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मैं तुम्हें जगाने आया हूँ - ओशो

मैं तुम्हें जगाने आया हूँ - ओशो 



साधारणत: आदमी की जिंदगी क्या है?कुछ सपने! कुछ टूटे-फूटे सपने! कुछ अभी भी साबितभविष्य की आशा में अटके! आदमी की जिंदगी क्या हैअतीत के खंडहरभविष्य की कल्पनाएं! आदमी का पूरा होना क्या हैचले जाते हैंउठते हैंबैठते हैंकाम करते हैं-कुछ पक्का पता नहींक्योंकुछ साफ जाहिर नहीं,कहा जा रहे हैंबहुत जल्दी में भी जा रहे हैं। बड़ी पहुंचने की तीव्र उत्कंठा हैलेकिन कुछ पक्का नहींकहां पहुंचना चाहते हैंकिस तरफ जाते हो?
      कल मैं एक गीत पढ़ता था साहिर का :
      न कोई जादा न कोई मंजिल न रोशनी का सुराग
      भटक रही है खलाओं में जिंदगी मेरी
      न कोई रास्तान कोई मंजिल,
      रोशनी का सुराग भी नहीं;
      कोई एक किरण भी नहीं।
      और पूरी जिंदगी अंधेरी घाटियों में,
      शून्य में भटक रही है।
      भटक रही है खलाओं में जिंदगी मेरी

      ऐसी ही मनुष्य की दशा है सदा से। बहुत सी झूठी मंजिलें भी तुम बना लेते हो। राहत के लिए कुछ तो चाहिए! सत्य बहुत कडुवा है। और अगर सत्य के साथ तुम खड़े हो जाओतो खड़े होना भी मुश्किल मालूम होगा।

      सिगमंड फ्रायड ने कहा है कि आदमी बिना झूठ के जी नहीं सकता। झूठ सहारा है। तो हम झूठी मंजिलें बना लेते हैं। असली मंजिल का तो कोई पता नहीं। बिना मंजिल के जीना असंभव। कैसे जीओगे बिना मंजिल केअगर यह पक्का ही हो जाए कि पता ही नहीं कहो जा रहे हैंतो पैर कैसे उठेंगेयात्रा कैसे होगीतो हम कल्‍पित मंजिल बना लेते हैंएक झूठी मंजिल बना लेते हैं। उससे राहत मिल जाती हैलगता है कहीं जा रहे हैं। कोई रास्ता नहीं है क्योंकि झूठी मंजिलों के कहीं कोई रास्ते होते हैं! जब मंजिल ही झूठी हैतो रास्ता कैसे हो सकता है?तो फिर हम रास्ता भी बना लेते हैं। रास्ता बना लेते हैंमंजिल बना लेते हैं-सब कल्पितसब मन के जालसब सपने! और ऐसे अपने को भर लेते हैं। और लगता है शून्य भर गयाजिंदगी बड़ी भरी-पूरी है।

      कोई कुछ दिन हुए चल बसा। एक मित्र ने आकर कहा कि आपको पता चलाफलां-फलां व्यक्ति चल बसेबड़ी भरी-पूरी जिंदगी थी! मैंने पूछारुको। चल बसेठीकउसमें तो कुछ किया नहीं जा सकता। लेकिन भरी-पूरी जिंदगी थीयह तुमसे किसने कहाशायद उन्होंने सोचकर कहा भी नहीं था। थोड़े झिझकेकहा,मैं तो ऐसे ही कह रहा था। कहने की बात थी। पर मैंने कहाकहा तब तुम भी सोचते होओगे कि बड़ी भरी-पूरी जिंदगी थी। मैं उनको जानता हू। और अगर तुम मुझसे पूछो तो कुछ भी नहीं हुआक्योंकि वे मरे हुए ही थे। अब मरा हुआ मर जाए इसमें कौन सी बड़ी घटना हो गयी। जिंदा वे कभी थे नहीं। क्योंकि जिंदगी तो सत्य के साथ ही उपलब्ध होती हैऔर कोई जिंदगी नहीं है। लेकिन जो झूठ के साथ जी रहा हैवह भी सोचता हैजिंदगी भरी-पूरी है।

      कितने झूठ तुमने बना रखे हैं! लड़का बड़ा होगाशादी होगीबच्चे होंगेधन कमाएगायश पाएगाऔर तुम मर रहे हो! और तुम्हारे बाप भी ऐसे ही मरेकिं तुम बड़े होओगेकि शादी होगीकि धन कमाओगे। और तुम्हारा लड़का थी ऐसे ही मरेगा। जिंदगी बड़ी भरी-पूरी जा रही है!

