Skip to main content

बुल्ला की जाना मैं कौण - ओशो



आपुई गई हिराय-(प्रश्नत्तोर)-प्रवचन-04

आपुई गई हिराय-(प्रश्नत्तोर)-ओशो



दिनांक 04-फरवरीसन् 1981,
ओशो आश्रमपूना।
प्रवचन-तीसरा-(फिकर गया सईयो मेरियो नी)

बुल्लेशाह का यह वक्तव्य सुनो।
बुल्ला की जाना मैं कौण!
न मैं मोमिन विच मसीतांन मैं विच कुफर दीयां रीतां।
न मैं पाकां विच पलीतांन मैं मूसा न फरऔन।।
बुल्ला की जाना मैं कौण!
न मैं अंदर बेद कताबांन विच भंग न शराबां।
न विच रहिंदा मस्त खवाबांन विच जागन न विच सौन।।
बुल्ला की जाना मैं कौण!
न विच शादी न गमनाकीन मैं विच पलीती पाकी।
न मैं आबी न मैं खाकीन मैं आतश न मैं पौन।।
बुल्ला की जाना मैं कौण!
न मैं अरबी न लाहोरीन हिंदी न शहर नगौरी।
न मैं हिंदू तुर्क पशौरीन मैं रहिंदा विच नदौन।।
बुल्ला की जाना मैं कौण!
अव्वल आखर आप नू जानान कोई दूजा होर पछाना।
मैथों होर न कोई सयानाबुल्ला शाह किहड़ा है कौन।।
बुल्ला की जाना मैं कौण!
अर्थातबुल्लेशाह कहते हैं कि मैं क्या जानूं कि मैं कौन हूं!
बुल्ला की जाना मैं कौण!
ऐसा सन्नाटा हैऐसी समाधि हैऐसा शून्य है--कौन जानेकिसको जाने! जानने में द्वैत होता है--जानने वाला और जो जाना जाएज्ञाता और ज्ञेय।
बुल्ला की जाना मैं कौण!
बुल्लेशाह कहते हैं: "मैं क्या जानूं कि मैं कौन हूं!'
न जानने वाला है कोईन जानने को है कोई। सब सन्नाटा हैसब शून्य हैनिराकार है। यह अवस्था ध्यान की है।
"न मैं मस्जिद में मोमिन हूं।'
मत कहो कि मैं मुसलमान हूं। मेरा क्या लेना-देना मस्जिद से और मुसलमान से!
"न मैं कुफ्र की रीतियों में हूं।'
और यह मत सोचना कि मैं मुसलमान नहीं हूं तो मैं मुसलमान विरोधी हूं। वह भी मैं नहीं हूं।
"न मैं पापियों में पवित्र हूंऔर न ही मैं मूसा हूं,न फरऔन हूं। बुल्ला कहता हैमैं क्या जानूं मैं कौन हूं।'
मत पूछो! मुसलमान हूंहिंदू हूंईसाई हूंयहूदी हूं--मत पूछो।
बुल्ला की जाना मैं कौण!
न मैं मोमिन विच मसीतांन मैं विच कुफर दीयां रीतां।
न मैं पाकां विच पलीतांन मैं मूसा न फरऔन।।
बुल्ला की जाना मैं कौण!
"न मैं वेद-किताबों में हूं और न भांग व शराब में। न मैं सपनों में मस्त हूंन सोने में और न जागने में।'
गजब की बात कही कि न मैं सपनों में मस्त हूं,न सोने में और न जागने में। मैं तो वह हूं जो जागने को भी देखता हैजो जागने के भी पार है।
"बुल्ला कहता हैमैं क्या जानूं मैं कौन हूं!'
न मैं अंदर बेद कताबांन विच भंग न शराबां।
न विच रहिंदा मस्त खवाबांन विच जागन न विच सौन।।
बुल्ला की जाना मैं कौण!
"न मैं खुशी में हूं और न गम में हूंन पाप में हूं,न पुण्य में हूंऔर न मैं पानी हूं या राख में हूंन मैं आग में हूं और न मैं पवन में हूं। बुल्ला कहता हैमैं क्या जानूं मैं कौन हूं!'
