एक स्कूल में पूछ रहा है शिक्षक बच्चों से कि समझ लो तुम्हारे बाड़े में दस भेड़ें बंद हैं,उनमें से एक बाड़े की छलांग लगा कर निकल गई तो भीतर कितनी बचेंगी? एक लड़का जोर—जोर से हाथ हिलाने लगा, जो कभी हाथ नहीं हिलाता था! शिक्षक चकित हुआ, उसने कहा कि बोलो—बोलो, तुम तो कभी हाथ नहीं हिलाते! उसने कहा कि आप प्रश्न ही ऐसे पूछते थे, जिनका मुझे कोई अनुभव नहीं। इसका मुझे अनुभव है। एक भी भेड़ नहीं बचेगी।
शिक्षक ने कहा. तेरे को जरा भी अकल है कि नहीं? दस भेड़ें बंद हैं मैंने कहा, एक छलांग लगा कर निकल गई, तो भीतर एक भी नहीं बचेगी? उस बच्चे ने कहा : आपको गणित का अनुभव होगा, मुझे भेड़ों का अनुभव है। मेरे घर में भेड़ें हैं। इसीलिए तो मैं इतने जोर से हाथ हिला रहा हूं कि इसका जवाब कोई दूसरा नहीं दे सके गा। और गणित के हिसाब से जो सही है वह कोई जिंदगी के हिसाब से सही हो, यह जरूरी थोड़े ही है। जब एक भेड़ निकल जाएगी तो बाकी नौ भेड़ भी उसके पीछे निकल जाएंगी। भेड़ें तो पीछे चलती हैं एक—दूसरे के। भेड़ों में कोई व्यक्तित्व नहीं होता।
तो जिस व्यक्ति ने नहीं कहना नहीं सीखा वह भीड़ का हिस्सा रह जाएगा, वह भेड़ रह जाएगा। भीड़ का जो हिस्सा है वह भेड़ है। भीड़ भेड़ों की है। और इसलिए भीड़ नहीं चाहती तुमसे कि तुम नहीं कहना सीखो। पंडित,पुजारी, राजनेता नहीं चाहते कि तुममें इतनी क्षमता आए कि तुम नहीं कह सको। वे तो तुम्हें पाठ पढ़ाए जाते हैं शुरू से ही— श्रद्धा, आस्था,आस्तिकता, विनम्रता, आज्ञाकारिता। ये शब्द बड़े प्यारे हैं, लेकिन एक खास उम्र के बाद प्यारे हैं, उसके पहले ये जहर हैं।
हर चीज का मौसम होता है, खयाल रखना। और मौसम में अगर पानी दोगे तो कभी फूल आएंगे वृक्षों में; बेमौसम पानी दे दिया तो हो सकता है वृक्ष की जड़ें भी सड़ जाएं। और गणित से मत चलना। जिंदगी गणित नहीं है
एक गणितज्ञ ने होटल खोली। खूबी यह थी कि होटल में सब्जियों के भाव बहुत ज्यादा थे। श्री भोंदूमल जब खाना खाने के लिए आए तो बिल देख कर घबड़ा गए। उन्होंने जाकर होटल मालिक से कहा, हद हो गई भाई! इतनी महंगी सब्जियों की प्लेट! आखिर बात क्या है,इस सब्जी में ऐसी कौन सी चीज है?
दिखता नहीं भोंदूमल जी, इस सब्जी में पचास प्रतिशत फल और पचास प्रतिशत तरकारी का मिश्रण है! फलों के कारण ही यह इतनी महंगी है।
मगर मुझे तो फल का एक टुकड़ा भी दिखाई नहीं दिया!
वह तो मुझे भी दिखाई नहीं देता— गणितज्ञ होटल मालिक बोला— क्योंकि यह सब्जी एक अंगूर और एक कदू को मिला कर जो बनाई गई है।
गणित का एक जगत है, वहां एक कदू और एक अगर...। जीवन गणित नहीं है और न जीवन विज्ञान है।
मुल्ला नसरुद्दीन ने एक अप्रैल के दिन अपने दोस्तों को अप्रैल—फूल बनाने की सोची। उसने अपने वैज्ञानिक मित्र चंदूलाल को, जो कि एक माह से कश्मीर सैर करने गए थे, एक टेलीग्राम किया। टेलीग्राम में उसने सिर्फ इतना लिखा प्रिय चंदूलाल, अब मेरी तबीयत ठीक है। घबड़ाने की कोई बात नहीं। तुम्हारा— मुल्ला नसरुद्दीन।
दूसरे ही दिन श्रीनगर से वीपी पी. द्वारा एक बहुत बड़ा तथा वजनदार पैकेट आया। नसरुद्दीन को इस पैकेट को छुड़ाने में पांच सौ अस्सी रुपये देने पड़े। जल्दी से उत्सुकतावश उसने पैकेट खोला। पैकेट में एक बड़ा पत्थर का टुकड़ा था, जिसके साथ रखी एक चिट पर लिखा था प्रिय नसरुद्दीन, तार पाकर छाती पर से इतना बोझ उतर गया। तुम्हारा— चंदूलाल।
जिंदगी सीधी—साफ नहीं है, जैसा गणित और वितान है। जिंदगी काव्य है, जिंदगी संगीत है। और संगीत बहुत स्वरों से मिल कर बनता है। जिंदगी इंद्रधनुष है— सप्तरंगी है। जिंदगी संगीत है—पूरा सरगम, सातों स्वर!
नास्तिकता से शुरू होती है जिंदगी और आस्तिकता पर पूर्ण होती है।
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