकाश के तारे, और चाहे हमारे भीतर जो है वह, वह सब एक ही शक्ति का अनंत-अनंत रूपों में प्रगटन है। ओशो  कुंडलिनी-यात्रा पर ले चलने वाली इस अभूतपूर्व पुस्तक के कुछ विषय बिंदु: शरीर में छिपी अनंत ऊर्जाओं को जगाने का एक आह्वान सात चक्रों व सात शरीरो

ध्यान सूत्र। (Dhyan sutra -ओशो Pdf file

ध्यान सूत्र। (Dhyan sutra)                                 -ओशो DHYAAN SUTRA 〰〰 🎙HINDI 📆1965 💿9 DISCOURSES अनुक्रमणिका : प्रवचन 1 - प्यास और संकल्प    3 प्रवचन 2 - शरीर-शुद्धि के अंतरंग सूत्र    18 प्रवचन 3 - चित्त-शक्तियों का रूपांतरण    42 प्रवचन 4 - विचार-शुद्धि के सूत्र    62 प्रवचन 5 - भाव-शुद्धि की कीमिया    77 प्रवचन 6 - सम्यक रूपांतरण के सूत्र    96 प्रवचन 7 - शुद्धि और शून्यता से समाधि फलित    119 प्रवचन 8 - समाधि है द्वार    133 प्रवचन 9 - आमंत्रण--एक कदम चलने का  👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻 Download Dhyan Sutra (ध्यान सूत्र) PDF

जीवन की खोज – Jeevan Ki खोज pdf osho

जीवन की खोज – Jeevan Ki Khoj अनुक्रम       #1: प्यास       #2:  मार्ग       #3: द्वार       #4: प्रवेश Download Jeevan Ki Khoj (जीवन की खोज) "Osho" PDF जीवन क्या है? उस जीवन के प्रति प्यास तभी पैदा हो सकती है, जब हमें यह स्पष्ट बोध हो जाए, हमारी चेतना इस बात को ग्रहण कर ले कि जिसे हम जीवन जान रहे हैं, वह जीवन नहीं है। जीवन को जीवन मान कर कोई व्यक्ति वास्तविक जीवन की तरफ कैसे जाएगा? जीवन जब मृत्यु की भांति दिखाई पड़ता है, तो अचानक हमारे भीतर कोई प्यास, जो जन्म-जन्म से सोई हुई है, जाग कर खड़ी हो जाती है। हम दूसरे आदमी हो जाते हैं। आप वही हैं, जो आपकी प्यास है। अगर आपकी प्यास धन के लिए है, मकान के लिए है, अगर आपकी प्यास पद के लिए है, तो आप वही हैं, उसी कोटि के व्यक्ति हैं। अगर आपकी प्यास जीवन के लिए है, तो आप दूसरे व्यक्ति हो जाएंगे। आपका पुनर्जन्म हो जाएगा। ओशो

कृष्ण स्मृति-ओशो Pdf

     कृष्ण स्मृति             -ओशो। (ओशो द्वारा कृष्ण के बहु-आयामी व्यक्तित्व पर दी गई 21 र्वात्ताओं एवं नव-संन्यास पर दिए गए एक विशेष प्रवचन का अप्रतिम संकलन। यही वह प्रवचनमाला है जिसके दौरान ओशो के साक्षित्व में संन्यास ने नए शिखरों को छूने के लिए उत्प्रेरणाली और "नव संन्यास अंतर्राष्ट्रीय' की संन्यास-दीक्षा का सूत्रपात हुआ।) File name :- कृष्ण स्मृति  Language :- Hindi Size:- 6mb 504 pages  Download Pdf file here अनुक्रमणिका : प्रवचन 1 - हंसते व जीवंत धर्म के प्रतीक कृष्ण    2 प्रवचन 2 - इहलौकिक जीवन के समग्र स्वीकार के प्रतीक कृष्ण    22 प्रवचन 3 - सहज शून्यता के प्रतीक कृष्ण    53 प्रवचन 4 - स्वधर्म-निष्ठा के आत्यंतिक प्रतीक कृष्ण    72 प्रवचन 5 - "अकारण'’ के आत्यंतिक प्रतीक कृष्ण    96 प्रवचन 6 - जीवन के बृहत् जोड़ के प्रतीक कृष्ण    110 प्रवचन 7 - जीवन में महोत्सव के प्रतीक कृष्ण    141 प्रवचन 8 - क्षण-क्षण जीने के महाप्रतीक कृष्ण    167 प्रवचन 9 - विराट जागतिक रासलीला के प्रतीक कृष्ण    196

ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है - ओशो

हंसा तो मोती चूने--(लाल नाथ)-प्रवचन-10 अवल गरीबी अंग बसै—दसवां प्रवचन  दसवा प्रवचन ; दिनाक 20 मई ,  1979 ; श्री रजनीश आश्रम ,  पूना यह महलों ,  यह तख्तों ,  यह ताजों की दुनिया यह इन्सां के दुश्मन समाजों की दुनिया  यह दौलत के भूखे रिवाजों की दुनिया  यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! हर एक जिस्म घायल ,  हर इक रूह प्यासी निगाहों में उलझन ,  दिलों में उदासी यह दुनिया है या आलमे-बदहवासी यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! यहां इक खिलौना है इन्सां की हस्ती यह बस्ती है मुर्दा -परस्तों की बस्ती यहां पर तो जीवन से है मौत सस्ती यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! जवानी भटकती है बदकार बनकर जवा जिस्म सजते हैं बाजार बनकर यहां प्यार होता है व्योपार बनकर यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! यह दुनिया जहां आदमी कुछ नहीं है वफा कुछ नहीं ,  दोस्ती कुछ नहीं है जहां प्यार की कद्र ही कुछ नहीं है यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! जला दो उसे फूंक डालो यह दुनिया मेरे सामने से हटा लो यह दुनिया तुम्हारी है तुम ही सम्हालो यह दुनिया

होश की साधना - ओशो || मुल्ला नसीरुद्दीन पर ओशो || Osho Jokes in Hindi

होश की साधना - ओशो   एक सुंदर अध्यापिका की आवारगी की चर्चा जब स्कूल में बहुत होने लगी तो स्कूल की मैनेजिंग कमेटी ने दो सदस्यों को जांच-पड़ताल का काम सौंपा। ये दोनों सदस्य उस अध्यापिका के घर पहुंचे। सर्दी अधिक थी, इसलिए एक सदस्य बाहर लान में ही धूप सेंकने के लिए खड़ा हो गया और दूसरे सदस्य से उसने कहा कि वह खुद ही अंदर जाकर पूछताछ कर ले। एक घंटे के बाद वह सज्जन बाहर आए और उन्होंने पहले सदस्य को बताया कि अध्यापिका पर लगाए गए सारे आरोप बिल्कुल निराधार हैं। वह तो बहुत ही शरीफ और सच्चरित्र महिला है। इस पर पहला सदस्य बोला, "ठीक है, तो फिर हमें चलना चाहिए। मगर यह क्या? तुमने केवल अंडरवीयर ही क्यों पहन रखी है? जाओ, अंदर जाकर फुलपेंट तो पहन लो।" यहां होश किसको? मुल्ला नसरुद्दीन एक रात लौटा। जब उसने अपना चूड़ीदार पाजामा निकाला तो पत्नी बड़ी हैरान हुई; अंडरवीयर नदारद!! तो उसने पूछा, "नसरुद्दीन अंडरवीयर कहां गया?" नसरुद्दीन ने कहा कि अरे! जरूर किसी ने चुरा लिया!! अब एक तो चूड़ीदार पाजामा! उसमें से अंडरवीयर चोरी चला जाए और पता भी नहीं चला!! चूड़ीदार पाजामा नेतागण पहनते

बुल्ला की जाना मैं कौण - ओशो

आपुई गई हिराय-(प्रश्नत्तोर)-प्रवचन-04 आपुई गई हिराय-(प्रश्नत्तोर)-ओशो दिनांक 0 4 -फरवरी ,  सन् 1981 , ओशो आश्रम ,  पूना। प्रवचन-तीसरा -( फिकर गया सईयो मेरियो नी ) बुल्लेशाह का यह वक्तव्य सुनो। बुल्ला की जाना मैं कौण! न मैं मोमिन विच मसीतां ,  न मैं विच कुफर दीयां रीतां। न मैं पाकां विच पलीतां ,  न मैं मूसा न फरऔन।। बुल्ला की जाना मैं कौण! न मैं अंदर बेद कताबां ,  न विच भंग न शराबां। न विच रहिंदा मस्त खवाबां ,  न विच जागन न विच सौन।। बुल्ला की जाना मैं कौण! न विच शादी न गमनाकी ,  न मैं विच पलीती पाकी। न मैं आबी न मैं खाकी ,  न मैं आतश न मैं पौन।। बुल्ला की जाना मैं कौण! न मैं अरबी न लाहोरी ,  न हिंदी न शहर नगौरी। न मैं हिंदू तुर्क पशौरी ,  न मैं रहिंदा विच नदौन।। बुल्ला की जाना मैं कौण! अव्वल आखर आप नू जाना ,  न कोई दूजा होर पछाना। मैथों होर न कोई सयाना ,  बुल्ला शाह किहड़ा है कौन।। बुल्ला की जाना मैं कौण! अर्थात ,  बुल्लेशाह कहते हैं कि मैं क्या जानूं कि मैं कौन हूं! बुल्ला की जाना मैं कौण! ऐसा सन्नाटा है ,  ऐसी समाधि