"न मैं अरबी हूंन लाहौरी हूंन हिंदी और न नागरी हूंन मैं हिंदू हूं या पेशावर का तुर्क हूं;और न मैं नदौन में रहता हूं। बुल्ला कहता हैमैं क्या जानूं मैं कौन हूं!'
"आदि और अंत में मैं अपने को ही जानता हूं।'
बहुत प्यारा वचन है यह!
अव्वल आखर आप नू जानान कोई दूजा होर पछाना।
पहले भी मैं अपने को ही जानता थाअब भी मैं अपने को जानता हूंअंत में भी मैं अपने को जानूंगा। मैं जानने वाला मात्र हूंजानने को कोई भी नहीं। ज्ञेय कोई भी नहींमैं ज्ञान मात्र हूं--चिन्मात्र।
"आदि और अंत में मैं अपने को ही जानता हूं,किसी दूसरे को नहीं।'
दूसरे को तो पहचानता ही नहीं।
"बुल्ला कहता है कि मुझसे ज्यादा सयाना और कौन है?'
सुधिया अर्थात सयाना। जिसको सुध आ गई।
"मुझसे ज्यादा सयाना और कौन हैइसलिए परमात्मा कौन है?'
गहरी बात बुल्ले ने कही: मुझसे सयाना कौन हैपरमात्मा कौन हैपरमात्मा कौन है?क्योंकि जब मैं ही सबसे ज्यादा सयाना हूं तो मुझसे पार और कुछ भी नहीं।
जिसने शरीरमन और वचनकामनावासना और भावना का अतिक्रमण कियावहां कहां कृष्ण और कहां भक्त! वहां भक्त ही भगवान है। वहां कैसा भगवान?
"बुल्ला कहता हैमैं क्या जानूं मैं कौन हूं!'
अव्वल आखर आप नू जानान कोई दूजा होर पछाना।
मैथों होर न कोई सयानाबुल्ला शाह किहड़ा है कौन।।
बुल्ला की जाना मैं कौण!
शंकराचार्य का यह वचन: "प्राण हरण करने वाले काल के उपस्थित होने पर सदबुद्धि वालों को यत्नपूर्वक तुरंत क्या करना चाहिए?'
पहली तो बात यह कि कोई जीवन को समाप्त करने वाली घड़ी नहीं आती।
तुम मुझसे पूछते हो सहजानंद कि आप इस प्रश्न का उत्तर देने की अनुकंपा करें।
अगर मुझसे तुम पूछोगे तो मैं कहूंगाप्राण हरण करने वाली कोई घड़ी कभी आती नहीं। मृत्यु हुई ही नहीं--कभी नहीं हुई। मृत्यु इस जगत में सबसे बड़ा असत्य हैभ्रांति है। और भ्रांति इसलिए पैदा हो जाती है कि जैसे रस्सी में कोई सांप को देख ले और फिर दीया जलाए और सांप को न पाएतो क्या हम कहेंगे कि सांप मर गया?
सांप था ही नहीं तो मरेगा कैसेएक भ्रांति थी,भ्रांति की कोई मृत्यु होती हैतुमने अपने को शरीर मान लियाइसलिए एक भ्रांति पैदा हो गईरस्सी में सांप दिखाई पड़ने लगा। फिर मौत जिसको तुम कहते हो--संबंध टूटाशरीर से तुम अलग हुए--फिर तुम रोने-चिल्लाने लगे कि अब मैं मराअब मैं मरा।
सिर्फ तादात्म्य टूट रहा हैन कोई मर रहा हैन कोई मर सकता है। मुझसे अगर पूछो तो मैं कहूंगाप्राण हरण करने वाला काल कभी उपस्थित ही नहीं होता।
दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा मैंने तुझे याद किया
वो उन्हें याद करें जिसने भुलाया हो कभी
हमने  उनको  न  भुलाया  न  कभी  याद  किया
परमात्मा को याद करने में भी भूल है। यह कृष्ण को याद करने की बात ही भूल भरी है।
दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा मैंने तुझे याद किया
वो उन्हें याद करें जिसने भुलाया हो कभी
हमने उनको न भुलाया न कभी याद किया