      बाप बेटे के लिए मर जाता है। बेटा अपने बेटे के लिए मर जाता है। ऐसा एक-दूसरे पर मरते चले जाते हैं। कोई जीता नहीं। मरना इतना आसानजीना इतना कठिन!

      लोग सोचते हैंमौत बड़ी दुस्तर है। गलत सोचते हैं। मौत में क्या दुस्तरता है? क्षण में मर जाते हो। जिंदगी दुस्तर है। सत्तर साल जीना होता है। और बिना झूठ के तुम जीना नहीं जानते होतो तुम हजार तरह के झूठ खड़े कर लेते हो-यशपदप्रतिष्ठासफलताधन। जब इनसे चुक जाते हो तो धर्ममोक्षस्वर्ग,परमात्माआत्माध्यानसमाधि। पर तुम कुछ न कुछ ताकि अपने को भरे रखो। और ध्यान रखनाबुद्ध का सारा जोर झूठ से खाली हो जाने पर है। सत्य से भरना थोड़े ही पड़ता है। झूठ से खाली हुए तो जो शेष रह जाता हैवही सत्य है। गयी बीमारीजो बचा वही स्वास्थ्य है।

      लेकिन कितने ही लोगों ने जगाने की कोशिश की हैतुम जागते नहीं। आदमी का झूठ को पैदा करने का अभ्यास इतना गहरा है कि वह बुद्ध के आसपास भी-बुद्ध भी मौजूद हों जगाने को तो उनके आसपास भी-अपनी नींद की सुविधा जुटा लेता है। बुद्ध जगाते हैंतुम उनके जगाने की चेष्टा को भी नशा बना लेते हो। तुम हर चीज में से शराब निकाल लेते हो। ऐसी कोई चीज नहीं है जिसमें से तुम शराब न निकाल लो। इसलिए तो बुद्ध आते हैंचले जाते हैंबुद्धपुरुष पैदा होते हैंविदा हो जाते हैंतुम अपनी जगह अडिग खड़े रहते होतुम अपने झूठ से हटते नहीं। शायदबुद्धपुरुषों ने जो कहा उसको भी तुम अपने झूठ में सम्मिलित कर लेते हो।

      क्या है तुम्हारे झूठ का राजअहंकार। अहंकार सरासर झूठ है। ऐसी कोई चीज कहीं है नहीं। तुम हो नहींसिर्फ एक भ्रांति होहै तो पूर्ण। सारा अस्तित्व इकट्ठा है। यह भ्रांति है कि तुम अलग हो।

      कल ही एक मित्र से मैंने कहा कि अब जागो। तो उन्होंने कहा कि कोशिश बहुत करता हूं मन निंदा से भी भर जाता है अपने प्रति,अपराधी भी मालूम होता हूंबेईमान भी मालूम पड़ता हूं-क्योंकि जो करना चाहिए मालूम है,समझ में आता हैऔर नहीं कर रहा हूं। तो मैंने उनसे कहातुम एक ही कृपा करोयह करने का खयाल छोड़ दो। क्योंकि उसने पैदा किया,वही श्वास ले रहा हैतुम करना भी उसी पर छोड़ दो। उन्होंने कहा कि जन्म उसने दिया,इतना तक तो मैं मान सकता हूंलेकिन बाकी और काम वही कर रहा हैयह नहीं मान सकता। यह तो मैं मान ही नहीं सकता कि बेईमानी भी वही कर रहा है।

