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बुल्ला की जाना मैं कौण - ओशो



आपुई गई हिराय-(प्रश्नत्तोर)-प्रवचन-04

आपुई गई हिराय-(प्रश्नत्तोर)-ओशो



दिनांक 04-फरवरीसन् 1981,
ओशो आश्रमपूना।
प्रवचन-तीसरा-(फिकर गया सईयो मेरियो नी)

बुल्लेशाह का यह वक्तव्य सुनो।
बुल्ला की जाना मैं कौण!
न मैं मोमिन विच मसीतांन मैं विच कुफर दीयां रीतां।
न मैं पाकां विच पलीतांन मैं मूसा न फरऔन।।
बुल्ला की जाना मैं कौण!
न मैं अंदर बेद कताबांन विच भंग न शराबां।
न विच रहिंदा मस्त खवाबांन विच जागन न विच सौन।।
बुल्ला की जाना मैं कौण!
न विच शादी न गमनाकीन मैं विच पलीती पाकी।
न मैं आबी न मैं खाकीन मैं आतश न मैं पौन।।
बुल्ला की जाना मैं कौण!
न मैं अरबी न लाहोरीन हिंदी न शहर नगौरी।
न मैं हिंदू तुर्क पशौरीन मैं रहिंदा विच नदौन।।
बुल्ला की जाना मैं कौण!
अव्वल आखर आप नू जानान कोई दूजा होर पछाना।
मैथों होर न कोई सयानाबुल्ला शाह किहड़ा है कौन।।
बुल्ला की जाना मैं कौण!
अर्थातबुल्लेशाह कहते हैं कि मैं क्या जानूं कि मैं कौन हूं!
बुल्ला की जाना मैं कौण!
ऐसा सन्नाटा हैऐसी समाधि हैऐसा शून्य है--कौन जानेकिसको जाने! जानने में द्वैत होता है--जानने वाला और जो जाना जाएज्ञाता और ज्ञेय।
बुल्ला की जाना मैं कौण!
बुल्लेशाह कहते हैं: "मैं क्या जानूं कि मैं कौन हूं!'
न जानने वाला है कोईन जानने को है कोई। सब सन्नाटा हैसब शून्य हैनिराकार है। यह अवस्था ध्यान की है।
"न मैं मस्जिद में मोमिन हूं।'
मत कहो कि मैं मुसलमान हूं। मेरा क्या लेना-देना मस्जिद से और मुसलमान से!
"न मैं कुफ्र की रीतियों में हूं।'
और यह मत सोचना कि मैं मुसलमान नहीं हूं तो मैं मुसलमान विरोधी हूं। वह भी मैं नहीं हूं।
"न मैं पापियों में पवित्र हूंऔर न ही मैं मूसा हूं,न फरऔन हूं। बुल्ला कहता हैमैं क्या जानूं मैं कौन हूं।'
मत पूछो! मुसलमान हूंहिंदू हूंईसाई हूंयहूदी हूं--मत पूछो।
बुल्ला की जाना मैं कौण!
न मैं मोमिन विच मसीतांन मैं विच कुफर दीयां रीतां।
न मैं पाकां विच पलीतांन मैं मूसा न फरऔन।।
बुल्ला की जाना मैं कौण!
"न मैं वेद-किताबों में हूं और न भांग व शराब में। न मैं सपनों में मस्त हूंन सोने में और न जागने में।'
गजब की बात कही कि न मैं सपनों में मस्त हूं,न सोने में और न जागने में। मैं तो वह हूं जो जागने को भी देखता हैजो जागने के भी पार है।
"बुल्ला कहता हैमैं क्या जानूं मैं कौन हूं!'
न मैं अंदर बेद कताबांन विच भंग न शराबां।
न विच रहिंदा मस्त खवाबांन विच जागन न विच सौन।।
बुल्ला की जाना मैं कौण!
"न मैं खुशी में हूं और न गम में हूंन पाप में हूं,न पुण्य में हूंऔर न मैं पानी हूं या राख में हूंन मैं आग में हूं और न मैं पवन में हूं। बुल्ला कहता हैमैं क्या जानूं मैं कौन हूं!'