कोई समझाए ये क्या रंग है मैखाने का
आंख साकी की उठेनाम हो पैमाने का
गर्मिए-शम्मा का अफसाना सुनाने वालो
रक्स देखा नहीं तुमने अभी परवाने का
किसको मालूम थी पहले से खिरद की कीमत
आलमे-होश पे एहसान है दीवाने का
चश्मे-साकी मुझे हर गाम पे याद आती है
रास्ता भूल न जाऊं कहीं मैखाने का
अब तो हर शाम गुजरती है उसी कूचे में
ये नतीजा हुआ नासेह तेरे समझाने का
मंजिले-गम से गुजरना तो है आसां इक बार
इश्क है नाम खुद अपने से गुजर जाने का
कोई समझाए ये क्या रंग है मैखाने का
आंख  साकी  की  उठे,  नाम  हो  पैमाने  का
याद करो परमात्मा कोयह बात ही गलत। भूलो मत परमात्मा कोयह बात जरूर सही है। तुम थोड़ी दुविधा में पड़ोगे। तुम कहोगे मैंने फिर पहेली कही। दोहरा दूं: याद करो परमात्मा को,यह बात ही गलत। याद किया हुआ परमात्मा दो कौड़ी का। क्योंकि याद तुम क्या करोगेतुम्हें याद नहीं है इसीलिए तो याद कर रहे हो। तो तुम जो याद करोगेवह कल्पना ही होगीकोई धारणा ही होगी। हिंदू हुए तो कृष्ण।
ये शंकराचार्य अगर ईसाई होते तो कभी भूल कर न कहते कि कृष्ण को याद करोकहते क्राइस्ट को याद करो। अगर ये बौद्ध होते तो कहते बुद्ध को याद करो। अगर ये जैन होते तो कहते महावीर को याद करो। किसको याद करोगेयाद करोगे तो कल्पना ही होगी। याद नहीं है इसीलिए तो याद करते हो। और जब याद नहीं है तो जाहिर है कि तुम कल्पना ही कर सकते होऔर क्या करोगे?
मैं नहीं कहता कि परमात्मा को याद करो। मैं कहता हूंबात कुछ ऐसी बनानी है कि परमात्मा भूले नहीं। यह बात बिलकुल और हैअन्यथा है। परमात्मा भूले नहीं। याद नहीं करना है। शरीर से तादात्म्य तोड़ना हैमन से नाता मुक्त करना हैहृदय के पार उठना हैपंख फैलाने हैं। और जैसे ही तुम शरीरमन और हृदय के पार उठेजैसे ही तुमने पंख फैलाए और आकाश खुलाकि फिर जो दिखाई पड़ेगा वही परमात्मा की याद है। फिर वह कृष्ण की याद नहीं हैन क्राइस्ट कीन मोहम्मद कीन मूसा की। फिर उसका कोई रूप नहींरंग नहींगुण नहीं। फिर तो एक निराकार बोध हैसुधियासमाधि है।
क्या भला मुझको परखने का नतीजा निकला
जख्मे-दिल आपकी नजरों से भी गहरा निकला
क्या भला मुझको परखने का नतीजा निकला

