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Quotes on Death - Osho



Death Is the Most Misunderstood Phenomenon
“Death is the most misunderstood phenomenon. People have thought of death as the end of life. That is the first, basic misunderstanding.
“Death is not the end, but the beginning of a new life. Yes, it is an end of something that is already dead. It is also a crescendo of what we call life, although very few know what life is. They live, but they live in such ignorance that they never encounter their own life. And it is impossible for these people to know their own death, because death is the ultimate experience of this life, and the beginning experience of another. Death is the door between two lives; one is left behind, one is waiting ahead.
“There is nothing ugly about death; but man, out of his fear, has made even the word, death ugly and unutterable. People don’t like to talk about it. They won’t even listen to the word death.
“The fear has reasons. The fear arises because it is always somebody else who dies. You always see death from the outside, and death is an experience of the innermost being. It is just like watching love from the outside. You may watch for years, but you will not come to know anything of what love is. You may come to know the manifestations of love, but not love itself. We know the same about death. Just the manifestations on the surface – the breathing has stopped, the heart has stopped, the man as he used to talk and walk is no more there: just a corpse is lying there instead of a living body.
“These are only outer symptoms. Death is the transfer of the soul from one body to another body, or in cases when a man is fully awakened, from one body to the body of the whole universe. It is a great journey, but you cannot know it from the outside. From outside, only symptoms are available; and those symptoms have made people afraid.
“Those who have known death from inside lose all fear of death.”
Zarathustra : A God That can Dance 
Talk 16  
- Osho, 

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ओशो देशना (अविरल,अविस्मरणीय और आनंददायी)

Shiv sutra शिव सूत्र (ओशो) PDF

शिव—सूत्र—(ओशो) (समाधि साधपा शिवर, श्री ओशो आश्रम, पूना। दिनांक 11 से 20 सितंबर, 1974 तक ओशो द्वारा दिए गए दस अमृत—प्रवचनो का संकलन। Download Shiv Sutra (शिव सूत्र) PDF अनुक्रम         #1: जीवन-सत्य की खोज की दिशा         #2: जीवन-जागृति के साधना-सूत्र         #3: योग के सूत्र : विस्मय, वितर्क, विवेक         #4: चित्त के अतिक्रमण के उपाय         #5: संसार के सम्मोहन, और सत्य का आलोक         #6: दृष्टि ही सृष्टि ‍है         #7: ध्यान अर्थात चिदात्म सरोवर में स्नान         #8: जिन जागा तिन मानिक पाइया         #9: साधो, सहज समाधि भली!         #10: साक्षित्व ही शिवत्व है   Description Reviews

जीवन की खोज – Jeevan Ki खोज pdf osho

जीवन की खोज – Jeevan Ki Khoj अनुक्रम       #1: प्यास       #2:  मार्ग       #3: द्वार       #4: प्रवेश Download Jeevan Ki Khoj (जीवन की खोज) "Osho" PDF जीवन क्या है? उस जीवन के प्रति प्यास तभी पैदा हो सकती है, जब हमें यह स्पष्ट बोध हो जाए, हमारी चेतना इस बात को ग्रहण कर ले कि जिसे हम जीवन जान रहे हैं, वह जीवन नहीं है। जीवन को जीवन मान कर कोई व्यक्ति वास्तविक जीवन की तरफ कैसे जाएगा? जीवन जब मृत्यु की भांति दिखाई पड़ता है, तो अचानक हमारे भीतर कोई प्यास, जो जन्म-जन्म से सोई हुई है, जाग कर खड़ी हो जाती है। हम दूसरे आदमी हो जाते हैं। आप वही हैं, जो आपकी प्यास है। अगर आपकी प्यास धन के लिए है, मकान के लिए है, अगर आपकी प्यास पद के लिए है, तो आप वही हैं, उसी कोटि के व्यक्ति हैं। अगर आपकी प्यास जीवन के लिए है, तो आप दूसरे व्यक्ति हो जाएंगे। आपका पुनर्जन्म हो जाएगा। ओशो