"न मैं अरबी हूंन लाहौरी हूंन हिंदी और न नागरी हूंन मैं हिंदू हूं या पेशावर का तुर्क हूं;और न मैं नदौन में रहता हूं। बुल्ला कहता हैमैं क्या जानूं मैं कौन हूं!'
"आदि और अंत में मैं अपने को ही जानता हूं।'
बहुत प्यारा वचन है यह!
अव्वल आखर आप नू जानान कोई दूजा होर पछाना।
पहले भी मैं अपने को ही जानता थाअब भी मैं अपने को जानता हूंअंत में भी मैं अपने को जानूंगा। मैं जानने वाला मात्र हूंजानने को कोई भी नहीं। ज्ञेय कोई भी नहींमैं ज्ञान मात्र हूं--चिन्मात्र।
"आदि और अंत में मैं अपने को ही जानता हूं,किसी दूसरे को नहीं।'
दूसरे को तो पहचानता ही नहीं।
"बुल्ला कहता है कि मुझसे ज्यादा सयाना और कौन है?'
सुधिया अर्थात सयाना। जिसको सुध आ गई।
"मुझसे ज्यादा सयाना और कौन हैइसलिए परमात्मा कौन है?'
गहरी बात बुल्ले ने कही: मुझसे सयाना कौन हैपरमात्मा कौन हैपरमात्मा कौन है?क्योंकि जब मैं ही सबसे ज्यादा सयाना हूं तो मुझसे पार और कुछ भी नहीं।
जिसने शरीरमन और वचनकामनावासना और भावना का अतिक्रमण कियावहां कहां कृष्ण और कहां भक्त! वहां भक्त ही भगवान है। वहां कैसा भगवान?
"बुल्ला कहता हैमैं क्या जानूं मैं कौन हूं!'
अव्वल आखर आप नू जानान कोई दूजा होर पछाना।
मैथों होर न कोई सयानाबुल्ला शाह किहड़ा है कौन।।
बुल्ला की जाना मैं कौण!
शंकराचार्य का यह वचन: "प्राण हरण करने वाले काल के उपस्थित होने पर सदबुद्धि वालों को यत्नपूर्वक तुरंत क्या करना चाहिए?'
पहली तो बात यह कि कोई जीवन को समाप्त करने वाली घड़ी नहीं आती।
तुम मुझसे पूछते हो सहजानंद कि आप इस प्रश्न का उत्तर देने की अनुकंपा करें।
अगर मुझसे तुम पूछोगे तो मैं कहूंगाप्राण हरण करने वाली कोई घड़ी कभी आती नहीं। मृत्यु हुई ही नहीं--कभी नहीं हुई। मृत्यु इस जगत में सबसे बड़ा असत्य हैभ्रांति है। और भ्रांति इसलिए पैदा हो जाती है कि जैसे रस्सी में कोई सांप को देख ले और फिर दीया जलाए और सांप को न पाएतो क्या हम कहेंगे कि सांप मर गया?
सांप था ही नहीं तो मरेगा कैसेएक भ्रांति थी,भ्रांति की कोई मृत्यु होती हैतुमने अपने को शरीर मान लियाइसलिए एक भ्रांति पैदा हो गईरस्सी में सांप दिखाई पड़ने लगा। फिर मौत जिसको तुम कहते हो--संबंध टूटाशरीर से तुम अलग हुए--फिर तुम रोने-चिल्लाने लगे कि अब मैं मराअब मैं मरा।
सिर्फ तादात्म्य टूट रहा हैन कोई मर रहा हैन कोई मर सकता है। मुझसे अगर पूछो तो मैं कहूंगाप्राण हरण करने वाला काल कभी उपस्थित ही नहीं होता।
दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा मैंने तुझे याद किया
वो उन्हें याद करें जिसने भुलाया हो कभी
हमने  उनको  न  भुलाया  न  कभी  याद  किया
परमात्मा को याद करने में भी भूल है। यह कृष्ण को याद करने की बात ही भूल भरी है।
दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा मैंने तुझे याद किया
वो उन्हें याद करें जिसने भुलाया हो कभी
हमने उनको न भुलाया न कभी याद किया

