Skip to main content

मैं तुम्हें जगाने आया हूँ - ओशो

मैं तुम्हें जगाने आया हूँ - ओशो 



साधारणत: आदमी की जिंदगी क्या है?कुछ सपने! कुछ टूटे-फूटे सपने! कुछ अभी भी साबितभविष्य की आशा में अटके! आदमी की जिंदगी क्या हैअतीत के खंडहरभविष्य की कल्पनाएं! आदमी का पूरा होना क्या हैचले जाते हैंउठते हैंबैठते हैंकाम करते हैं-कुछ पक्का पता नहींक्योंकुछ साफ जाहिर नहीं,कहा जा रहे हैंबहुत जल्दी में भी जा रहे हैं। बड़ी पहुंचने की तीव्र उत्कंठा हैलेकिन कुछ पक्का नहींकहां पहुंचना चाहते हैंकिस तरफ जाते हो?
      कल मैं एक गीत पढ़ता था साहिर का :
      न कोई जादा न कोई मंजिल न रोशनी का सुराग
      भटक रही है खलाओं में जिंदगी मेरी
      न कोई रास्तान कोई मंजिल,
      रोशनी का सुराग भी नहीं;
      कोई एक किरण भी नहीं।
      और पूरी जिंदगी अंधेरी घाटियों में,
      शून्य में भटक रही है।
      भटक रही है खलाओं में जिंदगी मेरी

      ऐसी ही मनुष्य की दशा है सदा से। बहुत सी झूठी मंजिलें भी तुम बना लेते हो। राहत के लिए कुछ तो चाहिए! सत्य बहुत कडुवा है। और अगर सत्य के साथ तुम खड़े हो जाओतो खड़े होना भी मुश्किल मालूम होगा।

      सिगमंड फ्रायड ने कहा है कि आदमी बिना झूठ के जी नहीं सकता। झूठ सहारा है। तो हम झूठी मंजिलें बना लेते हैं। असली मंजिल का तो कोई पता नहीं। बिना मंजिल के जीना असंभव। कैसे जीओगे बिना मंजिल केअगर यह पक्का ही हो जाए कि पता ही नहीं कहो जा रहे हैंतो पैर कैसे उठेंगेयात्रा कैसे होगीतो हम कल्‍पित मंजिल बना लेते हैंएक झूठी मंजिल बना लेते हैं। उससे राहत मिल जाती हैलगता है कहीं जा रहे हैं। कोई रास्ता नहीं है क्योंकि झूठी मंजिलों के कहीं कोई रास्ते होते हैं! जब मंजिल ही झूठी हैतो रास्ता कैसे हो सकता है?तो फिर हम रास्ता भी बना लेते हैं। रास्ता बना लेते हैंमंजिल बना लेते हैं-सब कल्पितसब मन के जालसब सपने! और ऐसे अपने को भर लेते हैं। और लगता है शून्य भर गयाजिंदगी बड़ी भरी-पूरी है।

      कोई कुछ दिन हुए चल बसा। एक मित्र ने आकर कहा कि आपको पता चलाफलां-फलां व्यक्ति चल बसेबड़ी भरी-पूरी जिंदगी थी! मैंने पूछारुको। चल बसेठीकउसमें तो कुछ किया नहीं जा सकता। लेकिन भरी-पूरी जिंदगी थीयह तुमसे किसने कहाशायद उन्होंने सोचकर कहा भी नहीं था। थोड़े झिझकेकहा,मैं तो ऐसे ही कह रहा था। कहने की बात थी। पर मैंने कहाकहा तब तुम भी सोचते होओगे कि बड़ी भरी-पूरी जिंदगी थी। मैं उनको जानता हू। और अगर तुम मुझसे पूछो तो कुछ भी नहीं हुआक्योंकि वे मरे हुए ही थे। अब मरा हुआ मर जाए इसमें कौन सी बड़ी घटना हो गयी। जिंदा वे कभी थे नहीं। क्योंकि जिंदगी तो सत्य के साथ ही उपलब्ध होती हैऔर कोई जिंदगी नहीं है। लेकिन जो झूठ के साथ जी रहा हैवह भी सोचता हैजिंदगी भरी-पूरी है।

