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भारत मे स्त्रियों का अपमान और भारत के साधु संन्यासी - ओशो



साहिब मिले साहिब भये-(प्रश्नोंत्तर)-प्रवचन-02



साहिब मिले साहिब भये-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो
ये फूल लपटें ला सकते हैं—दूसरा प्रवचन
१२ जुलाई १९८०श्री रजनीश आश्रमपूना


आदमी इतना अचेतन है जिसका हिसाब नहीं।
कल ही अखबारों में मैंने पढ़ास्वामीनारायण संप्रदाय के प्रधान श्री प्रमुख स्वामी जी लंदन में हैं। वे इंग्लैंड के केंटरबरी के आर्चबिशप से मिलने जानेवाले हैं। इंग्लैंड का सबसे बड़ा जो धर्मगुरु। सब तय हो गयाशायद आज कल में कभी मिलने की तिथि हैलेकिन अभी आखिर-आखिर में उन्होंने अपनी शर्तें भेजी। श्री प्रमुख स्वामी स्त्री का चेहरा नहीं देखते। तो उन्होंने अभी-अभी उन्हें खबर भेजी है कि जब मैं मिलने आऊं तो कोई स्त्री उपस्थित नहीं होनी चाहिए। सारे इंग्लैंड में उपद्रव मच गया। यह कोई हिंदुस्तान तो नहीं है कि स्त्रियां चुपचाप सह लेंगी। कि उन्हीं महात्माओं का व्याख्यान सुनती रहेंगी जो उनको "ढोल गंवार सूद्र पसू नारीकह रहे हैं। उन्हीं महात्माओं का प्रवचन सुनती रहेंगी जो उनको नरक का द्वार बता रहे हैं। उन्हीं महात्माओं के पैर दबाती रहेंगीयह कोई हिंदुस्तान तो नहीं। सारे इंग्लैंड में स्त्रियों ने बड़े जोर से विरोध किया है। क्योंकि वहां स्त्रियां पत्रकार आनेवाली थीस्त्रियां फोटोग्राफर आनेवाली थीं,...और तो और केंटरबरी के आर्चबिशप की जो सेक्रेटरी हैवह भी स्त्री। वह तो मौजूद रहेगी ही।
केंटरबरी का आर्चबिशप भला आदमीबड़ी दुविधा में पड़ गया कि हां भी भर चुका हूं मिलने के लिएअब इंकार भी ठीक नहीं मालूम पड़ता। और यह शर्त बेहूदी है। इसका विरोध किया जा रहा है। कि यह बीसवीं सदी हैयह किस सदी की बात कर रहे हो! कि स्त्री को नहीं देखेंगे!
लेकिन भारत में तो कभी कोई विरोध नहीं हुआ-- यहां भी वे स्त्री को नहीं देखते। यहां कुछ स्त्रियां ही ज्यादा भक्त होती हैं। स्त्रियां बड़ी प्रभावित होती हैं इस बात से कि जरूर यह व्यक्ति महापुरुष है। जब हममें कोई रस नहीं लेताइतना भी रस नहीं लेता कि हमको देखता नहींतो जरूर पहुंचा हुआ सिद्ध है। कोई स्त्री अपने पति को थोड़े ही सम्मान देती है--भारतीय स्त्री कभी अपने पति को सम्मान नहीं दे सकती है। लाख कहे कि तुम स्वामी होपतिदेव हो,तुम मेरे परमात्मा होयह सब बकवास है। भारतीय स्त्री अपने पति को सम्मान दे ही नहीं सकती। क्योंकि भीतर से तो वह जानती है कि महापापी है। यही तो मुझे पाप में घसीट रहा है। यही दुष्ट तो मुझे न-मालूम कहां के नर्क में घसीट रहा है। इसके कारण ही तो मैं सब तरह के पापों में पड़ी हूं--और तो मुझे कोई पाप में घसीटने वाला है नहीं। तो गहन अचेतन में तो पति के प्रति अपमान होगा ही।
और वह अपमान तरहत्तरह से निकलता है। हर तरह से निकलता है। कितनी कलह पत्नियां खड़ी रखती हैं पति के लिए! उसके मूल में तुम्हारे महात्मा हैं। और उन महात्माओं को सम्मान देती हैंजो उनके अपमान के आधार हैं,जिन्होंने उनके जीवन को कीड़े-मकोड़ों से बदतर बना दिया है। और उनका यह समझ में भी नहीं आतायह सीधा-सा तर्क भी समझ में नहीं आता कि जो आदमी स्त्रियों को देखने से डरता हैइस आदमी के चित्त में कामवासना अत्यंत कुरूपअत्यंत विकराल रूप में खड़ी होगी। क्योंकि स्त्री को देखने में क्या डर हो सकता है! स्त्री को देखने में डर नहीं हो सकता,डर होगा तो कहीं भीतर होगाअपने भीतर होगा।
लोभी धन को देखने से डरेगा। स्भावतः क्योंकि धन को देखकर वह अपने पर वश नहीं रख सकता। कामी स्त्री को देखकर डरेगा। क्योंकि देखकर स्त्री को अपने पर वश नहीं रख सकता। कामी स्त्री को देखकर डरेगा। क्योंकि देखकर स्त्री को अपने वश नहीं रख सकता। किसी तरह स्त्री को देखे ही नहींतो चल जाती है बात। अब धन दिखायी ही न पड़े कहींतो लोभी करे भी क्या ! कोई कंकड़-पत्थर से तिजोरी भरे! धन दिखायी ही न पड़े कहींतो लोभ अप्रगट रह जाएगा। और अप्रगट लोभ से यह भ्रांति पैदा हो सकती है कि लोभ मिट गया। स्त्री दिखायी ही न पड़ेतो अप्रगट काम से यह भ्रांति पैदा हे सकती है कि काम मिट गया। मगर काम यूं मिटता नहीं। पड़ा रहता हैसूखी धार की तरह।
यूं समझोवर्षा के बाद तुम देखते होमेंढक कहीं दिखायी नहीं पड़ते। कहां चले जाते हैं?इतने मेंढक मरे हुए भी नहीं दिखायी पड़ते। वर्षा में तो कितनी मेंढकों की जमात दिखायी पड़ती हैफिर वर्षा के बाद क्या होता हैमेंढक जमीन में दब कर पड़ जाते हैं। सांस नहीं लेते। करीब-करीब मुर्दा हो जाते हैं। लेकिन करीब-करीब मुर्दां! सांस बंदभोजन बंदसब बंद हो जाता है। मेंढक को एक कला आती है कि वह आठ महीने मुर्दे की तरह भूमि के गर्भ में दबा हुआ पड़ा रहता है। और जब वर्षा की बूंदाबांदी होती हैआकाश में बादल गरजते हैंबिजलियां कड़कती हैंउसके भीतर भी कोई चीज कड़क उठती हैजग उठती हैमेंढक फिर जीवित हो उठता है। मरा था नहींजैसे गहरी प्रसुप्ति में सो गया था। इतनी गहरी प्रसुप्ति में जहां कि श्वास का चलना भी बंद हो जाता है।
कोई मेंढक इतनी आसानी से नहीं मर जाता। इसीलिए वर्षा के बाद तुम्हें एकदम मेंढक ही मेंढक मरते हुए नहीं दिखायी पड़ते। सब तरफ नहीं तो मेंढक ही मेंढक मरे हुए पड़े मिलें। सब मेंढक जमीन में दबकर पड़ जाते हैं। और अगर तुम जमीन को खोदो तो जगह-जगह तुम्हें मेंढक दबे हुए मिल जाएंगे। खासकर तालाब और पोखरों के पास की जमीन अगर तुम खोदोतुम दंग रह जाओगे। सूखे मेंढक पड़े रहते हैं। लेकिन पानी छिड़को और जीवित हुए।