कोई समझाए ये क्या रंग है मैखाने का
आंख साकी की उठेनाम हो पैमाने का
गर्मिए-शम्मा का अफसाना सुनाने वालो
रक्स देखा नहीं तुमने अभी परवाने का
किसको मालूम थी पहले से खिरद की कीमत
आलमे-होश पे एहसान है दीवाने का
चश्मे-साकी मुझे हर गाम पे याद आती है
रास्ता भूल न जाऊं कहीं मैखाने का
अब तो हर शाम गुजरती है उसी कूचे में
ये नतीजा हुआ नासेह तेरे समझाने का
मंजिले-गम से गुजरना तो है आसां इक बार
इश्क है नाम खुद अपने से गुजर जाने का
कोई समझाए ये क्या रंग है मैखाने का
आंख  साकी  की  उठे,  नाम  हो  पैमाने  का
याद करो परमात्मा कोयह बात ही गलत। भूलो मत परमात्मा कोयह बात जरूर सही है। तुम थोड़ी दुविधा में पड़ोगे। तुम कहोगे मैंने फिर पहेली कही। दोहरा दूं: याद करो परमात्मा को,यह बात ही गलत। याद किया हुआ परमात्मा दो कौड़ी का। क्योंकि याद तुम क्या करोगेतुम्हें याद नहीं है इसीलिए तो याद कर रहे हो। तो तुम जो याद करोगेवह कल्पना ही होगीकोई धारणा ही होगी। हिंदू हुए तो कृष्ण।
ये शंकराचार्य अगर ईसाई होते तो कभी भूल कर न कहते कि कृष्ण को याद करोकहते क्राइस्ट को याद करो। अगर ये बौद्ध होते तो कहते बुद्ध को याद करो। अगर ये जैन होते तो कहते महावीर को याद करो। किसको याद करोगेयाद करोगे तो कल्पना ही होगी। याद नहीं है इसीलिए तो याद करते हो। और जब याद नहीं है तो जाहिर है कि तुम कल्पना ही कर सकते होऔर क्या करोगे?
मैं नहीं कहता कि परमात्मा को याद करो। मैं कहता हूंबात कुछ ऐसी बनानी है कि परमात्मा भूले नहीं। यह बात बिलकुल और हैअन्यथा है। परमात्मा भूले नहीं। याद नहीं करना है। शरीर से तादात्म्य तोड़ना हैमन से नाता मुक्त करना हैहृदय के पार उठना हैपंख फैलाने हैं। और जैसे ही तुम शरीरमन और हृदय के पार उठेजैसे ही तुमने पंख फैलाए और आकाश खुलाकि फिर जो दिखाई पड़ेगा वही परमात्मा की याद है। फिर वह कृष्ण की याद नहीं हैन क्राइस्ट कीन मोहम्मद कीन मूसा की। फिर उसका कोई रूप नहींरंग नहींगुण नहीं। फिर तो एक निराकार बोध हैसुधियासमाधि है।
क्या भला मुझको परखने का नतीजा निकला
जख्मे-दिल आपकी नजरों से भी गहरा निकला
क्या भला मुझको परखने का नतीजा निकला

तोड़ कर देख लिया आईना-ए-दिल तूने
तेरी  सूरत  के  सिवा  और  बता  क्या  निकला
याद करने की बात ही नहीं। याद कभी भूल कर न करना। ऐसे शून्य में अपने को ले जाना है जहां लाख कोई खोजे तो परमात्मा के सिवा और कुछ निकले ही नहीं।
यह जो कृष्ण को याद कर रहा हैजरा कुरेदोगे तो कुछ और निकल आएगा। यह कृष्ण को याद करने वाला तो अंधा आदमी है जो रोशनी को याद कर रहा है। जरा कुरेदोगे कि अंधापन निकल आएगा। जरा खोजबीन करोगे कि पता चल जाएगा अंधा है।
क्या भला मुझको परखने का नतीजा निकला
जख्मे-दिल आपकी नजरों से भी गहरा निकला
क्या भला मुझको परखने का नतीजा निकला

तोड़ कर देख लिया आईना-ए-दिल तूने
तेरी सूरत के सिवा और बता क्या निकला
क्या भला मुझको परखने का नतीजा निकला

जब कभी तुझको पुकारा मेरी तनहाई ने
बू उड़ी फूल सेतस्वीर से साया निकला
क्या भला मुझको परखने का नतीजा निकला