ध्यान सूत्र। (Dhyan sutra -ओशो Pdf file

ध्यान सूत्र। (Dhyan sutra)                                 -ओशो DHYAAN SUTRA 〰〰 🎙HINDI 📆1965 💿9 DISCOURSES अनुक्रमणिका : प्रवचन 1 - प्यास और संकल्प    3 प्रवचन 2 - शरीर-शुद्धि के अंतरंग सूत्र    18 प्रवचन 3 - चित्त-शक्तियों का रूपांतरण    42 प्रवचन 4 - विचार-शुद्धि के सूत्र    62 प्रवचन 5 - भाव-शुद्धि की कीमिया    77 प्रवचन 6 - सम्यक रूपांतरण के सूत्र    96 प्रवचन 7 - शुद्धि और शून्यता से समाधि फलित    119 प्रवचन 8 - समाधि है द्वार    133 प्रवचन 9 - आमंत्रण--एक कदम चलने का  👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻 Download Dhyan Sutra (ध्यान सूत्र) PDF

ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है - ओशो

हंसा तो मोती चूने--(लाल नाथ)-प्रवचन-10 अवल गरीबी अंग बसै—दसवां प्रवचन  दसवा प्रवचन ; दिनाक 20 मई ,  1979 ; श्री रजनीश आश्रम ,  पूना यह महलों ,  यह तख्तों ,  यह ताजों की दुनिया यह इन्सां के दुश्मन समाजों की दुनिया  यह दौलत के भूखे रिवाजों की दुनिया  यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! हर एक जिस्म घायल ,  हर इक रूह प्यासी निगाहों में उलझन ,  दिलों में उदासी यह दुनिया है या आलमे-बदहवासी यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! यहां इक खिलौना है इन्सां की हस्ती यह बस्ती है मुर्दा -परस्तों की बस्ती यहां पर तो जीवन से है मौत सस्ती यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! जवानी भटकती है बदकार बनकर जवा जिस्म सजते हैं बाजार बनकर यहां प्यार होता है व्योपार बनकर यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! यह दुनिया जहां आदमी कुछ नहीं है वफा कुछ नहीं ,  दोस्ती कुछ नहीं है जहां प्यार की कद्र ही कुछ नहीं है यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! जला दो उसे फूंक डालो यह दुनिया मेरे सामने से हटा लो...

कृष्ण स्मृति-ओशो Pdf

     कृष्ण स्मृति             -ओशो। (ओशो द्वारा कृष्ण के बहु-आयामी व्यक्तित्व पर दी गई 21 र्वात्ताओं एवं नव-संन्यास पर दिए गए एक विशेष प्रवचन का अप्रतिम संकलन। यही वह प्रवचनमाला है जिसके दौरान ओशो के साक्षित्व में संन्यास ने नए शिखरों को छूने के लिए उत्प्रेरणाली और "नव संन्यास अंतर्राष्ट्रीय' की संन्यास-दीक्षा का सूत्रपात हुआ।) File name :- कृष्ण स्मृति  Language :- Hindi Size:- 6mb 504 pages  Download Pdf file here अनुक्रमणिका : प्रवचन 1 - हंसते व जीवंत धर्म के प्रतीक कृष्ण    2 प्रवचन 2 - इहलौकिक जीवन के समग्र स्वीकार के प्रतीक कृष्ण    22 प्रवचन 3 - सहज शून्यता के प्रतीक कृष्ण    53 प्रवचन 4 - स्वधर्म-निष्ठा के आत्यंतिक प्रतीक कृष्ण    72 प्रवचन 5 - "अकारण'’ के आत्यंतिक प्रतीक कृष्ण    96 प्रवचन 6 - जीवन के बृहत् जोड़ के प्रतीक कृष्ण    110 प्रवचन 7 - जीवन में महोत्सव के प्रतीक कृष्ण    141 प...

