भागो मत , जागो - ओशो
आदमी जिससे बचना चाहता है उसी से टकरा जाता है। आदमी जिससे भागता है उसी से घिर जाता है। पूछो ब्रह्मचारियों से--सिवाय स्त्रियों के और किसी का दर्शन नहीं होता। हो ही नहीं सकता। अगर भगवान भी प्रकट होंगे तो स्त्री की ही शक्ल में प्रकट होंगे। और किसी शक्ल में वे प्रकट नहीं हो सकते। ब्रह्मचारी का कपट है बेचारे का, वह सेक्स से लड़ रहा है इसलिए सेक्स घिर गया है। इसीलिए तो ऋषि-मुनि स्त्रियों के लिए इतनी नाराजगी जाहिर करते हैं। यह नाराजगी किसके लिए है? वह स्त्रियां उनको घेर लेती हैं, उनके लिए है। असली स्त्रियों के लिए नहीं। असली स्त्रियों से क्या मतलब है? ऋषि-मुनि कहते हैं। स्त्रियां नर्क का द्वार है। स्त्री से बचो।
यह किससे बचने के लिए कह रहे हो? वह जो भीतर स्त्री उनको घेरती हैं। घेरती क्यों है? स्त्री से भागते हैं इसलिए स्त्री घेरती है। जिससे भागोगे, वह घेर लेगा। जिससे बचोगे, वह पकड़ लेगा। जिसको हटाओगे, वह आ जाएगा। जिसको कहोगे मत आओ। वह समझ जाएगा कि डर गए हो। आना जरूरी है। वह आ जाएगा। चित्त से लड़ना, चित्त के विचार से लड़ना आत्मघातक है। फिर वही उलझन हो जाएगी। इससे बचना जरूरी है। बचेंगे कैसे? बचने के लिए आवश्यक है कि विचार से लड़ो ही मत। सेक्स से मुक्त होना हो, तो सेक्स से लड़ो मत। साक्षी बनो। क्रोध से मुक्त होना हो, लड़ो मत, साक्षी बनो। जिससे मुक्त होना हो, उसे देखो और जानो कि मैं पृथक हूं--वह पृथक है। दूरी है। फासला है। दोनों के बीच अनंत फासला है। मैं अलग हूं, वह अलग है। और सचाई यही है। और जितनी यह स्पष्ट गहरी होगी कि मैं अलग हूं, उन्हें हंसी आएगी कि मैं किससे लडूं। जिससे कोई झगड़ा ही नहीं, जिससे कोई संबंध नहीं, उससे लड़ने की जरूरत क्या है? और तब जिससे लड़ना बंद हो जाता है--जैसा मैंने कहा--लड़ने से आती है कोई चीज--न लड़ने से जाने लगती है। ब्रह्मचार्यें सेक्स से लड़ने से नहीं आता। सेक्स के प्रति जागने से सेक्स चला जाता है। जो शेष रह जाता है, उसका नाम ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य सेक्स से उल्टा है। ब्रह्मचर्य सेक्स के विदा हो जाने का अभाव है। वह जो शेष रह जाता है सेक्स के चले जाने पर। लेकिन सेक्स से लड़कर कोई ब्रह्मचारी नहीं हो सकता। मुझे साधु-संन्यासी मिलते हैं। जब वे सबके सामने होते है तब वे आत्मा-परमात्मा की बात कहते हैं। फिर वह कहते हैं--अकेले में मिलना है। असली सवाल तो वही है। सबके सामने तो पूछ भी नहीं। सकते। क्योंकि सब को तो वे सांझ से सुबह तक यही बातें सिखा रहे हैं जो उनको भी नहीं हो सकती है। और होगी भी नहीं। क्योंकि विधि हो गलत है। मैथड ही गलत है। अज्ञानपूर्ण है। अमनोवैज्ञानिक है। खतरनाक है। असंगत है। उसकी कोई संगति नहीं है जीवन के परिवर्तन से और रूपांतरण से। लड़ने की संगति है, झगड़े की संगति है। - ओशो ।