ऐसी ही मनुष्य की वासनाएं हैं। सूख के पड़ जाती हैं। जरा पानी छिड़कोफिर जग जाती हैं।
 मैं तो कहूंगा कि इंग्लैंड की स्त्रियों को स्वामी महाराज को अच्छा पाठ पढ़ा देना चाहिए। क्योंकि भारत की स्त्रियां तो अभी पाठ पढ़ा सकेंगीयह जरा मुश्किल है। हांमेरी संन्यासिनियां पाठ पढ़ा सकती हैंअच्छे पाठ पढ़ा सकती हैं। लेकिन इंग्लैंड से भागने नहीं देना चाहिए-- अब फंस ही गये हैंअपने-आप इंग्लैंड आ गये हैंतो अब जगह-जगह उनके घिराव करने चाहिए। इंग्लैंड की प्रधान मंत्री स्त्री हैइंग्लैंड की साम्राज्ञी स्त्री है! स्त्रियों को पूरी ताकत लगा देनी चाहिएयह अपमान बरदाश्त करने योग्य नहीं है। जहां भी वे जाएंहर जगह उन पर घिराव होने चाहिए। यह केवल स्वामी जी की ही मूढ़ता का प्रदर्शन नहीं हैंयह पूरी भारती मूढ़ता का प्रदर्शन है। यह भारत का अपमान है। इस तरह का अभद्र व्यवहार करना स्त्रियों के साथ!
हवाई जहाज पर जाते हैंतो उनके चारों तरफ एक पर्दा लगा देते हैंवे पर्दे के भीतर बैठे रहते हैं। क्योंकि परिचारिकाएं हैंतो स्त्रियां। वे पर्दे में छिपे बैठे रहते हैं। वे पर्दे में ही छिपे हुए...। आदमियों को बुर्के ओढ़े देखे हैंऐसे इनको बुर्का बना लेना चाहिए। बेहतर तो यह हो सबसे कि आंखों पर एक पट्टी क्यों नहीं बांध लेते?और एक आदमी का हाथ पकड़कर चलते रहो! न स्त्री दिखायी पड़ेगीन पुरुष दिखायी पड़ेगा। क्योंकि पुरुष भी दिखाई पड़े तो स्त्री की याद तो दिलाएगा ही। कि आखिर पुरुश आया कहां से?आखिर इस पुरुष की स्त्री होगीमां होगीबहन होगीपत्नी होगीलड़की होगी। पुरुष को देखकर स्त्री की याद तो आ ही सकती है। आखिर पुरुष और स्त्रियां कोई इतने दूर-दूर के जानवर भी तो नहीं हैं। पास ही पास के जानवर हैं। एक ही गर्भ से आए हुए हैंइतना कुछ बहुत भेद भी नहीं है।
अब तो वैज्ञानिक कहते हैं कोई भी पुरुष स्त्री होना चाहे तो हो सकता है। कोई भी स्त्री पुरुष होना चाहे तो हो सकती है। और कई दफे नैसर्गिक रूप से घटना घट जाती है कि कुछ पुरुष स्त्री हो जाते हैंकुछ स्त्रियां पुरुष हो जाती है। फासला बहुत नहीं हैमात्रा का हैथोड़ी-सी मात्रा का है--थोड़े हारमोन का फर्क है। जल्दी ही यह व्यवस्था हो जाएगी कि जिंदगी में दो-चार दफे अपने को बदल लो। एक ही जिंदगी में क्यूं न दो-चार जिंदगियों का मजा लिया जाए! कभी स्त्री हो गयेफिर कभी पुरुष हो गये;कभी पुरुष हो गयेकभी स्त्री हो गये! सब पहलओं से जिंदगी क्यों न देखी जाए! इसमें मैं कुछ एतराज नहीं देखता।
अगर एक इंजेक्शन लगाने से ही हारमोन के पुरुष स्त्री होती होस्त्री पुरुष होता होतो यह बदलाहट करने जैसी है। साल-दो साल पति रहे,साल-दो साल पत्नी रहे। पत्नी को भी मौका दो पति होने का। यूं जिंदगी का अनुभव ज्यादा होगागहरा होगाज्यादा समृद्ध होगा।
 कोई फर्क ज्यादा तो नहीं। पुरुष का चेहरा भी देखकर स्त्री के चेहरे की याद आ सकती है। और जवान चेहरेजिन पर अभी दाढ़ी-मूंछ भी न ऊगी होउनको देखकर तो स्त्री के चेहरे की याद आ सकती है। आंख पर पट्टी ही बांध लेनी चाहिए--आंख फोड़ ही लेनी चाहिएझंझट ही मिटा दोपट्टी-वट्टी भी क्यों बांधनी! सूरदास ही रहो! फिर जहां जाना हो जाओ। इंग्लैंड जाओ,अमरीका जाओजहां जाना हो जाओ। नग्न स्त्रियां नहाती रहीं तो भी तुम्हारा कुछ बिगाड़ नहीं सकती। इंद्र अप्सराएं भेजे जो भी तुम्हारा कुछ बिगड़ नहीं सकता। तुम्हें कुछ दिखायी ही नहीं पड़ेगा तो क्या पता चलेगा कि अप्सराएं नाच रही हैं आसपासकि हुड़दंग मचाने वाले लोग हुड़दंग मचा रहे हैंकौन नहीं है?
बीसवीं सदी और अब भी इस तरह की धारणाएं!
स्वभाव! तो यहां मेरे पास तुम्हें जो पचास प्रतिशत भारतीयों में अड़चन दिखायी पड़ती है,कुछ आश्चर्य नहीं है। यही स्वामी जी महाराज पैसे लोगों ने इनकी बुद्धि को निर्मित किया है--हजारों साल से निर्मित किया है। गहरे अचेतन में सांप-बिच्छुओं की तरह दबे हुए रोग पड़े हैं। मेरी बातें ऊपर से समझ लेते हैं मगर भीतर गहरे में वही बातें सरकती रहती हैं। इसलिए इनके व्यक्तित्व में एक दोहरापन पैदा हो जाएगा। मेरी बात सुनेंगे तो यूं सिर हिलाएंगे कि जैसे इनकी समझ में आ रहा है। और भीतर ठीक इसके विपरीत इनकी समझ है। इसलिए वह समझ भी कभी-कभी रास्ते खोजेगी और प्रगट होगी। तो व्यंग्य बनेगीजलन बनेगीदूसरों को अपराधपूर्ण दृष्टि से देखने का भाव पैदा होगा।
यहां जो भारतीय संन्यासी हैंमेरे पास आश्रम में जो रह रहे हैंउनमें पचास प्रतिशत निश्चित ही कचरा हैं! न किसी काम के हैंन किसी उपयोग के हैंसिर्फ एक उपद्रव हैं। लेकिन फिर भी वे अपने को श्रेष्ठ मानते हैं।
यहां विदेशी संन्यासी हैंवे सारा श्रम उठा रहे हज। इस आश्रम की सारी रौनकसारी कुशलता उनके कारण है। भारतीय न तो काम करेंगेन श्रम करेंगेलेकिन फिर भी एक अकड़ भीतरी उनकी कि वे भारतीय हैंकुछ विशिष्टता है उनकीकुछ पवित्रता हैं उनकीकुछ धार्मिकता है उनकीवे श्रेष्ठ हैं। बस सिर्फ भारतीय होने के कारण श्रेष्ठ हैं। श्रेष्ठता किसी हिस्से में भी सिद्ध नहीं करते हज। सिर्फ एक भीतरी अहंकार है। अब उस अहंकार को कैसे पोषण मिलेउसको पोषण मिलने के लिए ये सरल रास्ते हो जाते हैं। कि निंदा करो औरों की। कारण खोज लो ऐसे। कि अरेये सब भ्रष्ट लोग! कि ये सब कामवासना में पड़े हुए लोग! सचाई बिलकुल उलटी है।