तिश्नगी जम गई पत्थर की तरह ओंठों पर
डूब कर भी तेरे दरिया से मैं प्यासा निकला
क्या भला मुझको परखने का नतीजा निकला
जख्मे-दिल आपकी नजरों से भी गहरा निकला
बात तब बनती है जब परमात्मा भूले नहीं। तब नहीं बनती बात जब परमात्मा को याद करना पड़े। इसलिए मैं न कहूंगा कि मृत्यु के क्षण में परमात्मा को याद करना। मैं तो कहूंगामृत्यु के क्षण की प्रतीक्षा क्या करनीजीओ परमात्मा को! मौत तो कल होगीजीना आज है।
खयाल रखनामौत हमेशा कल होती है और जीना आज होता है। आज अगर परमात्मा को न जान सकोगे तो कल कैसे जान लोगेकल आज से ही तो निकलेगाआज से ही तो जन्मेगाआज की ही कोख से तो पैदा होगा। कल आएगा कहां से?
मैं कल की बात ही नहीं करता। मैं तो कहता हूं: आज जीओ! परमात्मा को जीना हैपीना है;उठना हैबैठना हैचलना हैफिरना है। परमात्मा तुम्हारे जीवन की शैली और व्यवस्था होना चाहिए। परमात्मा सिर्फ याददाश्त नहीं;किसी मंदिर में बैठ कर बजाई गई घंटों की आवाज नहींकिसी मजार पर चढ़ाया गया दीया नहीं। परमात्मा तुम्हारे उठने-बैठनेखाने-पीनेसोने-जागने की पूरी शैली का नाम हैपूरी व्यवस्था का नाम है। परमात्मा एक जीने का ढंग है--जीने की एक कविताजीने का एक संगीत।
जीओ परमात्मा को। और तब तुम पाओगे मौत आती ही नहींहोती ही नहीं। फिर कृष्ण इत्यादि के चरण-कमलों को याद करने की जरूरत न पड़ेगी। और जीया नहीं अगर परमात्मा कोतो तुम लाख चरण-कमलों को याद करोकुछ काम न आएंगे।
यह मरते वक्त की बेईमानी काम नहीं पड़ सकती है। जिंदगी भर तो धन के पीछे दौड़ो,और मरते वक्त मनवचन और शरीर से ध्यान करोगेकैसे करोगेजिंदगी भर तो कुछ और,और जब अरथी उठे तो राम-नाम सत्य! यह कैसे होगाहांदूसरे कहेंगे राम-नाम सत्य! मगर तुम तो जा चुके। तुम तो अब वहां नहीं हो। और ये दूसरे भी जल्दी राम-नाम सत्य करके अपने-अपने घर जाना है इनको। दूसरे काम सत्य हैं। "राम-नाम सत्य हैतो दूसरे के लिए बोल रहे हैंअपने लिए नहीं बोल रहे हैं। ये तो इसलिए दूसरे के लिए बोल रहे हैं कि जब ये मरें तो दूसरे इनके लिए बोल दें। यह एक औपचारिकता है। यह लेन-देन हैदुनिया का हिसाब-किताब हैव्यवहार है।
नहींमैं न कहूंगा कि मृत्यु की प्रतीक्षा करो तब परमात्मा का बोध जगाना। अभीयहींइसी क्षण क्यों न परमात्मा के बोध को जगाओकल पर क्यों टालोजो मूल्यवान है उसे हम अभी करते हैंजो मूल्यहीन है उसे कल पर टालते हैं।
और याद नहीं करना है परमात्मा को। इसलिए मैं यहां प्रार्थना पर जोर नहीं देतामेरा जोर ध्यान पर है। प्रार्थना है परमात्मा को याद करना और ध्यान है उस अवस्था में पहुंच जाना जहां भुलाना भी चाहो परमात्मा को तो भुला नहीं सकते हो। लाख भुलाने का उपाय करोनहीं भुला सकते हो। क्योंकि वही हैएकमात्र वही है।
यह जो तुम कृष्ण को याद कर लोगे या क्राइस्ट को याद कर लोगेइस याददाश्त में यह हो सकता है कि भूल जाओ मृत्यु की पीड़ा को थोड़ी देर के लिए। लेकिन यह बस भांग और गांजा और शराब या कहो सोमरस...अगर वैदिक धर्म का सार निकालना हो तो भावातीत ध्यान नहीं हैजैसा महर्षि महेश योगी कहते हैं,बल्कि सोमरस। सोमरस वैदिक धर्म का सार है। नशा! नशा चढ़ सकता है। और अगर जोर से बकवास करो तो यह भी हो सकता हैयमदूत आ गए होंभाग खड़े हों। ऐसा मैंने सुना--
कवि लक्कड़ जी हो गए अकस्मात बीमार,
बिगड़ गई हालतमचा घर में हाहाकार।
घर में हाहाकारडाक्टर ने बतलाया,
दो घंटे में छूट जाएगी इनकी काया।
पत्नी रोई--ऐसी कोई सुई लगा दो,
मेरा बेटा आएतब तक इन्हें बचा दो।