आदमी जिससे बचना चाहता है उसी से टकरा जाता है। आदमी जिससे भागता है उसी से घिर जाता है। पूछो ब्रह्मचारियों से--सिवाय स्त्रियों के और किसी का दर्शन नहीं होता। हो ही नहीं सकता। अगर भगवान भी प्रकट होंगे तो स्त्री की ही शक्ल में प्रकट होंगे। और किसी शक्ल में वे प्रकट नहीं हो सकते। ब्रह्मचारी का कपट है बेचारे का, वह सेक्स से लड़ रहा है इसलिए सेक्स घिर गया है। इसीलिए तो ऋषि-मुनि स्त्रियों के लिए इतनी नाराजगी जाहिर करते हैं। यह नाराजगी किसके लिए है? वह स्त्रियां उनको घेर लेती हैं, उनके लिए है। असली स्त्रियों के लिए नहीं। असली स्त्रियों से क्या मतलब है? ऋषि-मुनि कहते हैं। स्त्रियां नर्क का द्वार है। स्त्री से बचो।
यह किससे बचने के लिए कह रहे हो? वह जो भीतर स्त्री उनको घेरती हैं। घेरती क्यों है? स्त्री से भागते हैं इसलिए स्त्री घेरती है। जिससे भागोगे, वह घेर लेगा। जिससे बचोगे, वह पकड़ लेगा। जिसको हटाओगे, वह आ जाएगा। जिसको कहोगे मत आओ। वह समझ जाएगा कि डर गए हो। आना जरूरी है। वह आ जाएगा। चित्त से लड़ना, चित्त के विचार से लड़ना आत्मघातक है। फिर वही उलझन हो जाएगी। इससे बचना जरूरी है। बचेंगे कैसे? बचने के लिए आवश्यक है कि विचार से लड़ो ही मत। सेक्स से मुक्त होना हो, तो सेक्स से लड़ो मत। साक्षी बनो। क्रोध से मुक्त होना हो, लड़ो मत, साक्षी बनो। जिससे मुक्त होना हो, उसे देखो और जानो कि मैं पृथक हूं--वह पृथक है। दूरी है। फासला है। दोनों के बीच अनंत फासला है। मैं अलग हूं, वह अलग है। और सचाई यही है। और जितनी यह स्पष्ट गहरी होगी कि मैं अलग हूं, उन्हें हंसी आएगी कि मैं किससे लडूं। जिससे कोई झगड़ा ही नहीं, जिससे कोई संबंध नहीं, उससे लड़ने की जरूरत क्या है? और तब जिससे लड़ना बंद हो जाता है--जैसा मैंने कहा--लड़ने से आती है कोई चीज--न लड़ने से जाने लगती है। ब्रह्मचार्यें सेक्स से लड़ने से नहीं आता। सेक्स के प्रति जागने से सेक्स चला जाता है। जो शेष रह जाता है, उसका नाम ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य सेक्स से उल्टा है। ब्रह्मचर्य सेक्स के विदा हो जाने का अभाव है। वह जो शेष रह जाता है सेक्स के चले जाने पर। लेकिन सेक्स से लड़कर कोई ब्रह्मचारी नहीं हो सकता। मुझे साधु-संन्यासी मिलते हैं। जब वे सबके सामने होते है तब वे आत्मा-परमात्मा की बात कहते हैं। फिर वह कहते हैं--अकेले में मिलना है। असली सवाल तो वही है। सबके सामने तो पूछ भी नहीं। सकते। क्योंकि सब को तो वे सांझ से सुबह तक यही बातें सिखा रहे हैं जो उनको भी नहीं हो सकती है। और होगी भी नहीं। क्योंकि विधि हो गलत है। मैथड ही गलत है। अज्ञानपूर्ण है। अमनोवैज्ञानिक है। खतरनाक है। असंगत है। उसकी कोई संगति नहीं है जीवन के परिवर्तन से और रूपांतरण से। लड़ने की संगति है, झगड़े की संगति है। - ओशो ।
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