तोड़ कर देख लिया आईना-ए-दिल तूने
तेरी  सूरत  के  सिवा  और  बता  क्या  निकला
याद करने की बात ही नहीं। याद कभी भूल कर न करना। ऐसे शून्य में अपने को ले जाना है जहां लाख कोई खोजे तो परमात्मा के सिवा और कुछ निकले ही नहीं।
यह जो कृष्ण को याद कर रहा हैजरा कुरेदोगे तो कुछ और निकल आएगा। यह कृष्ण को याद करने वाला तो अंधा आदमी है जो रोशनी को याद कर रहा है। जरा कुरेदोगे कि अंधापन निकल आएगा। जरा खोजबीन करोगे कि पता चल जाएगा अंधा है।
क्या भला मुझको परखने का नतीजा निकला
जख्मे-दिल आपकी नजरों से भी गहरा निकला
क्या भला मुझको परखने का नतीजा निकला

तोड़ कर देख लिया आईना-ए-दिल तूने
तेरी सूरत के सिवा और बता क्या निकला
क्या भला मुझको परखने का नतीजा निकला

जब कभी तुझको पुकारा मेरी तनहाई ने
बू उड़ी फूल सेतस्वीर से साया निकला
क्या भला मुझको परखने का नतीजा निकला

तिश्नगी जम गई पत्थर की तरह ओंठों पर
डूब कर भी तेरे दरिया से मैं प्यासा निकला
क्या भला मुझको परखने का नतीजा निकला
जख्मे-दिल आपकी नजरों से भी गहरा निकला
बात तब बनती है जब परमात्मा भूले नहीं। तब नहीं बनती बात जब परमात्मा को याद करना पड़े। इसलिए मैं न कहूंगा कि मृत्यु के क्षण में परमात्मा को याद करना। मैं तो कहूंगामृत्यु के क्षण की प्रतीक्षा क्या करनीजीओ परमात्मा को! मौत तो कल होगीजीना आज है।
खयाल रखनामौत हमेशा कल होती है और जीना आज होता है। आज अगर परमात्मा को न जान सकोगे तो कल कैसे जान लोगेकल आज से ही तो निकलेगाआज से ही तो जन्मेगाआज की ही कोख से तो पैदा होगा। कल आएगा कहां से?
मैं कल की बात ही नहीं करता। मैं तो कहता हूं: आज जीओ! परमात्मा को जीना हैपीना है;उठना हैबैठना हैचलना हैफिरना है। परमात्मा तुम्हारे जीवन की शैली और व्यवस्था होना चाहिए। परमात्मा सिर्फ याददाश्त नहीं;किसी मंदिर में बैठ कर बजाई गई घंटों की आवाज नहींकिसी मजार पर चढ़ाया गया दीया नहीं। परमात्मा तुम्हारे उठने-बैठनेखाने-पीनेसोने-जागने की पूरी शैली का नाम हैपूरी व्यवस्था का नाम है। परमात्मा एक जीने का ढंग है--जीने की एक कविताजीने का एक संगीत।
जीओ परमात्मा को। और तब तुम पाओगे मौत आती ही नहींहोती ही नहीं। फिर कृष्ण इत्यादि के चरण-कमलों को याद करने की जरूरत न पड़ेगी। और जीया नहीं अगर परमात्मा कोतो तुम लाख चरण-कमलों को याद करोकुछ काम न आएंगे।
यह मरते वक्त की बेईमानी काम नहीं पड़ सकती है। जिंदगी भर तो धन के पीछे दौड़ो,और मरते वक्त मनवचन और शरीर से ध्यान करोगेकैसे करोगेजिंदगी भर तो कुछ और,और जब अरथी उठे तो राम-नाम सत्य! यह कैसे होगाहांदूसरे कहेंगे राम-नाम सत्य! मगर तुम तो जा चुके। तुम तो अब वहां नहीं हो। और ये दूसरे भी जल्दी राम-नाम सत्य करके अपने-अपने घर जाना है इनको। दूसरे काम सत्य हैं। "राम-नाम सत्य हैतो दूसरे के लिए बोल रहे हैंअपने लिए नहीं बोल रहे हैं। ये तो इसलिए दूसरे के लिए बोल रहे हैं कि जब ये मरें तो दूसरे इनके लिए बोल दें। यह एक औपचारिकता है। यह लेन-देन हैदुनिया का हिसाब-किताब हैव्यवहार है।
नहींमैं न कहूंगा कि मृत्यु की प्रतीक्षा करो तब परमात्मा का बोध जगाना। अभीयहींइसी क्षण क्यों न परमात्मा के बोध को जगाओकल पर क्यों टालोजो मूल्यवान है उसे हम अभी करते हैंजो मूल्यहीन है उसे कल पर टालते हैं।
और याद नहीं करना है परमात्मा को। इसलिए मैं यहां प्रार्थना पर जोर नहीं देतामेरा जोर ध्यान पर है। प्रार्थना है परमात्मा को याद करना और ध्यान है उस अवस्था में पहुंच जाना जहां भुलाना भी चाहो परमात्मा को तो भुला नहीं सकते हो। लाख भुलाने का उपाय करोनहीं भुला सकते हो। क्योंकि वही हैएकमात्र वही है।
यह जो तुम कृष्ण को याद कर लोगे या क्राइस्ट को याद कर लोगेइस याददाश्त में यह हो सकता है कि भूल जाओ मृत्यु की पीड़ा को थोड़ी देर के लिए। लेकिन यह बस भांग और गांजा और शराब या कहो सोमरस...अगर वैदिक धर्म का सार निकालना हो तो भावातीत ध्यान नहीं हैजैसा महर्षि महेश योगी कहते हैं,बल्कि सोमरस। सोमरस वैदिक धर्म का सार है। नशा! नशा चढ़ सकता है। और अगर जोर से बकवास करो तो यह भी हो सकता हैयमदूत आ गए होंभाग खड़े हों। ऐसा मैंने सुना--
कवि लक्कड़ जी हो गए अकस्मात बीमार,
बिगड़ गई हालतमचा घर में हाहाकार।
घर में हाहाकारडाक्टर ने बतलाया,
दो घंटे में छूट जाएगी इनकी काया।
पत्नी रोई--ऐसी कोई सुई लगा दो,
मेरा बेटा आएतब तक इन्हें बचा दो।

मना कर गए डाक्टरहालत हुई विचित्र,
फक्कड़ बाबा आ गएलक्कड़ जी के मित्र।
लक्कड़ जी के मित्रकरो मत कोई चिंता,
दो घंटे क्यादस घंटे तक रख लूं जिंदा।
सब को बाहर कियाहो गया कमरा खाली,
बाबाजी ने अंदर से चटखनी लगा ली।