सचाई यह है कि यहां अब तक एक भारतीय स्त्री ने मेरे पास शिकायत नहीं कि है कि किसी विदेशी ने उसके कपड़े खींच दिये होंकि चिउंटी ले दी हो। लेकिन कितनी विदेशी स्त्रियां मुझे रोज पत्र लिखती हैं कि हम क्या करेंभारतीय आते हज तो वे जैसे ध्यान करने नहीं आतेन आपको सुनने आते हैंकोई चिउंटी काट रहा है,कोई कपड़े खींच देता हैकोई धक्का ही मार देता है। यहां इतने भारतीयों ने विदेशी संन्यासिनियों पर बलात्कार कियेनगर में,लेकिन एक भी ऐसी घटना नहीं घटी कि किसी विदेशी संन्यासी ने किसी भारतीय महिला के साथ ऐसी घटना नहीं घटी कि किसी विदेशी संन्यासी ने किसी भारतीय महिला के साथ बलात्कार करने की चेष्टा की होछेड़खान भी की हो।
फिर भी भारतीय समझेंगे कि वे महात्मा हैं। भारत की पुण्यभूमि में पैदा हुए हैंऔर क्या चाहिए महात्मा होने के लिए! काफी है इतना। यहां देवता पैदा होने को तरसते हैं! पता नहीं किस तरह के देवता हैं जो यहां पैदा होने को तरसते हैं! और किसलिए तरसते हैंसड़ना है,क्या करना हैलेकिन भारतीयों को यह भ्रांति है।
यहां हर महीने का यह अनुभव है। जब हिंदी का शिविर उनके लिए हैतब वे आने शुरू हो जाते हैं। बहुत हैरानी की बात है। हिंदी का शिविर उनके लिए हैतब वे आते नहीं। उन्हें क्या लेना-देना है हिंदी से या शिविर से! अंग्रेजी के शिविर में आते हैं यहां। अंग्रेजी समझ में नहीं आए चाहे। लेकिन अंग्रेजी के शिविर से उनको प्रयोजन है। क्योंकि उस वक्त पाश्चात्य संन्यासिनियों की भीड़ होगी यहांतो धक्कम-धुक्की का मौका मिल जाएगा। चोरी का मौका मिल जाएगा। सिर्फ जब भारतीय यहां बाहर से आते हैं तो चोरी होती है। नहीं तो चोरी नहीं होती।
अभी पुलिस ने एक अड्डा पकड़ा है भारतीयों का जहां करीब तीन लाख रुपयों की विदेशियों की चीजें पकड़ी गयीं। वे सब संन्यासियों की चीजें हैं। क्योंकि और तो पूना में कौन विदेशी हैंलेकिन अब वे तो सालों पहले आएगये लोग--खबरें छोड़ गये हैं किसी का कैमरा चोरी गया हैकिसी का टेपरिकार्डर चोरी गया है,किसी की घड़ी चोरी गयी हैवे सब पकड़ी गयी हैंमगर अब जिनकी चीजें हैं वे यहां मौजूद नहीं हैं। किनकी हैंयह आश्रम को पता नहीं है,सिर्फ इतना पता है कि इस तरह की चीजें चोरी गयी हैं। पुलिस भी मानती है कि हैं तो वे सब संन्यासियों कि ही चीजेंमगर पुलिस की भी मजबूरी हैवह करे क्यावह हमको आश्रम को दे नहीं सकती। और किनकी हैंइनके लिए आश्रम के पास कोई प्रमाण नहीं हैं।
और भारतीय बस एक अहंकार हैएक दंभ है। और इस दंभ को और तो कोई मौका मिलता नहींकिसी और दिशा में तो यह अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर सकता नहीं। जिस काम में भी भारतीयों को आश्रम में लगाया जाता हैउसी काम में वे तृतीय श्रेणी के साबित होते हैं। और इसका कारण यह नहीं है कि उनके पास प्रतिभा की कमी है।
 इसका कारण यह है कि कामचोर हैं। इसका कारण यह है कि करना नहीं चाहते। वे तो आते ही आश्रम में इसलिए हैंउनके आने का कारण ही यही है कि काम वगैरह नहीं करना पड़ेगा। आश्रम का भारत में यही अर्थ रहा है। उनको यह पता नहीं कि यह आश्रम उस अर्थ में आश्रम नहीं है। वे तो कहते हैं: हम तो भक्ति-भाव करेंगे। तो तुम्हारे भोजन की चिंता कौन करे?तुम्हारे कपड़ों की चिंता कौन करेतुम तो तुम्हारे भोजन की चिंता कौन करेतुम्हारे कपड़ों कि चिंता कौन करेतुम तो भक्ति-भाव करोगेबाकी भोजन वगैरह भी करोगे कि नहीं?कपड़े भी चाहिए कि नहीं तुम्हेंवह चिंता कौन करेवह चिंता दूसरे लोग करें। भारतीय तो सेवा लेने को हमेशा तत्पर हैं। और संन्यासी हो गये फिर तो सेवा ही चाहिए।
यहां मेरे पास लोग आते हजपत्र लिखते हज कि हम संन्यास लेने को राजी हैंमगर संन्यास पीछे लेंगे अगर हमें यह आश्वासन हो कि हमें आश्रम में प्रवेश मिलेगा। और मैं उनसे पुछवाता हूं कि आश्रम में करोगे क्यावे कहते हैंआश्रम में कुछ करना ही होता तो आश्रम में क्यों आते?यहां तो भक्ति-भाव करेंगेप्रभु-भजन करेंगे। मुझे कोई एतराज नहींप्रभु-भजन करोमगर भोजन वगैरह मत मांगना । जितना दिल हो उतना भजन करो। तब वे कहते हैंभूखे भजन न होहिं गोपाला। तो भोजन की चिंता विदेशी करेंकपड़ों की चिंता विदेशी करेंवे तुम्हारे लिए श्रम करें और तुम भजन-भात करो! और तुम महात्मागीरी करो! और तुम उनसे पैर दबवाओ। और उनको निंदा की दृष्टि से देखो। और देखो कि ये म्लेच्छ। और इनको निंदा की दृष्टि से देखने का एक ही तुम्हारे पास उपाय है,वह यह है कि तुम इनकी प्रेम की जा जीवनदृष्टि हैउसको तुम सरलता से निंदा कर सकते हो अपने मन में।
स्वभावइसलिए तुम्हें यह अनुभव हुआ कि वे पचास प्रतिशत भारतीय मित्र जो यहां आश्रम में हैंन केवल जलते हैं प्रेम करनेवालों से बल्कि अपराधजनक दृष्टि से भी देखते हैं--वे तो उन्हें पापी मानेंगे ही। और घंटों व्यंग्यपूर्ण बातचीत करते रहते हैं। वही तो उनका भक्ति-भाव है,और काम क्या हैफुर्सत ही फुर्सत है उनको। काम उन्हें कुछ करना नहीं है। उनसे काम करने को कुछ भी कहो तो वे बहाने खोजने को तैयार हैं। इतने बहाने खोजते हैं कि बहुत हैरानी होती है।