होश की साधना - ओशो || मुल्ला नसीरुद्दीन पर ओशो || Osho Jokes in Hindi

होश की साधना - ओशो   एक सुंदर अध्यापिका की आवारगी की चर्चा जब स्कूल में बहुत होने लगी तो स्कूल की मैनेजिंग कमेटी ने दो सदस्यों को जांच-पड़ताल का काम सौंपा। ये दोनों सदस्य उस अध्यापिका के घर पहुंचे। सर्दी अधिक थी, इसलिए एक सदस्य बाहर लान में ही धूप सेंकने के लिए खड़ा हो गया और दूसरे सदस्य से उसने कहा कि वह खुद ही अंदर जाकर पूछताछ कर ले। एक घंटे के बाद वह सज्जन बाहर आए और उन्होंने पहले सदस्य को बताया कि अध्यापिका पर लगाए गए सारे आरोप बिल्कुल निराधार हैं। वह तो बहुत ही शरीफ और सच्चरित्र महिला है। इस पर पहला सदस्य बोला, "ठीक है, तो फिर हमें चलना चाहिए। मगर यह क्या? तुमने केवल अंडरवीयर ही क्यों पहन रखी है? जाओ, अंदर जाकर फुलपेंट तो पहन लो।" यहां होश किसको? मुल्ला नसरुद्दीन एक रात लौटा। जब उसने अपना चूड़ीदार पाजामा निकाला तो पत्नी बड़ी हैरान हुई; अंडरवीयर नदारद!! तो उसने पूछा, "नसरुद्दीन अंडरवीयर कहां गया?" नसरुद्दीन ने कहा कि अरे! जरूर किसी ने चुरा लिया!! अब एक तो चूड़ीदार पाजामा! उसमें से अंडरवीयर चोरी चला जाए और पता भी नहीं चला!! चूड़ीदार पाजामा नेतागण पहनते ...

भागो मत , जागो - ओशो

भागो मत , जागो - ओशो आदमी जिससे बचना चाहता है उसी से टकरा जाता है। आदमी जिससे भागता है उसी से घिर जाता है। पूछो ब्रह्मचारियों से--सिवाय स्त्रियों के और किसी का दर्शन नहीं होता। हो ही नहीं सकता। अगर भगवान भी प्रकट होंगे तो स्त्री की ही शक्ल में प्रकट होंगे। और किसी शक्ल में वे प्रकट नहीं हो सकते। ब्रह्मचारी का कपट है बेचारे का, वह सेक्स से लड़ रहा है इसलिए सेक्स घिर गया है। इसीलिए तो ऋषि-मुनि स्त्रियों के लिए इतनी नाराजगी जाहिर करते हैं। यह नाराजगी किसके लिए है? वह स्त्रियां उनको घेर लेती हैं, उनके लिए है। असली स्त्रियों के लिए नहीं। असली स्त्रियों से क्या मतलब है? ऋषि-मुनि कहते हैं। स्त्रियां नर्क का द्वार है। स्त्री से बचो।  यह किससे बचने के लिए कह रहे हो? वह जो भीतर स्त्री उनको घेरती हैं। घेरती क्यों है? स्त्री से भागते हैं इसलिए स्त्री घेरती है। जिससे भागोगे, वह घेर लेगा। जिससे बचोगे, वह पकड़ लेगा। जिसको हटाओगे, वह आ जाएगा। जिसको कहोगे मत आओ। वह समझ जाएगा कि डर गए हो। आना जरूरी है। वह आ जाएगा। चित्त से लड़ना, चित्त के विचार से लड़ना आत्मघातक है। फिर वही उलझन हो जाएगी। इससे बच...