मना कर गए डाक्टरहालत हुई विचित्र,
फक्कड़ बाबा आ गएलक्कड़ जी के मित्र।
लक्कड़ जी के मित्रकरो मत कोई चिंता,
दो घंटे क्यादस घंटे तक रख लूं जिंदा।
सब को बाहर कियाहो गया कमरा खाली,
बाबाजी ने अंदर से चटखनी लगा ली।

फक्कड़ जी कहने लगे--"अहो काव्य के ढेर!
हमें छोड़ तुम जा रहेयह कैसा अंधेर?
यह कैसा अंधेरतरस मित्रों पर खाओ,
श्रीमुख से कविता दो-चार सुनाते जाओ।'
यह सुन कर लक्कड़ जी पर छाई खुशहाली,
तकिये के नीचे से काव्य-किताब निकाली।

कविता पढ़ने लग गएभाग गए यमदूत,
सुबह पांच की टे्रन से आए कवि के पूत।
आए कवि के पूतन थी जीवन की आशा,
पहुंचे कमरे में तो देखा अजब तमाशा।
कविता-पाठ कर रहे थे कविवर लक्कड़ जी,
होकर  "बोर'  मर  गए  थे  बाबा  फक्कड़  जी।
अब तुम अगर ज्यादा बकवास मचा दो--हरे कृष्णाहरे रामाहरे कृष्णाहरे रामा--हो सकता है यमदूत घबड़ा जाएंइधर-उधर खिसक जाएं। मगर फिर लौट आएंगे। कितनी देर तक शोरगुल मचाओगेयूं नहीं चलेगायूं नहीं चल सकता है। जीवन रूपांतरित होना चाहिए। धर्म श्वास-श्वास में होना चाहिएहृदय की धड़कन-धड़कन में। और तब पाया जाता है अमृत का स्रोत अपने ही भीतर। शाश्वत स्रोत। उसकी एक बूंद भी पड़ जाएफिर कोई मृत्यु नहीं है। अमृतस्य पुत्रः! तुम सब अमृत पुत्र हो। याद नहींसुध नहीं। सुध लानी है।
सुध लाने की प्रक्रिया ध्यान है। और ध्यान शंकराचार्य वाला नहीं कि तन सेमन सेवचन से ध्यान कर रहे हो। ध्यान से मेरा अर्थ है--निर्विचार चित्त की दशाशून्यनिराकार,निर्विकल्पजहां सिर्फ होना मात्र रह जाएन कुछ जानने को बचेन जानने वाला बचेजहां सब दुई मिट जाए। और जहां दो मिट गएएक रहावही है परमात्मा का सच्चा अनुभव। वही अनुभव मोक्षदायी हैवही अनुभव मोक्ष है।

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मराैै है जोगी मरौ-(प्रवचन-08) आओ चाँदनी को बिछाएं ,  ओढ़े— प्रवचन—आठवां 8 अक्‍टूबर ,  1978 ; श्री रजनीश आश्रम ,  पूना। आखिरी प्रश्न : मैं अपनी पत्नी के अतिरिक्त अन्य स्त्रियों में भी उत्सुक हो जाता हूं लेकिन जब मेरी पत्नी किसी पुरुष में उत्सुकता दिखाती है तो मुझे बड़ी ईर्ष्या होती है भयंकर अग्नि में मैं जलता हूं। पु रुषों ने सदा से अपने लिए सुविधाएं बना रखी थीं ,  स्त्रियों को अवरुद्ध कर रखा था। पुरुषों ने स्त्रियों को बंद कर दिया था मकानों की चार दीवारों में ,  और पुरुष ने अपने को मुक्त रख छोड़ा था। अब वे दिन गए। अब तुम जितने स्वतंत्र हो ,  उतनी ही स्त्री भी स्वतंत्र है। और अगर तुम चाहते हो कि ईर्ष्या में न जलों तो दो ही उपाय हैं। एक तो उपाय है कि तुम स्वयं भी वासना से मुक्त हो जाओ। जहा वासना नहीं वहां ईर्ष्या नहीं रह जाती। और दूसरा उपाय है कि अगर वासना से मुक्त न होना चाहो तो कम—से—कम जितना हक तुम्हें है ,  उतना हक दूसरे को भी दे दो। उतनी हिम्मत जुटाओ। मैं तो चाहूंगा कि तुम वासना से मुक्त हो जाओ। एक स्त्री जान ली तो सब स्त्रियां जान लीं। एक प