यहां पंद्रह सौ संन्यासी आश्रम में काम करते हैं,जिनमें मुश्किल से पचास भारतीय हैं। बाकी साढ़े चौदह सौ कोई बहानेबाजी नहीं करते,लेकिन ये पचास सिवाय बहानेबाजी के कुछ और इनका काम नहीं है। आज इनकी तबीयत ठीक नहीं हैकल कोई मिलनेवाला आ गया,परसों इन्हें  किसी  के दर्शन करने जाना हैफिर इनकी बहन की शादी आ गयीफिर बहन के लिए वर खोजना हैफिर विवाह में जाना है,फिर बारात में जाना हैफिर कोई मर गया है कहींफिर कोई बीमार है उसको देखने जाना है--इनको कोई न कोई बहाना। इसके लिए खर्च भी इनको आश्रम से चाहिए! क्योंकि इनके पास तो कुछ है नहीं।
विदेशी संन्यासी अपना खर्च उठाते हैंअपने रहने का खर्च उठाते हैंआश्रम के लिए सब तरह से आधार बने हैं--और फिर भी वे निंदा के पात्र हैं। और कारणकारण उनका प्रेमपूर्ण जीवन। और इनके भीतर जलन पैदा होती है। क्योंकि इनके भीतर भी प्रेम की आकांक्षा तो दबी पड़ी है। मगर साहस नहीं हैहिम्मत नहीं है।
मैं तो चाहूंगा कि ये मित्र धीरे-धीरे विदा हों यहां से। इनके प्रश्न भी आते हैं मेरे पास तो उत्तर देने योग्य नहीं होते। न-मालूम कहां-कहां के कचरा प्रश्न पूछते हैंजिनका कोई प्रयोजन नहीं है,जिनका कोई मूल्य नहीं है।
स्त्री और पुरुष के संबंध में भारतीय मन में एक ही धारणा रही है कि एक ही संबंध हो सकता है,वह है कामवासना का। स्त्री और पुरुष के बीच मैत्री भी हो सकती हैमित्रता भी हो सकती है,यह भारतीय परंपरा का अंग नहीं रही। भारतीय परंपरा ने कभी साहस नहीं किया कि स्त्री और पुरुष के बीच मैत्री की धारणा को जन्म दे सके।
यौन तो स्त्री-पुरुष के बीच एक संबंध है। यही सब कुछ नहीं है। मैत्री भी हो सकती है। और मैत्री होनी चाहिए। एक सुंदरसुसंस्कृत व्यक्तित्व में इतनी क्षमता तो होनी चाहिए कि वह किसी स्त्री के साथ भी मैत्री बना सके,किसी पुरुष के साथ मैत्री बना सके। मैत्री का अर्थ है कि कोई शारीरिक लेन-देन का सवाल नहीं हैएक आत्मिक नाता है।
लेकिन पश्चिम में यह घटना घटती है। एक पुरुष और एक स्त्री के बीच इस तरह की दोस्ती हो सकती है जैसे दो पुरुषों के बीच होती हैया दो स्त्रियों के बीच होती है। मैत्री का आधार बौद्धिक हो सकता है। दोनों के बीच एक बौद्धिक तालमेल हो सकता है। दोनों के बीच रुचियों का एक सम्मिलन हो सकता है। दोनों में संगीत के प्रति लगाव हो सकता है। दोनों में शास्त्रीय संगीत में अभिरुचि हो सकती हैं। यह जरूरी नहीं है कि जिस स्त्री के शरीर से तुम्हारा संबंध हैउससे तुम्हारा बौद्धिक मेल भी खाए। यह जरूरी नहीं है कि जिस स्त्री के शरीर में तुम्हें रुचि हैउसमें और तुम्हारे बीच संगीत के संबंध में भी समानता हो। हो सकता है उसे संगीत में बिलकुल रस न हो । हो सकता है तुम्हें संगीत में बिलकुल रस न होउसे रस हो। हो सकता है उसे नृत्य में अभिरुचि हो और तुम्हें दर्शनशास्त्र में। तो ठीक है कि वह अपनी मैत्री बनाएगी उन लोगों के साथ जिनको नृत्य में रुचि हैऔर तुम उनके साथ मैत्री बनाओगे जिन्हें दर्शन में रुचि है।
पश्चिम में शरीर का संबंध ही एकमात्र संबंध नहीं है। यह श्रेष्ठकर बात हैध्यान रखना। शरीर का संबंध ही एकमात्र संबंध अगर हैतो इसका अर्थ हुआ कि फिर आदमी के भीतर मन नहींआत्मा नहींपरमात्मा नहींकुछ भी नहीं सिर्फ शरीर ही शरीर है। अगर आदमी के भीतर शरीर के ऊपर मन है और मन के ऊपर आत्मा है और आत्मा के ऊपर परमात्मा हैंशरीर के तल पर किसी और से संबंध हो सकते हैं। क्योंकि यह हो सकता है एक स्त्री के चेहरे में तुम्हें रस न हो,उसका चेहरा तुम्हें न भाएउसकी देह तुम्हें न भाएलेकिन उसकी मन की गरिमा तुम्हें मोहित करे। और यह भी हो सकता है एक स्त्री की देह तुम्हें आकृष्ट करेचुंबक की तरह खींचेमगर उसके मन में तुम्हें कोई रुचि न होकोई रस न हो। फिर क्या करोगेभारत में तो एक ही उपाय है कि एक चीज से राजी हो जाओदूसरे की चिंता छोड़ दो। इससे तो नुकसान होनेवाला है। इससे तुम्हारी एक दशा अवरुद्ध रह जाएगी।
 अब तुम्हारी पत्नी को अगर नृत्य में रुचि है और तुम्हें रुचि नहीं हैतो तुम्हारी पत्नी क्या करेकिसी नर्तक से दोस्ती बनाए या न बनाए?लेकिन तुम किसी नर्तक से उसकी दोस्ती पसंद न करोगे। क्योंकि ये नाचने-गानेवालों का क्या भरोसाये कोई भरोसे के आदमी हैंकोई ढंग के आदमी हैं! ढंग के आदमी होते तो नाचने-गाने में जिंदगी व्यतीत करते! अरेकुछ काम की बात करतेकुछ धंधा करतेकोई दुकान करतेकोई व्यवसाय करतेकुछ कमा कर दिखाते! यह क्या पैरों में घुंघरू बांध कर नाच रहे हैं! और इनका क्या भरोसाये नाचने-गानेवालों के संबंध में तुम्हारी धारणा यह होती है--ये तो नंगे-लुच्चे-लफंगे हैंइनका कोई मूल्य थोड़े ही हैइनके साथ कोई दोस्ती थोड़े ही बनानी पड़ती है! अगर तुम्हारी पत्नी को नाच भी सीखना हो तो तुम ढूंढोगे कोई बिलकुल मुर्दामरा हुआबूढ़ाकि जिससे अब कोई खतरा ही न हो। फिर भी तुम अपने बेटे को या बेटी को मौजूद रखोगे कि तू मौजूद रहनादेखते रहनाकि नाचनेवाला ही हैइसका क्या भरोसाफिर भी नजर रखोगे तुम।
तुम तो चाहोगे कि तुम्हारी पत्नी की सारी अभिरुचि बस तुममें सीमित हो जाए। और फिर तुम्हारी पत्नी भी स्वभावतः यही चाहेगी कि उसकी अभिरुचि भी तुममें सीमित अगर तुम चाहते हो कि होतो तुम्हारी अभिरुचि भी बस उसमें ही सीमित हो जाए। तो वह भी नहीं चाहेगी कि तुम मित्रों के पास ज्यादा बैठोउठो। कोई पत्नियां तुम्हारे मित्रों के पसंद नहीं करती। क्योंकि तुम अपने मित्रों के साथ ऐसे रसलीन होकर बातचीत करते हो कि पत्नियां जल भुन जाती हैंकि बस मित्र क्या आए कि बहार आ जाती है तुम्हारे जीवन में एकदम! और मित्र क्या गयेमैं बैठी हूंजैसे हूं ही नहीं। तुम्हें जैसे मतलब ही नहीं है। जमाने हो गये जबसे तुमने चेहरा नहीं देखा मेरा।