पति और पत्नी का संबंध और प्रेम - ओशो

मराैै है जोगी मरौ-(प्रवचन-08) आओ चाँदनी को बिछाएं ,  ओढ़े— प्रवचन—आठवां 8 अक्‍टूबर ,  1978 ; श्री रजनीश आश्रम ,  पूना। आखिरी प्रश्न : मैं अपनी पत्नी के अतिरिक्त अन्य स्त्रियों में भी उत्सुक हो जाता हूं लेकिन जब मेरी पत्नी किसी पुरुष में उत्सुकता दिखाती है तो मुझे बड़ी ईर्ष्या होती है भयंकर अग्नि में मैं जलता हूं। पु रुषों ने सदा से अपने लिए सुविधाएं बना रखी थीं ,  स्त्रियों को अवरुद्ध कर रखा था। पुरुषों ने स्त्रियों को बंद कर दिया था मकानों की चार दीवारों में ,  और पुरुष ने अपने को मुक्त रख छोड़ा था। अब वे दिन गए। अब तुम जितने स्वतंत्र हो ,  उतनी ही स्त्री भी स्वतंत्र है। और अगर तुम चाहते हो कि ईर्ष्या में न जलों तो दो ही उपाय हैं। एक तो उपाय है कि तुम स्वयं भी वासना से मुक्त हो जाओ। जहा वासना नहीं वहां ईर्ष्या नहीं रह जाती। और दूसरा उपाय है कि अगर वासना से मुक्त न होना चाहो तो कम—से—कम जितना हक तुम्हें है ,  उतना हक दूसरे को भी दे दो। उतनी हिम्मत जुटाओ। मैं तो चाहूंगा कि तुम वासना से मुक्त हो जाओ। एक स्त्री जान ली तो सब स्त्रियां जान लीं। एक प

शिवलिंग का रहस्य - ओशो

शिवलिंग का रहस्य - ओशो पुराण में कथा यह है कि विष्णु और ब्रह्मा में किसी बात पर विवाद हो गया। विवाद इतना बढ़ गया कि कोई हल का रास्ता न दिखायी पड़ा, तो उन्होंने कहा कि हम चलें और शिवजी से पूछ लें, उनको निर्णायक बना दें। वे जो कहेंगे हम मान लेंगे। तो दोनों गए। इतने गुस्से में थे, विवाद इतना तेज था कि द्वार पर दस्तक भी न दी, सीधे अंदर चले गए। शिव पार्वती को प्रेम कर रहे हैं। वे अपने प्रेम में इतने मस्त हैं कि कौन आया कौन गया, इसकी उन्हें फिक्र ही नहीं है। ब्रह्मा-विष्णु थोड़ी देर खड़े रहे, घड़ी-आधा-घड़ी, घड़ी पर घड़ी बीतने लगी और उनके प्रेम में लवलीनता जारी है। वे एक-दूसरे में डूबे हैं। भूल ही गए अपना विवाद ब्रह्मा और विष्णु और दोनों ने यह शिवजी के ऊपर दोषारोपण किया कि हम खड़े हैं, हमारा अपमान हो रहा है और शिव ने हमारी तरफ चेहरा भी करके नहीं देखा। तो हम यह अभिशाप देते हैं कि तुम सदा ही जननेंद्रियों के प्रतीक-रूप में ही जाने जाओगे। इसलिए शिवलिंग बना। तुम्हारी प्रतिमा कोई नहीं बनाएगा। तुम जननेंद्रिय के ही रूप में ही बनाए जाओगे। वही तुम्हारा प्रतीक होगा। यही हमारा अभिशाप है, ताकि यह बात सद