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मुल्ला नसीरुद्दीन की लंबी उम्र का राज़ - ओशो

अष्‍टावक्र: महागीता--(प्रवचन--13)

  जब जागो तभी सवेरा—

   प्रवचन—तैरहवां




23 सितंबर,1976 ओशो आश्रम कोरेगांव पार्क, पूना।


जनक उवाच।


मुल्ला नसरुद्दीन सौ साल का हो गयातो दूर—दूर से अखबारनवीस उसका इंटरव्यू लेने आए। सौ साल का हो गया आदमी! वे उससे पूछने आए कि तुम्हारे स्वास्थ्य का राज क्या है?तुम अब भी चलते होफिरते हो! तुम प्रसन्नचित्त दिखाई पड़ते हो। तुम्हारे शरीर में कोई बीमारी नहीं। तुम्हारा राज क्या है?
तो मुल्ला ने कहामेरा राज! मैंने कभी शराब नहीं पीधूम्रपान नहीं किया! नियम से जीया। नियम से सोया—उठासंयम ही मेरे जीवन का और मेरे स्वास्थ्य का राज है।
वह इतना कह ही रहा था कि बगल के कमरे में जोर से कुछ अलमारी गिरी तो वे सब चौंक गए। पत्रकारों ने पूछायह क्या मामला हैतो उसने कहाये मेरे पिताजी हैं! वे मालूम होता है कि फिर शराब पी कर आ गए!
कोई आदमी सौ साल जिंदा रह जाता है,वह सोचता है मैंने शराब नहीं पीइसीलिए जिंदा हूं सौ साल। उनके पिताजी पी कर अभी आए हैं। उन्होंने अलमारी गिरा दी है।
अगर कोई जैन ज्यादा जी जाता हैवह सोचता है शाकाहार की वजह से ज्यादा जी गए। कोई मांसाहारी ज्यादा जी जाता हैवह सोचता है मांसाहार की वजह से जी गए। धूम्रपान करने वाले भी ज्यादा जी जाते हैं,धूम्रपान न करने वाले भी ज्यादा जी जाते हैं। साग—सब्जी खा कर भी लोग ज्‍यादा जी जाते हैंजिन्होंने साग—सब्जी कभी छुई ही नहींवे भी जी जाते हैं। और जो आदमी जिस ढंग से जी जाता हैवह सोचता है यह मैंने अपने जीवन का नियंत्रण कियायह मेरे संयम से हुआ।
तुम्हारे किए कुछ भी नहीं हो रहा हैतुम कर्ता नहीं हो। तुम्हारे किए कुछ भी न हुआ हैन हो रहा हैन होगा। कभी—कभी संयोग से,कभी—कभी बिल्ली के भाग्य से छींका टूट जाता हैवह संयोग ही है। कभी—कभी ऐसा होता हैतुम जो चाहते हो वह हो जाता है। वह होने ही वाला थातुम न चाहते तो भी हो जाता।
एक गांव में एक बूढ़ी औरत रहती थी। वह नाराज हो गई गांव के लोगों से। उसने कहा,तो भटकोगे तुम अंधेरे में सदा। उन्होंने पूछा,मतलबउसने कहा कि मैं अपने मुर्गे को ले कर दूसरे गांव जाती हूं। न रहेगा मुर्गान देगा बांग,न निकलेगा सूरज! मरोगे अंधेरे में! देखा नहीं कि जब मेरा मुर्गा बांग देता है तो सूरज निकलता है?
वह बूढ़ी अपने मुर्गे को ले कर दूसरे गांव चली गई क्रोध मेंऔर बड़ी प्रसन्न हैक्योंकि अब दूसरे गांव में सूरज निकलता है! वहां मुर्गा बांग देता है। वह बड़ी प्रसन्न है कि अब पहले गांव के लोग मरते होंगे अंधेरे में।
सूरज वहां भी निकलता है। मुर्गों के बांग देने से सूरज नहीं निकलतासूरज के निकलने से मुर्गे बांग देते हैं। तुम्हारे कारण संसार नहीं चलता। तुम मालिक नहीं होतुम कर्ता नहीं हो। यह सब अहंकारभ्रांतियां हैं।
भोगी का भी अहंकार है और योगी का भी अहंकार है। इन दोनों के जो पार हैउसने ही अध्यात्म
का रस चखा—जो न योगी है न भोगी।
'आश्चर्य है कि अनंत समुद्र रूप मुझ में जीव रूपी तरगें अपने स्वभाव के अनुसार उठती है


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