      कितने झूठ तुमने बना रखे हैं! लड़का बड़ा होगाशादी होगीबच्चे होंगेधन कमाएगायश पाएगाऔर तुम मर रहे हो! और तुम्हारे बाप भी ऐसे ही मरेकिं तुम बड़े होओगेकि शादी होगीकि धन कमाओगे। और तुम्हारा लड़का थी ऐसे ही मरेगा। जिंदगी बड़ी भरी-पूरी जा रही है!

      बाप बेटे के लिए मर जाता है। बेटा अपने बेटे के लिए मर जाता है। ऐसा एक-दूसरे पर मरते चले जाते हैं। कोई जीता नहीं। मरना इतना आसानजीना इतना कठिन!

      लोग सोचते हैंमौत बड़ी दुस्तर है। गलत सोचते हैं। मौत में क्या दुस्तरता है? क्षण में मर जाते हो। जिंदगी दुस्तर है। सत्तर साल जीना होता है। और बिना झूठ के तुम जीना नहीं जानते होतो तुम हजार तरह के झूठ खड़े कर लेते हो-यशपदप्रतिष्ठासफलताधन। जब इनसे चुक जाते हो तो धर्ममोक्षस्वर्ग,परमात्माआत्माध्यानसमाधि। पर तुम कुछ न कुछ ताकि अपने को भरे रखो। और ध्यान रखनाबुद्ध का सारा जोर झूठ से खाली हो जाने पर है। सत्य से भरना थोड़े ही पड़ता है। झूठ से खाली हुए तो जो शेष रह जाता हैवही सत्य है। गयी बीमारीजो बचा वही स्वास्थ्य है।

      लेकिन कितने ही लोगों ने जगाने की कोशिश की हैतुम जागते नहीं। आदमी का झूठ को पैदा करने का अभ्यास इतना गहरा है कि वह बुद्ध के आसपास भी-बुद्ध भी मौजूद हों जगाने को तो उनके आसपास भी-अपनी नींद की सुविधा जुटा लेता है। बुद्ध जगाते हैंतुम उनके जगाने की चेष्टा को भी नशा बना लेते हो। तुम हर चीज में से शराब निकाल लेते हो। ऐसी कोई चीज नहीं है जिसमें से तुम शराब न निकाल लो। इसलिए तो बुद्ध आते हैंचले जाते हैंबुद्धपुरुष पैदा होते हैंविदा हो जाते हैंतुम अपनी जगह अडिग खड़े रहते होतुम अपने झूठ से हटते नहीं। शायदबुद्धपुरुषों ने जो कहा उसको भी तुम अपने झूठ में सम्मिलित कर लेते हो।

      क्या है तुम्हारे झूठ का राजअहंकार। अहंकार सरासर झूठ है। ऐसी कोई चीज कहीं है नहीं। तुम हो नहींसिर्फ एक भ्रांति होहै तो पूर्ण। सारा अस्तित्व इकट्ठा है। यह भ्रांति है कि तुम अलग हो।

      कल ही एक मित्र से मैंने कहा कि अब जागो। तो उन्होंने कहा कि कोशिश बहुत करता हूं मन निंदा से भी भर जाता है अपने प्रति,अपराधी भी मालूम होता हूंबेईमान भी मालूम पड़ता हूं-क्योंकि जो करना चाहिए मालूम है,समझ में आता हैऔर नहीं कर रहा हूं। तो मैंने उनसे कहातुम एक ही कृपा करोयह करने का खयाल छोड़ दो। क्योंकि उसने पैदा किया,वही श्वास ले रहा हैतुम करना भी उसी पर छोड़ दो। उन्होंने कहा कि जन्म उसने दिया,इतना तक तो मैं मान सकता हूंलेकिन बाकी और काम वही कर रहा हैयह नहीं मान सकता। यह तो मैं मान ही नहीं सकता कि बेईमानी भी वही कर रहा है।