फक्कड़ जी कहने लगे--"अहो काव्य के ढेर!
हमें छोड़ तुम जा रहेयह कैसा अंधेर?
यह कैसा अंधेरतरस मित्रों पर खाओ,
श्रीमुख से कविता दो-चार सुनाते जाओ।'
यह सुन कर लक्कड़ जी पर छाई खुशहाली,
तकिये के नीचे से काव्य-किताब निकाली।

कविता पढ़ने लग गएभाग गए यमदूत,
सुबह पांच की टे्रन से आए कवि के पूत।
आए कवि के पूतन थी जीवन की आशा,
पहुंचे कमरे में तो देखा अजब तमाशा।
कविता-पाठ कर रहे थे कविवर लक्कड़ जी,
होकर  "बोर'  मर  गए  थे  बाबा  फक्कड़  जी।
अब तुम अगर ज्यादा बकवास मचा दो--हरे कृष्णाहरे रामाहरे कृष्णाहरे रामा--हो सकता है यमदूत घबड़ा जाएंइधर-उधर खिसक जाएं। मगर फिर लौट आएंगे। कितनी देर तक शोरगुल मचाओगेयूं नहीं चलेगायूं नहीं चल सकता है। जीवन रूपांतरित होना चाहिए। धर्म श्वास-श्वास में होना चाहिएहृदय की धड़कन-धड़कन में। और तब पाया जाता है अमृत का स्रोत अपने ही भीतर। शाश्वत स्रोत। उसकी एक बूंद भी पड़ जाएफिर कोई मृत्यु नहीं है। अमृतस्य पुत्रः! तुम सब अमृत पुत्र हो। याद नहींसुध नहीं। सुध लानी है।
सुध लाने की प्रक्रिया ध्यान है। और ध्यान शंकराचार्य वाला नहीं कि तन सेमन सेवचन से ध्यान कर रहे हो। ध्यान से मेरा अर्थ है--निर्विचार चित्त की दशाशून्यनिराकार,निर्विकल्पजहां सिर्फ होना मात्र रह जाएन कुछ जानने को बचेन जानने वाला बचेजहां सब दुई मिट जाए। और जहां दो मिट गएएक रहावही है परमात्मा का सच्चा अनुभव। वही अनुभव मोक्षदायी हैवही अनुभव मोक्ष है।

Comments

ओशो देशना (अविरल,अविस्मरणीय और आनंददायी)

जीवन की खोज – Jeevan Ki खोज pdf osho

जीवन की खोज – Jeevan Ki Khoj अनुक्रम       #1: प्यास       #2:  मार्ग       #3: द्वार       #4: प्रवेश Download Jeevan Ki Khoj (जीवन की खोज) "Osho" PDF जीवन क्या है? उस जीवन के प्रति प्यास तभी पैदा हो सकती है, जब हमें यह स्पष्ट बोध हो जाए, हमारी चेतना इस बात को ग्रहण कर ले कि जिसे हम जीवन जान रहे हैं, वह जीवन नहीं है। जीवन को जीवन मान कर कोई व्यक्ति वास्तविक जीवन की तरफ कैसे जाएगा? जीवन जब मृत्यु की भांति दिखाई पड़ता है, तो अचानक हमारे भीतर कोई प्यास, जो जन्म-जन्म से सोई हुई है, जाग कर खड़ी हो जाती है। हम दूसरे आदमी हो जाते हैं। आप वही हैं, जो आपकी प्यास है। अगर आपकी प्यास धन के लिए है, मकान के लिए है, अगर आपकी प्यास पद के लिए है, तो आप वही हैं, उसी कोटि के व्यक्ति हैं। अगर आपकी प्यास जीवन के लिए है, तो आप दूसरे व्यक्ति हो जाएंगे। आपका पुनर्जन्म हो जाएगा। ओशो