और इस बात में सचाई भी हो सकती है। तुमसे अगर कोई एकदम पूछकि आज पत्नी तुम्हारी किस रंग की साड़ी पहने हुए हैतुम शायद ही बता सको। कौन देखता है पत्नी किस रंग की साड़ी पहने हुए है! भाड़ में जाएजो रंग की साड़ी पहननी हो पहनेसिर भर न खाए! तुमने कितने वर्षों से पत्नी का चेहरा गौर से नहीं देखा!
मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी खो गयी। पुलिस में रिपोर्ट करने गया। इंस्पेक्टर ने पूछाकब खोयी तुम्हारी पत्नीउसने कहासात दिन हो गये। तुम सात दिन क्या करते रहेबड़े मियांसात दिन बाद तुम्हें होश आयाशराब ही गये थे?नहींनसरुद्दीन ने कहामुझे भरोसा ही न आए! यह मेरा सौभाग्य कहां! फिर जब भरोसा आ गया कि नहींवह भाग ही गयी हैजब बिलकुल पक्का हो गया कि भाग ही गयी हैअब बहुत दूर निकल चमकी होगीअब तुम खोजना भी चाहो तो न सकोगेसो मैं रिपोर्ट कराने आया हूं।
तो उसने कहाठीक है। रिपोर्ट लिखनी शुरू की। उसने कहा कि लंबाईमुल्ला नसरुद्दीन ने कहाअब ऐसे कठिन सवाल न पूछो। अब अपनी पत्नी को क्या कोई नापता हैअब लंबाईअरेयही रही होगी मझोल कद की! न बहुत लंबीन बहुत ठिगनी। कोई खास बात जिससे उसको पहचाना जा सकेनसरुद्दीन सिर खुजलाने लगाउसने कहाखास बात?आवाज बुलन्द है। दहाड़ देएकदम छाती कंप जाती है। इंस्पेक्टर ने कहाकुछ और बताओ,आवाज का क्याबोले न बोले। दहाड़े न दहाड़े! कुछ ऐसा चिह्न बताओ। नसरुद्दीन ने बहुत सोचाकहा कि नहीं कुछ ख्याल में नहीं आता। मोटी है कि दुबलीउसने कहाबस यही समझो बीच में। ऐसे टालमटोल करता रहा। और कहा कि और भी एक दुख की बात है कि मेरे कुत्ते को भी साथ ले गयी। तो उसने कहाठीककुत्ते की रिपोर्ट लिखवा दो। तो वह बस फौरन लिखवाने लगा--अलसेसियन कुत्ताइतने फीट लंबाकाला रंगएक कान सफेदएक-एक ब्यौरा देने लगा। इंस्पेक्टर ने कहातुम कुत्ते का ब्यौरा तो यूं दे रहे होऔर पत्नी के संबंध में कहते थे बस समझ लोमान लो।
कुत्ते में लोगों को ज्यादा उत्सुकता है अपने।
पतिदेव कोपूछो किसी पत्नी सेकब से नहीं देखाकौन देखता है! फुरसत किसको है! लड़ाई-झगड़े से समय मिले तब!
इस देश में तो बस एक नाता है। और तुम्हारे लुच्चे-लफंगे भी एक ही दृष्टि से स्त्री को देखते हैं और वह है: यौन-साधन। और तुम्हारे ऋषि-मुनि भी एक ही दृष्टि से स्त्री को देखते हैं और वह है: यौन-साधन। दोनों का इस संबंध में जरा भी मतभेद नहीं। मेरे लिए तो दोनों में कुछ भेद नहीं,इसलिएक्योंकि दोनों की दृष्टि समान है। समदृष्टि हैं इस संबंध में दोनों। लुच्चे-लफंगों की भी दृष्टि यही है कि स्त्री का उपयोग कर लेना है,शोषण कर लेना हैशरीर है और कुछ भी नहीं। और तुम्हारे ऋषि-मुनियों की भी दृष्टि यही है कि भागोस्त्री से भागोक्योंकि स्त्री कामवासना है,शरीर हैआकर्षित कर लेगीतुम कहीं अपना वश न खो बैठोइसलिए अवसर से दूर रहो,बचे-बचे रहेबचे-बचे रहो। जिस स्थान पर स्त्री बैठी हो उस स्थान पर दस मिनिट तक मत बैठना क्यों?
मैं एक ब्रह्मचारी जी के साथ यात्रा कर रहा था। ट्रेन में हम सवार हुएहम प्रविष्ट हुएहमसे पहले कुछ यात्री नीचे उतरेजिस जगह हम बैठे वहां दो महिलाएं बैठी थींमैं तो बैठ गयावह खड़े रहे। मैंने पूछाआप बैठेंगे नहींउन्होंने कहादस मिनिट बाद। मैंने कहामतलब?उन्होंने कहाजिस स्थान पर स्त्री बैठी रही हो,दस मिनिट तक नहीं बैठना चाहिए। क्योंकि उस स्थान पर स्त्री की ऊर्जा के अणु छूट जाते हैं।
इन मूढ़ों ने इस देश की मनोदशा को बनाया है। उस स्थान पर नहीं बैठेंगे जहां स्त्री बैठी रही है।
मगर दोनों की नजर एक कि स्त्री केवल कामवासना का एक साधन है।
इसलिए इस-देश मेंस्वभावमैत्री तो असंभव है। मैत्री थोड़ी आध्यात्मिक बात है। थोड़े ऊंचे तल की बात है। तुम कल्पना ही नहीं कर सकते कि एक स्त्री और पुरुष में मैत्री है। कि एक स्त्री और पुरुष घंटों बैठकर दर्शनशास्त्र पर या काव्यशास्त्र पर विचार-विमर्श करते हैं। तुम कहोगेअरे सब बकवास हैयह दिखावा होगा,दरवाजे बंद करके कुछ और ही लीला चलती होगी! दिखाने के लिए दर्शनशास्त्र काव्य-शास्त्र! यह धोखा किसी और को देना। दरवाजा बंद कि सब काव्यशास्त्र गया एक तरफफिर एक शास्त्र बचता है।शरीरशास्त्र। फिर एक-दूसरे के शरीरशास्त्र का अध्ययन करते होंगे।
यहां कोई भरोसा ही नहीं कर सकता कि एक मैत्री हो सकती है जिसका तल शरीर न हो। इस देश की संस्कृति अभी भी बहुत भौतिक है। तुम लाख कहो आध्यात्मिक हैमैं नहीं मानूंगा। मुझे कहीं अध्यात्म दिखायी नहीं पड़ता। बातचीत। अध्यात्म की जरूर है।
अब ये श्री प्रमुखजी स्वामी महराजइनको तुम आध्यात्मिक कहोगेएक तरफ तो कहते हैं कि सबके भीतर परमात्मा का वास हैसब में ब्रह्म ही समाया हुआ है--सिर्फ स्त्रियों को छोड़कर। ब्रह्म भी स्त्रियों से डरा हुआ है! हद हो गयी! ब्रह्म की क्या दशा होती होगी जब स्त्रियों का सामना हो जाता होगाजब कयामत की रात आएगीऔर सभी का सामना करना पड़गा ईश्वर के--उसमें स्त्रियां भी होंगी--उस वक्त उसकी क्या हालत होगीऔर अगर ब्रह्म सभी में समाया हुआ हैवृक्षों में भी ब्रह्मपत्थरों में भी ब्रह्म...।