      अब यह थोड़ा सोचने जैसा है। हमें भी लगेगा कि बेचाराधार्मिक बात तो कह रहा है यह व्यक्तिकि बेईमानी कैसे परमात्मा पर छोड़ दूंलेकिन नहींसवाल यह नहीं है। अहंकार...! यह कोई परमात्मा को बचाने की चेष्टा नहीं है कि परमात्मा पर बेईमानी कैसे सौंप दूंयह भी अहंकार को बचाने की चेष्टा है। ध्यान रखना कि जब बेईमानी तुम करोगेतो ईमानदारी भी तुम ही करोगे। लेकिन जब जन्म भी तुम्हारा अपना नहीं है और मौत भी तुम्हारी अपनी नहीं हैतो दोनों के बीच में तुम्हारा अपना कुछ कैसे हो सकता हैजब दोनों छोर पराए हैंजब जन्म के पहले कोई और के हाथ में तुम होमौत के बाद किसी और के हाथ मेंतो यह बीच की थोड़ी सी जो घड़ियां हैंइनमें तुम अपने को सोच लेते हो अपने हाथ मेंवहीं भ्रांति हो जाती है। वही अहंकार तुम्हें जगने नहीं देता। वही अहंकार सोने की नयी तरकीबेंव्यवस्थाएं खोज लेता है।

      इसलिए बुद्धपुरुष आते हैं। उनके तीर ठीक तरकस से तुम्हारे हृदय की तरफ निकलते हैं। पर तुम बचा जाते हो।

      हजारों खिज़ पैदा कर चुकी है नस्ल आदम की
      आदमी ने कितने बुद्धपुरुष पैदा किए!
      हजारों खिज़-पैगंबरतीर्थंकर!
      हजारों खिज़ पैदा पर चुकी है
      नस्ल आदम की ये सब तस्लीम
      लेकिन आदमी अब तक भटकता है

      यह सब तस्लीमयह सब स्वीकार कि हजारों बुद्धपुरुष हुए हैं। पर इससे क्या फर्क पड़ता हैआदमी अब तक भटकता है। आदमी भटकना चाहता है। कहता तो आदमी यही है कि भटकना नहीं चाहता। कहते तो तुम मेरे पास यही होशात होना चाहते हैंसत्य होना चाहते हैंसरल होना चाहते हैं। लेकिन सच में तुम होना चाहते होया कि सरलता के नाम पर तुम नयी जटिलता खोज रहे होया सत्य के नाम पर तुमने नए झूठों की तलाश शुरू की हैया शाति के नाम पर अब तुमने एक नया रोग पालाअब तुम शाति के नाम पर अशात होने को उत्सुक हुए होसाधारण आदमी अशात होता है सिर्फशाति की तो कम से कम चिंता नहीं होती। अब तुम शाति के लिए भी चिंतित हुए। पुरानी अशांति तो बरकरारअब तुम और धन करोगे उसमेंगुणनफल करोगे। अब तुम कहोगे कि शाति भी चाहिए। अब एक नयी अशांति जुड़ीकि शाति नहीं है। झूठ तो तुम थे;अब तुम कहते होसत्य खोजेंगे। अब तुम सत्य के नाम पर कुछ नए झूठ ईजाद करोगे-स्वर्ग के,मोक्ष केनर्क केपरमात्मा केआकाश के।

      मंदिरों में जाओस्वर्गों के नक्शे टंगे हैं-पहला स्वर्गदूसरा स्वर्गपहला खंडदूसरा खंडतीसरा खंडसच खंड तकनक्शे टंगे हुए हैं। आदमी की मूढ़ता की कोई सीमा हैकोई अंत है! अपने घर का नक्शा भी तुमसे बनेगा नहीं। अपना भी नक्शा तुम बना न सकोगे कि तुम क्या होकहो होकौन होतुमने स्वर्ग के नक्शे बना लिए!