      अब यह थोड़ा सोचने जैसा है। हमें भी लगेगा कि बेचाराधार्मिक बात तो कह रहा है यह व्यक्तिकि बेईमानी कैसे परमात्मा पर छोड़ दूंलेकिन नहींसवाल यह नहीं है। अहंकार...! यह कोई परमात्मा को बचाने की चेष्टा नहीं है कि परमात्मा पर बेईमानी कैसे सौंप दूंयह भी अहंकार को बचाने की चेष्टा है। ध्यान रखना कि जब बेईमानी तुम करोगेतो ईमानदारी भी तुम ही करोगे। लेकिन जब जन्म भी तुम्हारा अपना नहीं है और मौत भी तुम्हारी अपनी नहीं हैतो दोनों के बीच में तुम्हारा अपना कुछ कैसे हो सकता हैजब दोनों छोर पराए हैंजब जन्म के पहले कोई और के हाथ में तुम होमौत के बाद किसी और के हाथ मेंतो यह बीच की थोड़ी सी जो घड़ियां हैंइनमें तुम अपने को सोच लेते हो अपने हाथ मेंवहीं भ्रांति हो जाती है। वही अहंकार तुम्हें जगने नहीं देता। वही अहंकार सोने की नयी तरकीबेंव्यवस्थाएं खोज लेता है।

      इसलिए बुद्धपुरुष आते हैं। उनके तीर ठीक तरकस से तुम्हारे हृदय की तरफ निकलते हैं। पर तुम बचा जाते हो।

      हजारों खिज़ पैदा कर चुकी है नस्ल आदम की
      आदमी ने कितने बुद्धपुरुष पैदा किए!
      हजारों खिज़-पैगंबरतीर्थंकर!
      हजारों खिज़ पैदा पर चुकी है
      नस्ल आदम की ये सब तस्लीम
      लेकिन आदमी अब तक भटकता है

      यह सब तस्लीमयह सब स्वीकार कि हजारों बुद्धपुरुष हुए हैं। पर इससे क्या फर्क पड़ता हैआदमी अब तक भटकता है। आदमी भटकना चाहता है। कहता तो आदमी यही है कि भटकना नहीं चाहता। कहते तो तुम मेरे पास यही होशात होना चाहते हैंसत्य होना चाहते हैंसरल होना चाहते हैं। लेकिन सच में तुम होना चाहते होया कि सरलता के नाम पर तुम नयी जटिलता खोज रहे होया सत्य के नाम पर तुमने नए झूठों की तलाश शुरू की हैया शाति के नाम पर अब तुमने एक नया रोग पालाअब तुम शाति के नाम पर अशात होने को उत्सुक हुए होसाधारण आदमी अशात होता है सिर्फशाति की तो कम से कम चिंता नहीं होती। अब तुम शाति के लिए भी चिंतित हुए। पुरानी अशांति तो बरकरारअब तुम और धन करोगे उसमेंगुणनफल करोगे। अब तुम कहोगे कि शाति भी चाहिए। अब एक नयी अशांति जुड़ीकि शाति नहीं है। झूठ तो तुम थे;अब तुम कहते होसत्य खोजेंगे। अब तुम सत्य के नाम पर कुछ नए झूठ ईजाद करोगे-स्वर्ग के,मोक्ष केनर्क केपरमात्मा केआकाश के।

      मंदिरों में जाओस्वर्गों के नक्शे टंगे हैं-पहला स्वर्गदूसरा स्वर्गपहला खंडदूसरा खंडतीसरा खंडसच खंड तकनक्शे टंगे हुए हैं। आदमी की मूढ़ता की कोई सीमा हैकोई अंत है! अपने घर का नक्शा भी तुमसे बनेगा नहीं। अपना भी नक्शा तुम बना न सकोगे कि तुम क्या होकहो होकौन होतुमने स्वर्ग के नक्शे बना लिए!


एस धम्‍मो सनंतनो--(प्रवचन-01)



आत्मक्रांति का प्रथम सूत्रअवैर--
(प्रवचन-पहला)

The first volume of a twelve-volume rendition of Es Dhammo Sanantano (एस धम्मो सनंतनो) (series), talks given on Gautam Buddha in the late 70s in Pune.

Nov 21, 1975 to Nov 30, 1975 : 

Comments

  1. So powerful , and so much important i feel ... Thank you for sharing , the video is blocked or deleted from youtube . I would like to listen it so if possible please try to load it once again ... 🙏🌹💖☺

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