शिवलिंग का रहस्य - ओशो

शिवलिंग का रहस्य - ओशो पुराण में कथा यह है कि विष्णु और ब्रह्मा में किसी बात पर विवाद हो गया। विवाद इतना बढ़ गया कि कोई हल का रास्ता न दिखायी पड़ा, तो उन्होंने कहा कि हम चलें और शिवजी से पूछ लें, उनको निर्णायक बना दें। वे जो कहेंगे हम मान लेंगे। तो दोनों गए। इतने गुस्से में थे, विवाद इतना तेज था कि द्वार पर दस्तक भी न दी, सीधे अंदर चले गए। शिव पार्वती को प्रेम कर रहे हैं। वे अपने प्रेम में इतने मस्त हैं कि कौन आया कौन गया, इसकी उन्हें फिक्र ही नहीं है। ब्रह्मा-विष्णु थोड़ी देर खड़े रहे, घड़ी-आधा-घड़ी, घड़ी पर घड़ी बीतने लगी और उनके प्रेम में लवलीनता जारी है। वे एक-दूसरे में डूबे हैं। भूल ही गए अपना विवाद ब्रह्मा और विष्णु और दोनों ने यह शिवजी के ऊपर दोषारोपण किया कि हम खड़े हैं, हमारा अपमान हो रहा है और शिव ने हमारी तरफ चेहरा भी करके नहीं देखा। तो हम यह अभिशाप देते हैं कि तुम सदा ही जननेंद्रियों के प्रतीक-रूप में ही जाने जाओगे। इसलिए शिवलिंग बना। तुम्हारी प्रतिमा कोई नहीं बनाएगा। तुम जननेंद्रिय के ही रूप में ही बनाए जाओगे। वही तुम्हारा प्रतीक होगा। यही हमारा अभिशाप है, ताकि यह बात सद

भक्ति सूत्र -ओशो। Narad Bhakti Sutra Pdf file

भक्ति सूत्र           -ओशो। Narad Bhakti Sutra Pdf file अनुक्रम :- १. परम प्रेमरूपा है भक्ति २. स्वयं को मिटाने की कला है भक्ति ३. बड़ी संवेदनशील है भक्ति ४. सहजस्फूर्त अनुशासन है भक्ति ५. कलाओं की कला है भक्ति ६. प्रसादस्वरूपा है भक्ति ७. योग और भोग का संगीत है भक्ति ८. अनंत के आंगन में नृत्य है भक्ति ९. हृदय का आंदोलन है भक्ति १॰. परम मुक्ति है भक्ति ११. शून्य की झील में प्रेम का कमल है भक्ति १२. अभी और यहीं है भक्ति १३. शून्य का संगीत है प्रेमा-भक्ति १४. असहाय हृदय की आह है प्रार्थना-भक्ति १५. हृदय-सरोवर का कमल है भक्ति १६. उदासी नहीं–उत्सव है भक्ति १७. कान्ता जैसी प्रतिबद्धता है भक्ति १८. एकांत के मंदिर में है भक्ति १९. प्रज्ञा की थिरता है मुक्ति २॰. अहोभाव, आनंद, उत्सव है भक्ति Book:- Narad Bhakti Sutra Osho Language :-Hindi Size :- 3mb 440 pages Download Bhakti Sutra Pdf (भक्ति सूत्र) भक्ति-सूत्र : एक झरोखा भक्ति यानी प्रेम–ऊर्ध्वमुखी प्रेम। भक्ति यानी दो व्यक्तियों के बीच का प्रेम नहीं, व्यक्ति और समाष्टि के बीच का प्रेम। भक्