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ओशो देशना (अविरल,अविस्मरणीय और आनंददायी)

जीवन की खोज – Jeevan Ki खोज pdf osho

जीवन की खोज – Jeevan Ki Khoj अनुक्रम       #1: प्यास       #2:  मार्ग       #3: द्वार       #4: प्रवेश Download Jeevan Ki Khoj (जीवन की खोज) "Osho" PDF जीवन क्या है? उस जीवन के प्रति प्यास तभी पैदा हो सकती है, जब हमें यह स्पष्ट बोध हो जाए, हमारी चेतना इस बात को ग्रहण कर ले कि जिसे हम जीवन जान रहे हैं, वह जीवन नहीं है। जीवन को जीवन मान कर कोई व्यक्ति वास्तविक जीवन की तरफ कैसे जाएगा? जीवन जब मृत्यु की भांति दिखाई पड़ता है, तो अचानक हमारे भीतर कोई प्यास, जो जन्म-जन्म से सोई हुई है, जाग कर खड़ी हो जाती है। हम दूसरे आदमी हो जाते हैं। आप वही हैं, जो आपकी प्यास है। अगर आपकी प्यास धन के लिए है, मकान के लिए है, अगर आपकी प्यास पद के लिए है, तो आप वही हैं, उसी कोटि के व्यक्ति हैं। अगर आपकी प्यास जीवन के लिए है, तो आप दूसरे व्यक्ति हो जाएंगे। आपका पुनर्जन्म हो जाएगा। ओशो