एस धम्‍मो सनंतनो--(प्रवचन-01)



आत्मक्रांति का प्रथम सूत्रअवैर--
(प्रवचन-पहला)

The first volume of a twelve-volume rendition of Es Dhammo Sanantano (एस धम्मो सनंतनो) (series), talks given on Gautam Buddha in the late 70s in Pune.

Nov 21, 1975 to Nov 30, 1975 : 

Comments

  1. So powerful , and so much important i feel ... Thank you for sharing , the video is blocked or deleted from youtube . I would like to listen it so if possible please try to load it once again ... 🙏🌹💖☺

    ReplyDelete

Post a Comment

ओशो देशना (अविरल,अविस्मरणीय और आनंददायी)

Shiv sutra शिव सूत्र (ओशो) PDF

शिव—सूत्र—(ओशो) (समाधि साधपा शिवर, श्री ओशो आश्रम, पूना। दिनांक 11 से 20 सितंबर, 1974 तक ओशो द्वारा दिए गए दस अमृत—प्रवचनो का संकलन। Download Shiv Sutra (शिव सूत्र) PDF अनुक्रम         #1: जीवन-सत्य की खोज की दिशा         #2: जीवन-जागृति के साधना-सूत्र         #3: योग के सूत्र : विस्मय, वितर्क, विवेक         #4: चित्त के अतिक्रमण के उपाय         #5: संसार के सम्मोहन, और सत्य का आलोक         #6: दृष्टि ही सृष्टि ‍है         #7: ध्यान अर्थात चिदात्म सरोवर में स्नान         #8: जिन जागा तिन मानिक पाइया         #9: साधो, सहज समाधि भली!         #10: साक्षित्व ही शिवत्व है   Description Reviews

जिन खोजा तिन पाइयां -ओशो Pdf

जिन खोजा तिन पाइयां।                          -ओशो (कुंडलिनी - योग पर ध्यान शिविर, नारगोल में ध्यान प्रयोगों के साथ प्रवचन एवम मुम्बई में प्रश्नोत्तर चर्चाओं सहित "19" ओशो प्रवचनों का अपूर्व संकलन) pdf file  428 pages Download Pdf file Here Language :- Hindi  Size :- 3.3mb Type :- Pdf file जिन खोजा तिन पाइयां ऊर्जा का विस्तार है जगत और ऊर्जा का सघन हो जाना ही जीवन है। जो हमें पदार्थ की भांति दिखाई पड़ता है, जो पत्थर की भांति भी दिखाई पड़ता है, वह भी ऊर्जा, शक्ति है। जो हमें जीवन की भांति दिखाई पड़ता है, जो विचार की भांति अनुभव होता है, जो चेतना की भांति प्रतीत होता है, वह भी उसी ऊर्जा, उसी शक्ति का रूपांतरण है। सारा जगत-- चाहे सागर की लहरें, और चाहे सरू के वृक्ष, और चाहे रेत के कण, और चाहे आकाश के तारे, और चाहे हमारे भीतर जो है वह, वह सब एक ही शक्ति का अनंत-अनंत रूपों में प्रगटन है। ओशो  कुंडलिनी-यात्रा पर ले चलने वाली इस अभूतपूर्व पुस्तक के कुछ विषय बिंदु: शरीर में छिपी अनंत ऊर्जाओं को जगाने का एक आह्वान सात चक्रों व सात शरीरो

ध्यान सूत्र। (Dhyan sutra -ओशो Pdf file

ध्यान सूत्र। (Dhyan sutra)                                 -ओशो DHYAAN SUTRA 〰〰 🎙HINDI 📆1965 💿9 DISCOURSES अनुक्रमणिका : प्रवचन 1 - प्यास और संकल्प    3 प्रवचन 2 - शरीर-शुद्धि के अंतरंग सूत्र    18 प्रवचन 3 - चित्त-शक्तियों का रूपांतरण    42 प्रवचन 4 - विचार-शुद्धि के सूत्र    62 प्रवचन 5 - भाव-शुद्धि की कीमिया    77 प्रवचन 6 - सम्यक रूपांतरण के सूत्र    96 प्रवचन 7 - शुद्धि और शून्यता से समाधि फलित    119 प्रवचन 8 - समाधि है द्वार    133 प्रवचन 9 - आमंत्रण--एक कदम चलने का  👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻 Download Dhyan Sutra (ध्यान सूत्र) PDF