ध्यान सूत्र। (Dhyan sutra -ओशो Pdf file

ध्यान सूत्र। (Dhyan sutra)                                 -ओशो DHYAAN SUTRA 〰〰 🎙HINDI 📆1965 💿9 DISCOURSES अनुक्रमणिका : प्रवचन 1 - प्यास और संकल्प    3 प्रवचन 2 - शरीर-शुद्धि के अंतरंग सूत्र    18 प्रवचन 3 - चित्त-शक्तियों का रूपांतरण    42 प्रवचन 4 - विचार-शुद्धि के सूत्र    62 प्रवचन 5 - भाव-शुद्धि की कीमिया    77 प्रवचन 6 - सम्यक रूपांतरण के सूत्र    96 प्रवचन 7 - शुद्धि और शून्यता से समाधि फलित    119 प्रवचन 8 - समाधि है द्वार    133 प्रवचन 9 - आमंत्रण--एक कदम चलने का  👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻 Download Dhyan Sutra (ध्यान सूत्र) PDF

Shiv sutra शिव सूत्र (ओशो) PDF

शिव—सूत्र—(ओशो) (समाधि साधपा शिवर, श्री ओशो आश्रम, पूना। दिनांक 11 से 20 सितंबर, 1974 तक ओशो द्वारा दिए गए दस अमृत—प्रवचनो का संकलन। Download Shiv Sutra (शिव सूत्र) PDF अनुक्रम         #1: जीवन-सत्य की खोज की दिशा         #2: जीवन-जागृति के साधना-सूत्र         #3: योग के सूत्र : विस्मय, वितर्क, विवेक         #4: चित्त के अतिक्रमण के उपाय         #5: संसार के सम्मोहन, और सत्य का आलोक         #6: दृष्टि ही सृष्टि ‍है         #7: ध्यान अर्थात चिदात्म सरोवर में स्नान         #8: जिन जागा तिन मानिक पाइया         #9: साधो, सहज समाधि भली!         #10: साक्षित्व ही शिवत्व है   Description Reviews

जिन खोजा तिन पाइयां -ओशो Pdf

जिन खोजा तिन पाइयां।                          -ओशो (कुंडलिनी - योग पर ध्यान शिविर, नारगोल में ध्यान प्रयोगों के साथ प्रवचन एवम मुम्बई में प्रश्नोत्तर चर्चाओं सहित "19" ओशो प्रवचनों का अपूर्व संकलन) pdf file  428 pages Download Pdf file Here Language :- Hindi  Size :- 3.3mb Type :- Pdf file जिन खोजा तिन पाइयां ऊर्जा का विस्तार है जगत और ऊर्जा का सघन हो जाना ही जीवन है। जो हमें पदार्थ की भांति दिखाई पड़ता है, जो पत्थर की भांति भी दिखाई पड़ता है, वह भी ऊर्जा, शक्ति है। जो हमें जीवन की भांति दिखाई पड़ता है, जो विचार की भांति अनुभव होता है, जो चेतना की भांति प्रतीत होता है, वह भी उसी ऊर्जा, उसी शक्ति का रूपांतरण है। सारा जगत-- चाहे सागर की लहरें, और चाहे सरू के वृक्ष, और चाहे रेत के कण, और चाहे आकाश के तारे, और चाहे हमारे भीतर जो है वह, वह सब एक ही शक्ति का अनंत-अनंत रूपों में प्रगटन है। ओशो  कुंडलिनी-यात्रा पर ले चलने वाली इस अभूतपूर्व पुस्तक के कुछ विषय बिंदु: शरीर में छिपी अनंत ऊर्जाओं को जगाने का एक आह्वान सात चक्रों व सात शरीरो

ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है - ओशो

हंसा तो मोती चूने--(लाल नाथ)-प्रवचन-10 अवल गरीबी अंग बसै—दसवां प्रवचन  दसवा प्रवचन ; दिनाक 20 मई ,  1979 ; श्री रजनीश आश्रम ,  पूना यह महलों ,  यह तख्तों ,  यह ताजों की दुनिया यह इन्सां के दुश्मन समाजों की दुनिया  यह दौलत के भूखे रिवाजों की दुनिया  यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! हर एक जिस्म घायल ,  हर इक रूह प्यासी निगाहों में उलझन ,  दिलों में उदासी यह दुनिया है या आलमे-बदहवासी यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! यहां इक खिलौना है इन्सां की हस्ती यह बस्ती है मुर्दा -परस्तों की बस्ती यहां पर तो जीवन से है मौत सस्ती यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! जवानी भटकती है बदकार बनकर जवा जिस्म सजते हैं बाजार बनकर यहां प्यार होता है व्योपार बनकर यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! यह दुनिया जहां आदमी कुछ नहीं है वफा कुछ नहीं ,  दोस्ती कुछ नहीं है जहां प्यार की कद्र ही कुछ नहीं है यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! जला दो उसे फूंक डालो यह दुनिया मेरे सामने से हटा लो यह दुनिया तुम्हारी है तुम ही सम्हालो यह दुनिया