ध्यान सूत्र। (Dhyan sutra -ओशो Pdf file

ध्यान सूत्र। (Dhyan sutra)                                 -ओशो DHYAAN SUTRA 〰〰 🎙HINDI 📆1965 💿9 DISCOURSES अनुक्रमणिका : प्रवचन 1 - प्यास और संकल्प    3 प्रवचन 2 - शरीर-शुद्धि के अंतरंग सूत्र    18 प्रवचन 3 - चित्त-शक्तियों का रूपांतरण    42 प्रवचन 4 - विचार-शुद्धि के सूत्र    62 प्रवचन 5 - भाव-शुद्धि की कीमिया    77 प्रवचन 6 - सम्यक रूपांतरण के सूत्र    96 प्रवचन 7 - शुद्धि और शून्यता से समाधि फलित    119 प्रवचन 8 - समाधि है द्वार    133 प्रवचन 9 - आमंत्रण--एक कदम चलने का  👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻 Download Dhyan Sutra (ध्यान सूत्र) PDF

Shiv sutra शिव सूत्र (ओशो) PDF

शिव—सूत्र—(ओशो) (समाधि साधपा शिवर, श्री ओशो आश्रम, पूना। दिनांक 11 से 20 सितंबर, 1974 तक ओशो द्वारा दिए गए दस अमृत—प्रवचनो का संकलन। Download Shiv Sutra (शिव सूत्र) PDF अनुक्रम         #1: जीवन-सत्य की खोज की दिशा         #2: जीवन-जागृति के साधना-सूत्र         #3: योग के सूत्र : विस्मय, वितर्क, विवेक         #4: चित्त के अतिक्रमण के उपाय         #5: संसार के सम्मोहन, और सत्य का आलोक         #6: दृष्टि ही सृष्टि ‍है         #7: ध्यान अर्थात चिदात्म सरोवर में स्नान         #8: जिन जागा तिन मानिक पाइया         #9: साधो, सहज समाधि भली!         #10: साक्षित्व ही शिवत्व है   Description Reviews

जिन खोजा तिन पाइयां -ओशो Pdf

जिन खोजा तिन पाइयां।                          -ओशो (कुंडलिनी - योग पर ध्यान शिविर, नारगोल में ध्यान प्रयोगों के साथ प्रवचन एवम मुम्बई में प्रश्नोत्तर चर्चाओं सहित "19" ओशो प्रवचनों का अपूर्व संकलन) pdf file  428 pages Download Pdf file Here Language :- Hindi  Size :- 3.3mb Type :- Pdf file जिन खोजा तिन पाइयां ऊर्जा का विस्तार है जगत और ऊर्जा का सघन हो जाना ही जीवन है। जो हमें पदार्थ की भांति दिखाई पड़ता है, जो पत्थर की भांति भी दिखाई पड़ता है, वह भी ऊर्जा, शक्ति है। जो हमें जीवन की भांति दिखाई पड़ता है, जो विचार की भांति अनुभव होता है, जो चेतना की भांति प्रतीत होता है, वह भी उसी ऊर्जा, उसी शक्ति का रूपांतरण है। सारा जगत-- चाहे सागर की लहरें, और चाहे सरू के वृक्ष, और चाहे रेत के कण, और चाहे आकाश के तारे, और चाहे हमारे भीतर जो है वह, वह सब एक ही शक्ति का अनंत-अनंत रूपों में प्रगटन है। ओशो  कुंडलिनी-यात्रा पर ले चलने वाली इस अभूतपूर्व पुस्तक के कुछ विषय बिंदु: शरीर में छिपी अनंत ऊर्जाओं को जगाने का एक आह्वान सात चक्रों व सात शरीरो

ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है - ओशो

हंसा तो मोती चूने--(लाल नाथ)-प्रवचन-10 अवल गरीबी अंग बसै—दसवां प्रवचन  दसवा प्रवचन ; दिनाक 20 मई ,  1979 ; श्री रजनीश आश्रम ,  पूना यह महलों ,  यह तख्तों ,  यह ताजों की दुनिया यह इन्सां के दुश्मन समाजों की दुनिया  यह दौलत के भूखे रिवाजों की दुनिया  यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! हर एक जिस्म घायल ,  हर इक रूह प्यासी निगाहों में उलझन ,  दिलों में उदासी यह दुनिया है या आलमे-बदहवासी यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! यहां इक खिलौना है इन्सां की हस्ती यह बस्ती है मुर्दा -परस्तों की बस्ती यहां पर तो जीवन से है मौत सस्ती यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! जवानी भटकती है बदकार बनकर जवा जिस्म सजते हैं बाजार बनकर यहां प्यार होता है व्योपार बनकर यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! यह दुनिया जहां आदमी कुछ नहीं है वफा कुछ नहीं ,  दोस्ती कुछ नहीं है जहां प्यार की कद्र ही कुछ नहीं है यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! जला दो उसे फूंक डालो यह दुनिया मेरे सामने से हटा लो यह दुनिया तुम्हारी है तुम ही सम्हालो यह दुनिया

कृष्ण स्मृति-ओशो Pdf

     कृष्ण स्मृति             -ओशो। (ओशो द्वारा कृष्ण के बहु-आयामी व्यक्तित्व पर दी गई 21 र्वात्ताओं एवं नव-संन्यास पर दिए गए एक विशेष प्रवचन का अप्रतिम संकलन। यही वह प्रवचनमाला है जिसके दौरान ओशो के साक्षित्व में संन्यास ने नए शिखरों को छूने के लिए उत्प्रेरणाली और "नव संन्यास अंतर्राष्ट्रीय' की संन्यास-दीक्षा का सूत्रपात हुआ।) File name :- कृष्ण स्मृति  Language :- Hindi Size:- 6mb 504 pages  Download Pdf file here अनुक्रमणिका : प्रवचन 1 - हंसते व जीवंत धर्म के प्रतीक कृष्ण    2 प्रवचन 2 - इहलौकिक जीवन के समग्र स्वीकार के प्रतीक कृष्ण    22 प्रवचन 3 - सहज शून्यता के प्रतीक कृष्ण    53 प्रवचन 4 - स्वधर्म-निष्ठा के आत्यंतिक प्रतीक कृष्ण    72 प्रवचन 5 - "अकारण'’ के आत्यंतिक प्रतीक कृष्ण    96 प्रवचन 6 - जीवन के बृहत् जोड़ के प्रतीक कृष्ण    110 प्रवचन 7 - जीवन में महोत्सव के प्रतीक कृष्ण    141 प्रवचन 8 - क्षण-क्षण जीने के महाप्रतीक कृष्ण    167 प्रवचन 9 - विराट जागतिक रासलीला के प्रतीक कृष्ण    196