जीवन की खोज – Jeevan Ki खोज pdf osho

जीवन की खोज – Jeevan Ki Khoj अनुक्रम       #1: प्यास       #2:  मार्ग       #3: द्वार       #4: प्रवेश Download Jeevan Ki Khoj (जीवन की खोज) "Osho" PDF जीवन क्या है? उस जीवन के प्रति प्यास तभी पैदा हो सकती है, जब हमें यह स्पष्ट बोध हो जाए, हमारी चेतना इस बात को ग्रहण कर ले कि जिसे हम जीवन जान रहे हैं, वह जीवन नहीं है। जीवन को जीवन मान कर कोई व्यक्ति वास्तविक जीवन की तरफ कैसे जाएगा? जीवन जब मृत्यु की भांति दिखाई पड़ता है, तो अचानक हमारे भीतर कोई प्यास, जो जन्म-जन्म से सोई हुई है, जाग कर खड़ी हो जाती है। हम दूसरे आदमी हो जाते हैं। आप वही हैं, जो आपकी प्यास है। अगर आपकी प्यास धन के लिए है, मकान के लिए है, अगर आपकी प्यास पद के लिए है, तो आप वही हैं, उसी कोटि के व्यक्ति हैं। अगर आपकी प्यास जीवन के लिए है, तो आप दूसरे व्यक्ति हो जाएंगे। आपका पुनर्जन्म हो जाएगा। ओशो

कृष्ण स्मृति-ओशो Pdf

     कृष्ण स्मृति             -ओशो। (ओशो द्वारा कृष्ण के बहु-आयामी व्यक्तित्व पर दी गई 21 र्वात्ताओं एवं नव-संन्यास पर दिए गए एक विशेष प्रवचन का अप्रतिम संकलन। यही वह प्रवचनमाला है जिसके दौरान ओशो के साक्षित्व में संन्यास ने नए शिखरों को छूने के लिए उत्प्रेरणाली और "नव संन्यास अंतर्राष्ट्रीय' की संन्यास-दीक्षा का सूत्रपात हुआ।) File name :- कृष्ण स्मृति  Language :- Hindi Size:- 6mb 504 pages  Download Pdf file here अनुक्रमणिका : प्रवचन 1 - हंसते व जीवंत धर्म के प्रतीक कृष्ण    2 प्रवचन 2 - इहलौकिक जीवन के समग्र स्वीकार के प्रतीक कृष्ण    22 प्रवचन 3 - सहज शून्यता के प्रतीक कृष्ण    53 प्रवचन 4 - स्वधर्म-निष्ठा के आत्यंतिक प्रतीक कृष्ण    72 प्रवचन 5 - "अकारण'’ के आत्यंतिक प्रतीक कृष्ण    96 प्रवचन 6 - जीवन के बृहत् जोड़ के प्रतीक कृष्ण    110 प्रवचन 7 - जीवन में महोत्सव के प्रतीक कृष्ण    141 प्रवचन 8 - क्षण-क्षण जीने के महाप्रतीक कृष्ण    167 प्रवचन 9 - विराट जागतिक रासलीला के प्रतीक कृष्ण    196

ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है - ओशो

हंसा तो मोती चूने--(लाल नाथ)-प्रवचन-10 अवल गरीबी अंग बसै—दसवां प्रवचन  दसवा प्रवचन ; दिनाक 20 मई ,  1979 ; श्री रजनीश आश्रम ,  पूना यह महलों ,  यह तख्तों ,  यह ताजों की दुनिया यह इन्सां के दुश्मन समाजों की दुनिया  यह दौलत के भूखे रिवाजों की दुनिया  यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! हर एक जिस्म घायल ,  हर इक रूह प्यासी निगाहों में उलझन ,  दिलों में उदासी यह दुनिया है या आलमे-बदहवासी यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! यहां इक खिलौना है इन्सां की हस्ती यह बस्ती है मुर्दा -परस्तों की बस्ती यहां पर तो जीवन से है मौत सस्ती यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! जवानी भटकती है बदकार बनकर जवा जिस्म सजते हैं बाजार बनकर यहां प्यार होता है व्योपार बनकर यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! यह दुनिया जहां आदमी कुछ नहीं है वफा कुछ नहीं ,  दोस्ती कुछ नहीं है जहां प्यार की कद्र ही कुछ नहीं है यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! जला दो उसे फूंक डालो यह दुनिया मेरे सामने से हटा लो यह दुनिया तुम्हारी है तुम ही सम्हालो यह दुनिया

होश की साधना - ओशो || मुल्ला नसीरुद्दीन पर ओशो || Osho Jokes in Hindi

होश की साधना - ओशो   एक सुंदर अध्यापिका की आवारगी की चर्चा जब स्कूल में बहुत होने लगी तो स्कूल की मैनेजिंग कमेटी ने दो सदस्यों को जांच-पड़ताल का काम सौंपा। ये दोनों सदस्य उस अध्यापिका के घर पहुंचे। सर्दी अधिक थी, इसलिए एक सदस्य बाहर लान में ही धूप सेंकने के लिए खड़ा हो गया और दूसरे सदस्य से उसने कहा कि वह खुद ही अंदर जाकर पूछताछ कर ले। एक घंटे के बाद वह सज्जन बाहर आए और उन्होंने पहले सदस्य को बताया कि अध्यापिका पर लगाए गए सारे आरोप बिल्कुल निराधार हैं। वह तो बहुत ही शरीफ और सच्चरित्र महिला है। इस पर पहला सदस्य बोला, "ठीक है, तो फिर हमें चलना चाहिए। मगर यह क्या? तुमने केवल अंडरवीयर ही क्यों पहन रखी है? जाओ, अंदर जाकर फुलपेंट तो पहन लो।" यहां होश किसको? मुल्ला नसरुद्दीन एक रात लौटा। जब उसने अपना चूड़ीदार पाजामा निकाला तो पत्नी बड़ी हैरान हुई; अंडरवीयर नदारद!! तो उसने पूछा, "नसरुद्दीन अंडरवीयर कहां गया?" नसरुद्दीन ने कहा कि अरे! जरूर किसी ने चुरा लिया!! अब एक तो चूड़ीदार पाजामा! उसमें से अंडरवीयर चोरी चला जाए और पता भी नहीं चला!! चूड़ीदार पाजामा नेतागण पहनते

बुल्ला की जाना मैं कौण - ओशो

आपुई गई हिराय-(प्रश्नत्तोर)-प्रवचन-04 आपुई गई हिराय-(प्रश्नत्तोर)-ओशो दिनांक 0 4 -फरवरी ,  सन् 1981 , ओशो आश्रम ,  पूना। प्रवचन-तीसरा -( फिकर गया सईयो मेरियो नी ) बुल्लेशाह का यह वक्तव्य सुनो। बुल्ला की जाना मैं कौण! न मैं मोमिन विच मसीतां ,  न मैं विच कुफर दीयां रीतां। न मैं पाकां विच पलीतां ,  न मैं मूसा न फरऔन।। बुल्ला की जाना मैं कौण! न मैं अंदर बेद कताबां ,  न विच भंग न शराबां। न विच रहिंदा मस्त खवाबां ,  न विच जागन न विच सौन।। बुल्ला की जाना मैं कौण! न विच शादी न गमनाकी ,  न मैं विच पलीती पाकी। न मैं आबी न मैं खाकी ,  न मैं आतश न मैं पौन।। बुल्ला की जाना मैं कौण! न मैं अरबी न लाहोरी ,  न हिंदी न शहर नगौरी। न मैं हिंदू तुर्क पशौरी ,  न मैं रहिंदा विच नदौन।। बुल्ला की जाना मैं कौण! अव्वल आखर आप नू जाना ,  न कोई दूजा होर पछाना। मैथों होर न कोई सयाना ,  बुल्ला शाह किहड़ा है कौन।। बुल्ला की जाना मैं कौण! अर्थात ,  बुल्लेशाह कहते हैं कि मैं क्या जानूं कि मैं कौन हूं! बुल्ला की जाना मैं कौण! ऐसा सन्नाटा है ,  ऐसी समाधि