शिवलिंग का रहस्य - ओशो

शिवलिंग का रहस्य - ओशो पुराण में कथा यह है कि विष्णु और ब्रह्मा में किसी बात पर विवाद हो गया। विवाद इतना बढ़ गया कि कोई हल का रास्ता न दिखायी पड़ा, तो उन्होंने कहा कि हम चलें और शिवजी से पूछ लें, उनको निर्णायक बना दें। वे जो कहेंगे हम मान लेंगे। तो दोनों गए। इतने गुस्से में थे, विवाद इतना तेज था कि द्वार पर दस्तक भी न दी, सीधे अंदर चले गए। शिव पार्वती को प्रेम कर रहे हैं। वे अपने प्रेम में इतने मस्त हैं कि कौन आया कौन गया, इसकी उन्हें फिक्र ही नहीं है। ब्रह्मा-विष्णु थोड़ी देर खड़े रहे, घड़ी-आधा-घड़ी, घड़ी पर घड़ी बीतने लगी और उनके प्रेम में लवलीनता जारी है। वे एक-दूसरे में डूबे हैं। भूल ही गए अपना विवाद ब्रह्मा और विष्णु और दोनों ने यह शिवजी के ऊपर दोषारोपण किया कि हम खड़े हैं, हमारा अपमान हो रहा है और शिव ने हमारी तरफ चेहरा भी करके नहीं देखा। तो हम यह अभिशाप देते हैं कि तुम सदा ही जननेंद्रियों के प्रतीक-रूप में ही जाने जाओगे। इसलिए शिवलिंग बना। तुम्हारी प्रतिमा कोई नहीं बनाएगा। तुम जननेंद्रिय के ही रूप में ही बनाए जाओगे। वही तुम्हारा प्रतीक होगा। यही हमारा अभिशाप है, ताकि यह बात सद...

उम्र के प्रत्येक सात वर्ष के बाद खुलता है अमृत का द्वार - ओशो

उम्र के प्रत्येक सात वर्ष के बाद खुलता है अमृत का द्वार     -      ओशो मनुष्य के जीवन में प्रत्येक सात वर्ष के बाद क्रांति का क्षण होता है। जैसे चौबीस घंटे में दिन का एक वर्तुल पूरा होता है ,  ऐसे सात वर्ष में चित्त की सारी वृत्तियों का वर्तुल पूरा होता है। हर सात वर्ष में वह घड़ी होती है कि अगर चाहो तो निकल भागो। हर सात वर्ष में एक बार द्वार खुलता है। सात साल का जब बच्चा होता है तब द्वार खुलता है। और अगर चूक गये तो फिर सात साल के लिए गहरी नींद हो जाती है। हर सात साल में तुम परमात्मा के बहुत करीब होते हो। जरा-सा हाथ बढ़ाओ कि पा लो। इसी सात साल को हिसाब में रखकर हिंदुओं ने तय किया था कि पचास साल की उम्र में व्यक्ति को वानप्रस्थ हो जाना चाहिए। उनचास साल में सातवां चक्र पूरा होता है। तो पचासवें साल का मतलब है ,  उनचास साल के बाद ,  जल्दी कर लेनी चाहिए। आदमी अब सत्तर साल जीता है। वह सौ साल के हिसाब से बांटा गया था। अब आदमी सत्तर साल जीता है। तो तुम्हारे जीवन में थोड़े मौके नहीं आते ,  बहुत मौके आते हैं ,  लेकिन हर मौका अपने स...

मुक्ति का सूत्र - ओशो

एस धम्‍मो सनंतनो--(प्रवचन--10) देखा तो हर मुकाम तेरी  रहगुजर  में है—(प्रवचन—दसवां) पहला प्रश्न: भगवान ,  एक ही आरजू है कि इस खोपड़ी  से कैसे मुक्ति हो जाए ?  आपकी शरण आया हूं। एक युवक भिक्षु  नागार्जुन  के पास आया और उसने कहा कि मुझे मुक्त होना है। और उसने कहा कि जीवन लगा देने की मेरी तैयारी है। मैं मरने को तैयार हूं ,  लेकिन मुक्ति मुझे चाहिए। कोई भी कीमत हो ,  चुकाने  को राजी हूं। अपनी तरफ से तो वह बड़ी समझदारी की बातें कह रहा था। चिन्मय ने भी यही पूछा है आगे प्रश्न में: सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है उसने भी यही कहा होगा  नागार्जुन  को कि मरने की तैयारी है ;  अब तुम्हारे हाथ में सब बात है। मुझसे न कह  सकोगे  कि मैंने कुछ कमी की प्रयास में। मैं सब करने को तैयार हूं। अपनी तरफ से वह ईमानदार था। उसकी ईमानदारी पर शक भी क्या करें! मरने को तैयार था--और क्या आदमी से मांग सकते हो ?  लेकिन ईमानदारी कितनी ही हो ,  भ्...