होश की साधना - ओशो || मुल्ला नसीरुद्दीन पर ओशो || Osho Jokes in Hindi

होश की साधना - ओशो   एक सुंदर अध्यापिका की आवारगी की चर्चा जब स्कूल में बहुत होने लगी तो स्कूल की मैनेजिंग कमेटी ने दो सदस्यों को जांच-पड़ताल का काम सौंपा। ये दोनों सदस्य उस अध्यापिका के घर पहुंचे। सर्दी अधिक थी, इसलिए एक सदस्य बाहर लान में ही धूप सेंकने के लिए खड़ा हो गया और दूसरे सदस्य से उसने कहा कि वह खुद ही अंदर जाकर पूछताछ कर ले। एक घंटे के बाद वह सज्जन बाहर आए और उन्होंने पहले सदस्य को बताया कि अध्यापिका पर लगाए गए सारे आरोप बिल्कुल निराधार हैं। वह तो बहुत ही शरीफ और सच्चरित्र महिला है। इस पर पहला सदस्य बोला, "ठीक है, तो फिर हमें चलना चाहिए। मगर यह क्या? तुमने केवल अंडरवीयर ही क्यों पहन रखी है? जाओ, अंदर जाकर फुलपेंट तो पहन लो।" यहां होश किसको? मुल्ला नसरुद्दीन एक रात लौटा। जब उसने अपना चूड़ीदार पाजामा निकाला तो पत्नी बड़ी हैरान हुई; अंडरवीयर नदारद!! तो उसने पूछा, "नसरुद्दीन अंडरवीयर कहां गया?" नसरुद्दीन ने कहा कि अरे! जरूर किसी ने चुरा लिया!! अब एक तो चूड़ीदार पाजामा! उसमें से अंडरवीयर चोरी चला जाए और पता भी नहीं चला!! चूड़ीदार पाजामा नेतागण पहनते

भक्ति सूत्र -ओशो। Narad Bhakti Sutra Pdf file

भक्ति सूत्र           -ओशो। Narad Bhakti Sutra Pdf file अनुक्रम :- १. परम प्रेमरूपा है भक्ति २. स्वयं को मिटाने की कला है भक्ति ३. बड़ी संवेदनशील है भक्ति ४. सहजस्फूर्त अनुशासन है भक्ति ५. कलाओं की कला है भक्ति ६. प्रसादस्वरूपा है भक्ति ७. योग और भोग का संगीत है भक्ति ८. अनंत के आंगन में नृत्य है भक्ति ९. हृदय का आंदोलन है भक्ति १॰. परम मुक्ति है भक्ति ११. शून्य की झील में प्रेम का कमल है भक्ति १२. अभी और यहीं है भक्ति १३. शून्य का संगीत है प्रेमा-भक्ति १४. असहाय हृदय की आह है प्रार्थना-भक्ति १५. हृदय-सरोवर का कमल है भक्ति १६. उदासी नहीं–उत्सव है भक्ति १७. कान्ता जैसी प्रतिबद्धता है भक्ति १८. एकांत के मंदिर में है भक्ति १९. प्रज्ञा की थिरता है मुक्ति २॰. अहोभाव, आनंद, उत्सव है भक्ति Book:- Narad Bhakti Sutra Osho Language :-Hindi Size :- 3mb 440 pages Download Bhakti Sutra Pdf (भक्ति सूत्र) भक्ति-सूत्र : एक झरोखा भक्ति यानी प्रेम–ऊर्ध्वमुखी प्रेम। भक्ति यानी दो व्यक्तियों के बीच का प्रेम नहीं, व्यक्ति और समाष्टि के बीच का प्रेम। भक्

संयमित आहार के सूत्र || भोजन करने का सही तरीका - ओशो

संयमित आहार के सूत्र - ओशो  मेरे पास बहुत लोग आते हैं ,   वे कहते हैं ,   भोजन हम ज्यादा कर जाते हैं ,   क्या करें ?   तो मैं उनसे कहता हूं ,   होशपूर्वक भोजन करो। और कोई   डाइटिंग   काम देनेवाली नहीं है। एक दिन ,   दो दिन   डाइटिंग   कर लोगे जबर्दस्ती ,   फिर क्या होगा ?   दोहरा टूट पड़ोगे फिर से भोजन पर। जब तक कि मन की मौलिक व्यवस्था नहीं बदलती ,   तब तक तुम दो-चार दिन उपवास भी कर लो तो क्या फर्क पड़ता है! फिर दो-चार दिन के बाद उसी पुरानी आदत में सम्मिलित हो जाओगे। मूल आधार बदलना चाहिए। मूल आधार का अर्थ है ,   जब तुम भोजन करो ,   तो होशपूर्वक करो ,   तो तुमने मूल बदला। जड़ बदली। होशपूर्वक करने के कई परिणाम होंगे। एक परिणाम होगा ,   ज्यादा भोजन न कर सकोगे। क्योंकि होश खबर दे देगा कि अब शरीर भर गया। शरीर तो खबर दे ही रहा है ,   तुम बेहोश हो ,   इसलिए खबर नहीं मिलती। शरीर की तरफ से तो इंगित आते ही रहे हैं। शरीर तो यंत्रवत खबर भेज देता है कि अब बस ,   रुको। मगर वहां   रुकनेवाला   बेहोश है। उसे खबर नहीं मिलती। शरीर तो टेलीग्राम दिये जाता है ,   लेकिन जिसे मिलना चाहिए वह सोया ह

प्यास और संकल्प | ध्यान सूत्र - ओशो

संकल्प कैसे लें - ओशो 1. सबसे पहली बात ,  सबसे पहला सूत्र , जो स्मरण रखना है ,  वह यह कि आपके भीतर एक वास्तविक प्यास है ?  अगर है ,  तो आश्वासन मानें कि रास्ता मिल जाएगा। और अगर नहीं है , तो कोई रास्ता नहीं है। आपकी प्यास आपके लिए रास्ता बनेगी। 2. दूसरी बात ,  जो मैं प्रारंभिक रूप से यहां कहना चाहूं ,  वह यह है कि बहुत बार हम प्यासे भी होते हैं किन्हीं बातों के लिए ,  लेकिन हम आशा से भरे हुए नहीं होते हैं। हम प्यासे होते हैं , लेकिन आशा नहीं होती। हम प्यासे होते हैं , लेकिन निराश होते हैं। और जिसका पहला कदम निराशा में उठेगा ,  उसका अंतिम कदम निराशा में समाप्त होगा। इसे भी स्मरण रखें , जिसका पहला कदम निराशा में उठेगा ,  उसका अंतिम कदम भी निराशा में समाप्त होगा। अंतिम कदम अगर सफलता और सार्थकता में जाना है ,  तो पहला कदम बहुत आशा में उठना चाहिए। 3. तीसरी बात ,  साधना के इन तीन दिनों में आपको ठीक वैसे ही नहीं जीना है ,  जैसे आप आज सांझ तक जीते रहे हैं। मनुष्य बहुत कुछ आदतों का यंत्र है। और अगर मनुष्य अपनी पुरानी आदतों के घेरे में ही चले ,  तो साधना की नई दृष्टि खोलने म