पति और पत्नी का संबंध और प्रेम - ओशो

मराैै है जोगी मरौ-(प्रवचन-08) आओ चाँदनी को बिछाएं ,  ओढ़े— प्रवचन—आठवां 8 अक्‍टूबर ,  1978 ; श्री रजनीश आश्रम ,  पूना। आखिरी प्रश्न : मैं अपनी पत्नी के अतिरिक्त अन्य स्त्रियों में भी उत्सुक हो जाता हूं लेकिन जब मेरी पत्नी किसी पुरुष में उत्सुकता दिखाती है तो मुझे बड़ी ईर्ष्या होती है भयंकर अग्नि में मैं जलता हूं। पु रुषों ने सदा से अपने लिए सुविधाएं बना रखी थीं ,  स्त्रियों को अवरुद्ध कर रखा था। पुरुषों ने स्त्रियों को बंद कर दिया था मकानों की चार दीवारों में ,  और पुरुष ने अपने को मुक्त रख छोड़ा था। अब वे दिन गए। अब तुम जितने स्वतंत्र हो ,  उतनी ही स्त्री भी स्वतंत्र है। और अगर तुम चाहते हो कि ईर्ष्या में न जलों तो दो ही उपाय हैं। एक तो उपाय है कि तुम स्वयं भी वासना से मुक्त हो जाओ। जहा वासना नहीं वहां ईर्ष्या नहीं रह जाती। और दूसरा उपाय है कि अगर वासना से मुक्त न होना चाहो तो कम—से—कम जितना हक तुम्हें है ,  उतना हक दूसरे को भी दे दो। उतनी हिम्मत जुटाओ। मैं तो चाहूंगा कि तुम वासना से मुक्त हो जाओ। एक स्त्री जान ली तो सब स्त्रियां जान लीं। एक प

शिवलिंग का रहस्य - ओशो

शिवलिंग का रहस्य - ओशो पुराण में कथा यह है कि विष्णु और ब्रह्मा में किसी बात पर विवाद हो गया। विवाद इतना बढ़ गया कि कोई हल का रास्ता न दिखायी पड़ा, तो उन्होंने कहा कि हम चलें और शिवजी से पूछ लें, उनको निर्णायक बना दें। वे जो कहेंगे हम मान लेंगे। तो दोनों गए। इतने गुस्से में थे, विवाद इतना तेज था कि द्वार पर दस्तक भी न दी, सीधे अंदर चले गए। शिव पार्वती को प्रेम कर रहे हैं। वे अपने प्रेम में इतने मस्त हैं कि कौन आया कौन गया, इसकी उन्हें फिक्र ही नहीं है। ब्रह्मा-विष्णु थोड़ी देर खड़े रहे, घड़ी-आधा-घड़ी, घड़ी पर घड़ी बीतने लगी और उनके प्रेम में लवलीनता जारी है। वे एक-दूसरे में डूबे हैं। भूल ही गए अपना विवाद ब्रह्मा और विष्णु और दोनों ने यह शिवजी के ऊपर दोषारोपण किया कि हम खड़े हैं, हमारा अपमान हो रहा है और शिव ने हमारी तरफ चेहरा भी करके नहीं देखा। तो हम यह अभिशाप देते हैं कि तुम सदा ही जननेंद्रियों के प्रतीक-रूप में ही जाने जाओगे। इसलिए शिवलिंग बना। तुम्हारी प्रतिमा कोई नहीं बनाएगा। तुम जननेंद्रिय के ही रूप में ही बनाए जाओगे। वही तुम्हारा प्रतीक होगा। यही हमारा अभिशाप है, ताकि यह बात सद