कृष्ण स्मृति-ओशो Pdf

     कृष्ण स्मृति             -ओशो। (ओशो द्वारा कृष्ण के बहु-आयामी व्यक्तित्व पर दी गई 21 र्वात्ताओं एवं नव-संन्यास पर दिए गए एक विशेष प्रवचन का अप्रतिम संकलन। यही वह प्रवचनमाला है जिसके दौरान ओशो के साक्षित्व में संन्यास ने नए शिखरों को छूने के लिए उत्प्रेरणाली और "नव संन्यास अंतर्राष्ट्रीय' की संन्यास-दीक्षा का सूत्रपात हुआ।) File name :- कृष्ण स्मृति  Language :- Hindi Size:- 6mb 504 pages  Download Pdf file here अनुक्रमणिका : प्रवचन 1 - हंसते व जीवंत धर्म के प्रतीक कृष्ण    2 प्रवचन 2 - इहलौकिक जीवन के समग्र स्वीकार के प्रतीक कृष्ण    22 प्रवचन 3 - सहज शून्यता के प्रतीक कृष्ण    53 प्रवचन 4 - स्वधर्म-निष्ठा के आत्यंतिक प्रतीक कृष्ण    72 प्रवचन 5 - "अकारण'’ के आत्यंतिक प्रतीक कृष्ण    96 प्रवचन 6 - जीवन के बृहत् जोड़ के प्रतीक कृष्ण    110 प्रवचन 7 - जीवन में महोत्सव के प्रतीक कृष्ण    141 प्रवचन 8 - क्षण-क्षण जीने के महाप्रतीक कृष्ण    167 प्रवचन 9 - विराट जागतिक रासलीला के प्रतीक कृष्ण    196

होश की साधना - ओशो || मुल्ला नसीरुद्दीन पर ओशो || Osho Jokes in Hindi

होश की साधना - ओशो   एक सुंदर अध्यापिका की आवारगी की चर्चा जब स्कूल में बहुत होने लगी तो स्कूल की मैनेजिंग कमेटी ने दो सदस्यों को जांच-पड़ताल का काम सौंपा। ये दोनों सदस्य उस अध्यापिका के घर पहुंचे। सर्दी अधिक थी, इसलिए एक सदस्य बाहर लान में ही धूप सेंकने के लिए खड़ा हो गया और दूसरे सदस्य से उसने कहा कि वह खुद ही अंदर जाकर पूछताछ कर ले। एक घंटे के बाद वह सज्जन बाहर आए और उन्होंने पहले सदस्य को बताया कि अध्यापिका पर लगाए गए सारे आरोप बिल्कुल निराधार हैं। वह तो बहुत ही शरीफ और सच्चरित्र महिला है। इस पर पहला सदस्य बोला, "ठीक है, तो फिर हमें चलना चाहिए। मगर यह क्या? तुमने केवल अंडरवीयर ही क्यों पहन रखी है? जाओ, अंदर जाकर फुलपेंट तो पहन लो।" यहां होश किसको? मुल्ला नसरुद्दीन एक रात लौटा। जब उसने अपना चूड़ीदार पाजामा निकाला तो पत्नी बड़ी हैरान हुई; अंडरवीयर नदारद!! तो उसने पूछा, "नसरुद्दीन अंडरवीयर कहां गया?" नसरुद्दीन ने कहा कि अरे! जरूर किसी ने चुरा लिया!! अब एक तो चूड़ीदार पाजामा! उसमें से अंडरवीयर चोरी चला जाए और पता भी नहीं चला!! चूड़ीदार पाजामा नेतागण पहनते

भक्ति सूत्र -ओशो। Narad Bhakti Sutra Pdf file

भक्ति सूत्र           -ओशो। Narad Bhakti Sutra Pdf file अनुक्रम :- १. परम प्रेमरूपा है भक्ति २. स्वयं को मिटाने की कला है भक्ति ३. बड़ी संवेदनशील है भक्ति ४. सहजस्फूर्त अनुशासन है भक्ति ५. कलाओं की कला है भक्ति ६. प्रसादस्वरूपा है भक्ति ७. योग और भोग का संगीत है भक्ति ८. अनंत के आंगन में नृत्य है भक्ति ९. हृदय का आंदोलन है भक्ति १॰. परम मुक्ति है भक्ति ११. शून्य की झील में प्रेम का कमल है भक्ति १२. अभी और यहीं है भक्ति १३. शून्य का संगीत है प्रेमा-भक्ति १४. असहाय हृदय की आह है प्रार्थना-भक्ति १५. हृदय-सरोवर का कमल है भक्ति १६. उदासी नहीं–उत्सव है भक्ति १७. कान्ता जैसी प्रतिबद्धता है भक्ति १८. एकांत के मंदिर में है भक्ति १९. प्रज्ञा की थिरता है मुक्ति २॰. अहोभाव, आनंद, उत्सव है भक्ति Book:- Narad Bhakti Sutra Osho Language :-Hindi Size :- 3mb 440 pages Download Bhakti Sutra Pdf (भक्ति सूत्र) भक्ति-सूत्र : एक झरोखा भक्ति यानी प्रेम–ऊर्ध्वमुखी प्रेम। भक्ति यानी दो व्यक्तियों के बीच का प्रेम नहीं, व्यक्ति और समाष्टि के बीच का प्रेम। भक्

संयमित आहार के सूत्र || भोजन करने का सही तरीका - ओशो

संयमित आहार के सूत्र - ओशो  मेरे पास बहुत लोग आते हैं ,   वे कहते हैं ,   भोजन हम ज्यादा कर जाते हैं ,   क्या करें ?   तो मैं उनसे कहता हूं ,   होशपूर्वक भोजन करो। और कोई   डाइटिंग   काम देनेवाली नहीं है। एक दिन ,   दो दिन   डाइटिंग   कर लोगे जबर्दस्ती ,   फिर क्या होगा ?   दोहरा टूट पड़ोगे फिर से भोजन पर। जब तक कि मन की मौलिक व्यवस्था नहीं बदलती ,   तब तक तुम दो-चार दिन उपवास भी कर लो तो क्या फर्क पड़ता है! फिर दो-चार दिन के बाद उसी पुरानी आदत में सम्मिलित हो जाओगे। मूल आधार बदलना चाहिए। मूल आधार का अर्थ है ,   जब तुम भोजन करो ,   तो होशपूर्वक करो ,   तो तुमने मूल बदला। जड़ बदली। होशपूर्वक करने के कई परिणाम होंगे। एक परिणाम होगा ,   ज्यादा भोजन न कर सकोगे। क्योंकि होश खबर दे देगा कि अब शरीर भर गया। शरीर तो खबर दे ही रहा है ,   तुम बेहोश हो ,   इसलिए खबर नहीं मिलती। शरीर की तरफ से तो इंगित आते ही रहे हैं। शरीर तो यंत्रवत खबर भेज देता है कि अब बस ,   रुको। मगर वहां   रुकनेवाला   बेहोश है। उसे खबर नहीं मिलती। शरीर तो टेलीग्राम दिये जाता है ,   लेकिन जिसे मिलना चाहिए वह सोया ह

प्यास और संकल्प | ध्यान सूत्र - ओशो

संकल्प कैसे लें - ओशो 1. सबसे पहली बात ,  सबसे पहला सूत्र , जो स्मरण रखना है ,  वह यह कि आपके भीतर एक वास्तविक प्यास है ?  अगर है ,  तो आश्वासन मानें कि रास्ता मिल जाएगा। और अगर नहीं है , तो कोई रास्ता नहीं है। आपकी प्यास आपके लिए रास्ता बनेगी। 2. दूसरी बात ,  जो मैं प्रारंभिक रूप से यहां कहना चाहूं ,  वह यह है कि बहुत बार हम प्यासे भी होते हैं किन्हीं बातों के लिए ,  लेकिन हम आशा से भरे हुए नहीं होते हैं। हम प्यासे होते हैं , लेकिन आशा नहीं होती। हम प्यासे होते हैं , लेकिन निराश होते हैं। और जिसका पहला कदम निराशा में उठेगा ,  उसका अंतिम कदम निराशा में समाप्त होगा। इसे भी स्मरण रखें , जिसका पहला कदम निराशा में उठेगा ,  उसका अंतिम कदम भी निराशा में समाप्त होगा। अंतिम कदम अगर सफलता और सार्थकता में जाना है ,  तो पहला कदम बहुत आशा में उठना चाहिए। 3. तीसरी बात ,  साधना के इन तीन दिनों में आपको ठीक वैसे ही नहीं जीना है ,  जैसे आप आज सांझ तक जीते रहे हैं। मनुष्य बहुत कुछ आदतों का यंत्र है। और अगर मनुष्य अपनी पुरानी आदतों के घेरे में ही चले ,  तो साधना की नई दृष्टि खोलने म